बुधवार, 28 जुलाई 2021

सुमन साहित्यिक परी' समूह ने आयोजित की ऑनलाइन काव्य-गोष्ठी

 *'सुमन साहित्यिक परी'  समूह ने आयोजित की ऑनलाइन काव्य-गोष्ठी*

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नजीबाबाद/मुरादाबाद, 29 जुलाई।  प्रतिष्ठित साहित्यिक समूह 'सुमन साहित्यिक परी' (नजीबाबाद) की ओर से आज स्ट्रीम यार्ड पर, सावन को समर्पित एक ऑनलाइन काव्य-गोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसका प्रसारण समूह के पेज दीपिका माहेश्वरी सुमन  पर लाइव किया गया। जबलपुर के वरिष्ठ साहित्यकार आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' द्वारा प्रस्तुत माँ शारदे की वंदना से आरंभ हुए इस कार्यक्रम में विभिन्न रचनाकारों ने अपनी रचनाओं के माध्यम से सावन की छटा बिखेरी। काव्य-पाठ करते हुए मुरादाबाद के रचनाकार राजीव 'प्रखर' सावन की रंगत पर कुछ इस प्रकार चहके - *"जब तरुवर की गोद से, खग ने छेड़ी तान। सावन चहका ओढ़ कर, बौछारी परिधान।। प्यारी कजरी साथ में, यह रिमझिम बौछार। दोनों मिलकर कर रहीं, सावन का शृंगार।"* नजीबाबाद की कवयित्री दीपिका माहेश्वरी 'सुमन' ने सावन का चित्र कुछ इस प्रकार उकेरा - *"सावन ले अंगङाइयाँ, उपवन हुआ निहाल। कोयल छेड़े रागिनी, मेघ मिलाये ताल।। बरस बरस बदरा करे, धरती का सिंगार। डाली-डाली कूकती, कोयल करे विहार।।"* मुरादाबाद से ही उपस्थित  कवयित्री डाॅ. रीता सिंह की अभिव्यक्ति कुछ इस प्रकार थी - *"सारंगों का साथ ले, आया सावन मास। झूम उठे तरुवर हरे, करते पल्लव रास।। हरी-भरी धरती सजी, नीर बना उपहार। बूंदें रिमझिम गा रहीं, मनहू राग मल्हार।।* खण्डवा (म. प्र.) के सुप्रसिद्ध नवगीतकार श्याम सुंदर तिवारी ने सावन की रंगत बढ़ाते हुए कहा  -  *"सावन का है आगमन, बछिया पहली ब्यात। मुनिया आनन्दित बहुत, दूध संग पा भात ।।भर सावन में भींग कर, पढ़ता निमवा श्लोक। हरी-भरी शाखें हुईं, अब काहे का शोक।।"* कोलकाता से उपस्थित हुए वरिष्ठ कवि कृष्ण कुमार दुबे ने कहा  - *"आया सावन झूम के, रिमझिम पड़े फुहार। मन को अति भावन लगे, ठण्डी सुखद बयार।। उमड़-घुमड़ कर दौड़ते, बादल हैं चहुँ ओर। बिजुरी चमकत गगन में, होता अतिशय शोर।।"* जबलपुर से उपस्थित हुए वरिष्ठ साहित्यकार आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' कार्यक्रम को और भी ऊँचाई पर ले जाते हुए कुछ इस प्रकार चहके -  *"सावन में झूम-झूम, डालों से लूम-लूम, झूला झूल दुःख भूल, हँसिए हँसाइये। एक दूसरे की बाँह, गहें बँधें रहे चाह, एक दूसरे को चाह, कजरी सुनाइये.।।"* लखनऊ के  वरिष्ठ रचनाकार देवकीनन्दन 'शांत' ने भी सावन के रंग में डूबकर अपनी तान कुछ यों छेड़ी - *"ऋतुएं आतीं और चली जातीं पर स्मृति श्रावण मास! बेल-पत्र, शिव लोन्ग, धतूरा,दुग्ध-धार की आस!!"* समूह-संस्थापिका तथा कार्यक्रम-संचालिका दीपिका माहेश्वरी 'सुमन'द्वारा आभार-अभिव्यक्ति के साथ कार्यक्रम विश्राम पर पहुँचा।

सोमवार, 19 जुलाई 2021

स्त्री तंत्र की व्याख्या भाग 2 ( अध्याय 5)

 स्त्री तंत्र की व्याख्या भाग 2


( प्राकृतिक नियमों के अनुसार मानव विकास की प्रक्रिया के लिए सिद्धांतों का प्रतिपादन)

      श्रीमती दीपिका महेश्वरी 'सुमन' अहंकारा
संस्थापिका सुमन साहित्यिक परी नजीबाबाद बिजनौर



अध्याय पंचम


भारत में सिर्फ पुरुष वर्ग के गिद्दे गाये जाते हैं। भारत के लोग भूल गए हैं कि, भारत के बाहर भी दुनिया है। भारत में व्यास, सूर, कबीर, तुलसी का लिखा बच्चे बच्चे की जुबान पर है, परन्तु किसी महिला का लिखा एक भी शब्द आम जन को नही पता आखिर क्यों? जबकि इनसे हट कर हमारे देश में 12 ऋषिकाएँ भी हुईं, जिन्होने बहुत कुछ लिखा, पर उनका लिखा आमजन को तो क्या सारे साहित्यकारों को भी नहीं पता। सवाल यही है कि, क्यों सिर्फ पुरुष वर्ग का लिखा आमजनता जान पाई? क्या 12ऋषिकाओं ने एसा कुछ भी नही लिखा जो आमजनता को जानना चाहिये था?

ज्यादातर लोग भारत में दुनिया का प्रारंभ सतयुग से ही  समझते हैं, इसलिए सतयुग से ही शुरुआत कर रही हूं, अपने सवालों को रखने की। सबसे पहले तुलसीदास, जिन्होंने रामचरितमानस लिखी, जिसके अरण्यकांड में सिर्फ स्त्रियों की बुराई है। स्त्रियों की बुराई कहूंगी क्योंकि उनका मंतव्य चाहे कुछ भी रहा हो, लेकिन उनका लिखा हुआ सब कुछ स्त्रियों की बुराई के रूप में विख्यात हुआ, और वैसे भी जहां तक मैंने पढ़ा है तुलसीदास जी ने अपनी पत्नी के व्यवहार से दुखी होकर, सन्यास जीवन ग्रहण किया और रामायण में जहां भी उन्हें मौका मिला वहां उन्होंने उस दुख को प्रतिशोध के रूप में लिखा। जब  वनवास के दौरान सीता जी  और श्री राम  अत्रि मुनि के आश्रम में पहुंचे, तब उन्होंने माता अनुसूया के मुख से, उस समय स्त्रियों के लिए प्रचलित  गतिविधियों कहलवाया , जो इस समाज में  स्त्रियों की परिधि तय करता हुआ प्रतिष्ठित हुआ। आज भी स्त्रियों का आकलन इसी परिधि के अंतर्गत किया जाता है। 


इस श्रेणी में दूसरे नंबर पर आते हैं व्यास, जिन्होंने द्रौपदी को यह समझाया कि, अपने केशों को कभी खुला मत छोड़ना, नहीं तो तुम्हारा अनिष्ट होगा, लेकिन दुशासन को कभी नहीं सिखाया कि, किसी स्त्री के केशों को हाथ मत लगाना, नहीं तो मृत्यु हो जाएगी तुम्हारी। ऐसे सोच वाले व्यक्तियों का लिखा सब कुछ बच्चे बच्चे की जुबान पर है, पर हमारी ऋषिकाओं का लिखा कुछ भी बच्चे को क्या किसी साहित्यकार को नहीं पता! क्यों? वैसे हमारे देश में नारियों की पूजा होती है।

लोग यह भी कहते हैं कि ऋषिकाओं  के लिखे को मान्यता नहीं मिली। मैं यह पूछती हूं, अरे! चंद मुट्ठी भर लोग कौन होते हैं? मान्यता देने वाले कि, स्त्रियों ने जो कुछ लिखा वह मान्यता के काबिल नहीं! जबकि सही अर्थों में देखें तो भारत की हिंदू धर्म की परिधि नारी पर निर्भर करती है। नारी ही धर्म है। नारी को ही पूजा जाता है तो नारी की बुराई लिखी हुई रामचरित्र मानस कैसे कबूल कर लिया लोगों ने। इस हिसाब से तो राम चरित्र मानस निकृष्ट पायदान पर आनी चाहिए और जिन्होंने उसे ऊंचे पायदान पर बिठाया है, उनके विचारों से लेकर दृष्टि तक में दोष ही दोष है इस बात को प्रमाणित करते हैं। 


इसलिए तो मैं अपना लिखा अपने आप इतना प्रतिष्ठित करके जाऊंगी कि किसी पुरुष वर्ग में हिम्मत नहीं उसे काट दे। चाहे वह दीपिका दोहा छंद हो या स्त्री तंत्र की व्याख्या।




हिंदुस्तान में ऐसी कहावतें प्रचलित हैं, कि "जब सौ पापी मरते हैं, तब एक औरत पैदा होती है।" और “औरत ही औरत की दुश्मन है।” और इस बात को सीना ठोक कर औरतें कहती है कि, “औरत औरत की दुश्मन है।” ऐसा बना दिया है हमने औरतों को वे खुद कहती हैं कि "औरत औरत की दुश्मन है।" और यह सब बातें हमें दी हैं «राम चरित्र मानस» ने और सभी पुराणों ने, जिसमें भर भर के स्त्रियों की बुराई लिखी है। विष्णु पुराण के पहले पन्ने पर ही यह बात अंकित है कि, “कलयुग में औरतें बाल खोलकर भ्रमण करेंगी।” बाल खोलना औरतों का क्या पाप है? या फिर खुले बालों को देखकर पुरुषों की निगाहों में जो पाप डोल जाता है, उस पर बंदिश लगाने की जरूरत है। ऐसे ही जाने कितनी मूर्खतापूर्ण बातें पुराणों में लिखी हैं। लेकिन उनका वर्चस्व उठाने के लिए वेदों के साथ उनका नाम जोड़ दिया जाता है, जबकि वेद  वैदिक काल में लिखे गए और पुराण सतयुग से लिखने शुरू हुए, जबसे भक्ति काल हमारी संस्कृति में आया। ऋषि मुनियों के पुरुष वर्ग ने जो कुछ भी लिख दिया, वह पत्थर की लकीर मानकर हम क्यों माने? यह अब हमें सोचने की जरूरत है। मेरी लिखी बातों को समझने का फायदा उन्हें हैं, जिन्हें भविष्य तय करना है, जो भविष्य निर्माण में अपना योगदान देना चाहते हैं। यदि भविष्य में पिता तत्व की स्थिरता चाहते हैं, तो मेरी लिखी बातों पर गौर कीजिए, नहीं तो इस दुनिया में सब कुछ होगा बस पिता तत्व ही नहीं होगा।


मैं अपने एक   व्याख्यान में कहा था "औरत औरत की दुश्मन होती है।" इस पर एक बार फिर आना चाहती हूं। वैसे तो मैं साहित्य जगत में मैं अपनी जिंदगी के अनुभवों को शेयर नहीं करती, क्योंकि लेखक जब लेखनी को लिखता है, तो वह जिस वर्ग पर लिख रहा है, उस वर्ग को अपने आप में  समाहित मानकर लिखता है, जैसे मैं लिखती हूं स्त्री जाति के लिए, तो संपूर्ण स्त्री जाति ही बनकर मैं चित्रण करती हूं, शब्दों का। इसलिए केवल अपने निजी अनुभवों को समाज पर कभी थोपना नहीं चाहिए कि, हमने ऐसा अनुभव किया है, तो सभी के लिए एक ही अनुभव से हम जिंदगी को तोलें। यह गलत है। लेखन जब ही कामयाब होता है, जब आप जिस समस्या को लेकर आए हैं, उस समस्या को दूर होने के उपाय, आप समाज को दे सकें, इसलिए किसी एक समस्या को समाज में रखकर सबको एक साथ नहीं तोला जा सकता, लिखने के पैटर्न का मापदंड यह होना चाहिए कि, आप जो समस्या रख रहे हैं, उसके क्या उपाय समाज में दे सकते हैं? 


अब आती हूँ, अपनी बात पर, "औरत औरत की दुश्मन होती है।" इस पर मैं अपना एक निजी अनुभव आपके साथ शेयर कर रही हूं। नजीबाबाद में मेरे दो सहेलियां है और उसी तरह से दो सहेलियां फेसबुक पर हैं। विचारों से हमारी ट्यूनिंग एक जैसी है। हम पांचो स्त्रियां हैं और एक दूसरे के लिए हम कुछ भी कर सकते हैं, जिसमें सबसे बड़ी बात है, एक दूसरे का सपोर्ट करना, बात कोई भी हो। हम एक दूसरे का सपोर्ट करके चलते हैं और शायद हमसे गहरी मित्रता किसी की नहीं हो सकती। हम चारों औरतें हैं और कहीं से कहीं तक एक दूसरे की दुश्मन नहीं है। इसके विपरीत यदि 4 औरतें एक घर में होती हैं, तो वे एक दूसरे की दुश्मन बनने लगती हैं। क्यों? क्योंकि उन्हें मॉनिटर करने वाला पुरुष वर्ग होता है। पुरुष वर्ग विवाह के पश्चात वचन देकर बंधता है कि, वह अन्य स्त्रियों का सम्मान माता के समान करेगा और अपनी पत्नी की बात को सर्वोपरि रखेगा। लेकिन इस वचन को भंग करते हुए अपनी पत्नी के अलावा पुरुष वर्ग घर की सभी औरतों को बढ़ावा देते हैं। जिससे तना कशी की शुरुआत होती है, तनाकशी का बीज बोकर पुरुष वर्ग एक तरफ खड़ा होकर तमाशा देखता है और धीरे-धीरे घर की चारों औरतें एक - दूसरे की दुश्मन हो जाती हैं। यह हकीकत है, क्योंकि पुरुष वर्ग के दिमाग में यह एक बात फीड है कि पत्नी पैरों की जूती होती है, उसे पैरों में ही रखना चाहिए। जिस घर में औरत, औरत की दुश्मन है, वहाँ वर्चस्व पुरुष का ही रहता है। कठपुतलियों की तरह मॉनिटर करता है, घर की औरतों को और इस बात को आज से पहले किसी ने नहीं लिखा फर्स्ट टाइम मैंने ही लिख रही हूँ। अब देखना यह है कि मेरा ऑब्जर्वेशन क्या रंग लाता है?


आपने यदि पढ़ा हो! मैंने स्त्री तंत्र में स्त्री के स्वभाविक गुणों पर चर्चा की है। सबसे प्रमुख स्वभाविक गुण स्त्री का सम्मान पर समर्पण है। जब उसे सम्मान मिलता है, तो वह अपना सर्वस्व निछावर कर देती है, सम्मान देने वाले पर। यह उसका स्वाभाविक गुण है। इसी के आधार पर वह चुनने की प्रक्रिया करती है। आपने समाज बनाकर उसके इस प्रक्रिया को बाधित किया और सिर्फ बाधित ही नहीं किया, सृष्टि की सारी प्रक्रिया को बदल दिया। स्त्री के स्वभाव की प्राथमिकता पर ही वैदिक काल में पति त्याग की परंपरा थी। आपने सब कुछ बदल दिया उसको अपने बनाए हुए समाज में रहने के लिए विवश किया ,लेकिन उसके स्वभाव को बदल नहीं पाए। स्त्री सदियों से आप के बनाए हुए समाज के सारे नियम सहती है, निभाती भी है, मरते दम तक। परंतु यह बात भी अटल सत्य है कि, यदि उसे अपने जीवनसाथी से सम्मान नहीं मिलता, तो वह मन से उसका त्याग कर देती। 


जिस तरह पुरुष वरीयता के चलते, हम मानव विकास क्रम में जानवर पैदा करने लगे हैं। उसी तरह एक दिन मन के त्याग के चलते हम पिता तत्व को विलीन कर देंगे। अगर इसे रोकना चाहते हैं, तो प्रत्येक पुरुष को उस स्त्री का सम्मान करना है, जिसे वह अपनी पत्नी के रूप में बिहा कर लाया है। 


आज आपके सामने "औरत, औरत की दुश्मन है" की एक व्याख्या और रख रही हूं। जब औरत इतनी स्वतंत्र थी कि, सृष्टि के विकास के लिए, वह एक से अधिक नरों का चुनाव कर सकती थी, जैसे मेनका ने राक्षस से ध्रुपद को पैदा किया और शकुंतला को विश्वामित्र से, तब औरत, औरत की दुश्मन नहीं थी, लेकिन जिस पल पुरुष ने अपने वर्चस्व के लिए, समाज की स्थापना की, तो यकायक "औरत, औरत की दुश्मन हो गई" आखिर क्या खेल चल रहा यह सब सदियों से? परंतु अब इस खेल का अंतिम दौर चल रहा है। यदि हमने खुशी से स्त्री तंत्र की स्थापना नहीं की, तो पिता तत्व का विलीनीकरण इस संसार में कोई नहीं रोक पाएगा।

बुधवार, 14 जुलाई 2021

स्त्री तंत्र की व्याख्या भाग 2 अध्याय चतुर्थ

 स्त्री तंत्र की व्याख्या भाग 2


( प्राकृतिक नियमों के अनुसार मानव विकास की प्रक्रिया के लिए सिद्धांतों का प्रतिपादन) 


           श्रीमती दीपिका महेश्वरी 'सुमन' अहंकारा

संस्थापिका सुमन साहित्यिक परी नजीबाबाद बिजनौर


अध्याय चतुर्थ


आप सभी के लिए एक और सवाल है कि सृष्टि कि, सभी जीवो में अपनी प्रजाति के विकास के लिए आखिर नर द्वारा ही मादा को क्यों रिझाया जाता है? मादा सृष्टि के विकास के लिए नर की विनय क्यों नहीं करती? इस एक सवाल पर बड़े-बड़े महारथियों की बुद्धि में उलझे सारे संशय धुल जाएंगे, जिन्होंने ब्रह्म के रूप में पुरुष तत्व को स्त्री जाति से ऊंचा स्थान दे मानवीय समाज के नियमों की संरचना की है। 


आपके लिए दूसरा सवाल, यदि प्राकृतिक नियम के अनुसार, अधिकांश मादाएं अपने हिस्से का सृजन कर, उस सृजन को छोड़कर चली जाती है और मादा के सृजन की रक्षा प्रकृति में योगिनियाँ करती हैं, तब इस प्राकृतिक नियम के ऊपर, आपने जो सामाजिक व्यवस्था की है, वह किस से पूछ कर की? क्या समाजिक व्यवस्था करने वाले प्राकृतिक नियम को गलत साबित कर रहे थे? यदि प्राकृतिक नियम पर उंगली उठाई गई, तो आपका अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा और वही हो रहा है, जिसने समाजिक व्यवस्था के लिए नियम तय किए, अर्थात पुरुष वर्ग, जिसने प्राकृतिक नियम के खिलाफ सामाजिक व्यवस्थाएं की हैं, उनका अपना अस्तित्व पिता के रूप में खतरे में पड़ रहा है।

यदि किसी से वार्तालाप करो, प्रकृति में उत्पन्न सभी जीवो के बारे में तो, वह पेड़ पौधों के बारे में बात करने लगता है, आखिर क्यों? क्या तुम पेड़ पौधे हो? एक बनस्पति हो? हो तो जीव ही ना! तो जीवों के जीवन चक्र के बारे में बात करके अपनी बात को सिद्ध करो! ना तो पेड़ पौधे बन सकते हो, नाहीं उनका जीवन चक्र जी सकते हो। जो तुम हो उस प्रकृति के बारे में बात करो! संसार के सभी प्राणी, जो सांस लेते हैं, भ्रमण करते हैं। वे भ्रमण कर अपना पालन पोषण करते हैं, परंतु पेड़ पौधे वनस्पतियों का जीवन चक्र प्राणियों से भिन्न है। वे भ्रमण कर जीवन व्यतीत नहीं करते और ना ही उन्हें किसी काम क्रिया से गुजरना होता है, इसलिए इस चर्चा में प्रकृति के केवल उन जीवो का ही वर्णन किया जाएगा, जो सृष्टि के  विकास के लिए काम क्रिया से होकर गुजरते हैं।


मानव जाति में उत्पन्न सभी जीवो का सबसे पहला प्रमुख कर्तव्य अपना संपूर्ण विकास हो जाने के बाद मानव सभ्यता का विकास करना है और यह विकास प्रकृति में, जिस नियम के आधार पर होता है, मानव जाति में जब तक, उस नियम का आधार लागू नहीं होगा, तब तक प्रकृति विनाश करती रहेगी, इसलिए सभी के लिए यह जानना जरूरी है, कि प्रकृति में जीवो का विकास किस प्रक्रिया के तहत किया जाता है और किस नियम से किया जाता है। इसका अध्ययन, प्रत्येक मनुष्य का मूलभूत कर्तव्य है। 


'तर्क और कुतर्क में अंतर' 

जब हम उन उदाहरणों का समावेश कर अपनी बात को सिद्ध करने की कोशिश करते हैं, जिस प्रकृति के हम हैं नहीं, जो जीवन हम जी नहीं सकते, तो वह कुतर्क के अंतर्गत आता है और जिस प्रकृति के हम हैं, जो जीवन हम जी सकते हैं, उसके आधार पर दिया गया कोई भी उदाहरण तर्कसंगत कहलाता है। 

एक बात और स्त्री अपने आप में इतनी विशाल है कि, वह प्रकृति में वनस्पति जैसा जीवन जीती है, मानव योनि में पैदा होने के बाद भी और पारिवारिक व्यवस्थाओं ने उसे जड़ तत्व के रूप में एक जगह रहने की व्यवस्था दी है, इसलिए वह पूर्ण रूप से वनस्पति पेड़ पौधों के जैसे अपना जीवन जीती है, इसलिए स्त्री अपने उदाहरणों में प्रकृति की वनस्पतियों का उदाहरण दे सकती है, लेकिन पुरुष ना तो पेड़ पौधों सा जीवन जीता है, ना ही वह उदाहरण दे सकता है। 

दूसरी बात, अक्सर पुरुष अपने आपको वृक्ष बता कर  यह उदाहरण देता है, कि जो वृक्ष फल फूलों से ज्यादा होता है, वह झुकता है तो यह उदाहरण उनके लिए बना ही नहीं है, इसलिए यह उदाहरण उनका कुतर्क है, क्योंकि उनके अंदर से कोई फल या फूल पैदा हुआ प्रत्यक्ष रुप से दिखाई नहीं देता। पुरुष सिर्फ स्रोत मात्र है और प्रकृति इस बात की गवाह है कि धरा में बीज कई तरह से बोया जाता है। वहीं इसके उलट स्त्री में फल फूल पैदा होते हुए, प्रत्यक्ष रुप से दिखाई देते हैं क्योंकि वह प्रकृति की तरह पैदा करती है वह स्वयं प्रकृति है। 

पुरुष वर्ग के कुतर्क पर की गई, जितनी व्यवस्थाएं हैं उनसे पिता तत्व तो जरूर उत्पन्न हुआ, लेकिन अब उस पिता तत्व के विलीनीकरण का समय आ गया है। 

यदि पिता तत्व का अस्तित्व चाहते हैं तो, मानव योनि के रहन-सहन के नियम स्त्री तंत्र पर आधारित कीजिए और उसके हिसाब से जीवन में व्यवस्थाएं कीजिए क्योंकि पुरुष प्रधान समाज तो सतयुग से, कलियुग तक चला आ रहा है, फिर भी आप पिता तत्व के विलीनीकरण को नहीं रोक पा रहे हैं, इसलिए अब यह जरूरी हो जाता है कि, पिता तत्व के विलीनीकरण को रोकने के लिए स्त्री तंत्र के हिसाब से जीवन के नियमों का निर्धारण हो।


प्रकृति का गहन अध्ययन करने पर, प्रकृति में उत्पन्न सभी जीव वयस्क होने पर, अपनी प्रजाति के विकास की ओर संलग्न होते हैं, और प्रकृति में उत्पन्न सभी जीवो के लिए एक नियम है, कि  इस विकास के लिए सभी प्रजातियों के नर उनकी प्रजातियों की मादाओं को तरह-तरह की क्रियाओं से रिझाते  हैं, ताकि वह सृष्टि में उनकी प्रजाति के विकास के लिए उनको अपना सहभागी बनाएं, और यह निर्णय मादा पर निर्भर होता है कि, वह किस नर के साथ मिलकर अपनी प्रजाति को विस्तार देती है, और इस नियम को सभी सर झुका कर मानते हैं, परंतु मानव योनि में इस नियम की अवहेलना की गई आखिर क्यों? क्या अवेहलना  यह सिद्ध करती है कि, जिसने प्रकृति के इस नियम की अवहेलना की उस के दिमाग में प्रकृति से ज्यादा बुद्धि है, नियम बनाने की उस पर चलने की। उससे भी ज्यादा बुद्धि!!! यह नियम सबसे पहले तोड़ा गया श्वेतकेतु ऋषि द्वारा, जिन्होंने अपनी मां पर प्रतिबंध लगाया और जिसे सारे पुरुष समाज ने एक स्वर में मान लिया। पुरुष वर्ग को बलशाली बनाने के लिए,  जिससे पुरुष वर्ग की ढीतता को बल मिलता चला गया। 

प्रकृति स्त्री तंत्र के हिसाब से चलती है। मानव योनि के अलावा, सभी जातियों के प्राणी, स्त्री तंत्र के हर नियम को मानते हैं। लोग यह तर्क देते हैं कि, इस को मानने वाले जानवर और पक्षी तथा कीड़े मकोड़े हैं। मेरा सवाल यह है कि, सभी प्रजाति के पशु पक्षी स्त्री तंत्र को मानने के बावजूद अपने स्वभाव से विचलित नहीं है, जबकि मानव अपने बनाए हुए नियमों पर चलकर दैत्य बनता जा रहा है, स्वभाव से और दैत्य ही पैदा कर रहा है। क्या इस बात पर सोचने की मानव को जरूरत नहीं है? जिसने प्रकृति के नियम के विपरीत सभ्यता का प्रादुर्भाव किया।

मेरा सवाल ये भी है कि, यदि प्रकृति में मादा जाति इतनी स्वतंत्र और स्वच्छंद है कि, वह एक से ज्यादा नर को प्रजाति के विकास के लिए चयन कर सकती है, तब मानव योनि में किस अधिकार से पुरुष वर्ग ने स्त्री जाति की स्वच्छंदता पर बंधन लगाए, जबकि पुरुष वर्ग स्त्री द्वारा ही पैदा किया जाता है। प्रकृति के नियम पर रोक लगाने की हैसियत ईश्वरीय सत्ता की भी नहीं, क्योंकि उन्होंने ही प्रकृतिक नियम बनाए हैं, फिर किस हक से पुरुष वर्ग ने यह नियम पलट दिए? क्या स्त्री के एक अंश मात्र बुद्धि से विकसित होने के बाद, पुरुष वर्ग की बुद्धि ज्यादा काबिल हो जाती है, इतनी काबिल कि, प्राकृतिक नियमों को बदल सकें। स्त्री की स्वच्छंदता को व्यभिचार का नाम देकर पलट देने की प्रवृत्ति, प्रकृतिक नियमों के अनुसार गुनाह है। स्त्री की मर्जी के बगैर स्त्री को छूना व्यभिचार कहलाता है, चाहे वह आपकी पत्नी ही क्यों ना हो। किसी भी पुरुष को यह अधिकार नहीं है कि वह अपनी कामेच्छा की पूर्ति के लिए किसी भी स्त्री को उसकी मर्जी के बगैर छू सकें। स्त्री की प्रकृतिक नियमों के विरुद्ध स्वच्छंदता पर बंधन लगाकर, पुरुष को वही स्वच्छंदता देने के कारण आज मानव जाति में दैत्यों की पैदाइश और समावेश बढ़ा है।

मुझे मेरे सवाल का जवाब अभी तक नहीं मिला कि, पुरुष में इतनी बुद्धि कैसे उत्पन्न हुई? कि वह प्राकृतिक नियम को बदलकर जीवन जी लेगा और अपना अस्तित्व बचा पाएगा। अपने कुतर्कों को साबित करने के लिए उसने परम ब्रह्म उत्पन्न कर दिया, जबकि यदि परब्रह्म पिता रूप में होता तो पिता द्वारा ही संतान पैदा होती। पिता केवल एक स्रोत  होता है। क्या इस सवाल को अब सोचने की जरूरत नहीं है, सारे जहान को!! क्योंकि केवल भारत ही संसार नहीं है, संसार में और भी देश हैं जो स्त्री तंत्र पर विद्यमान है। भारत में वैदिक हिंदू धर्म स्त्री शासित था, इसलिए वह महान था। जब तक भारत की नियमावली फिर से स्त्री तंत्र पर विद्यमान नहीं होती, तब तक वह विश्व गुरु नहीं बन सकता। 

किसी भी एक विद्वान को पुरुष वर्ग में यह नहीं पता कि, आखिर प्रकृतिक नियम को पलटने की बुद्धि पुरुष वर्ग में कहां से आई? और सदियों से शिक्षा दे रहा है, स्त्रियों को सही गलत दिशा बताकर दिशानिर्देशों पर चलने की। वाह रे मेरे हिंदुस्तान वाह! बहुत गजब का है तू।

मंगलवार, 13 जुलाई 2021

स्त्री तंत्र की व्याख्या भाग 2 अध्याय तृतीय

 स्त्री तंत्र की व्याख्या भाग 2

( प्राकृतिक नियमों के अनुसार मानव विकास की प्रक्रिया के लिए सिद्धांतों का प्रतिपादन)

श्रीमती दीपिका महेश्वरी 'सुमन' अहंकारा

संस्थापिका सुमन साहित्यिक परी नजीबाबाद बिजनौर



अध्याय तृतीय


दुर्गा सप्तशती कीलक स्त्रोत


मार्कंडेय जी कहते हैं, "विशुद्ध ज्ञान ही जिनका स्वरूप है, जो ज्ञान प्राप्ति के निमित्त हैं, अपने मस्तक पर अर्धचंद्र का मुकुट धारण किए हुए हैं, मैं उन भगवान शिव को मन कर्म वचन काया से नमस्कार करता हूं।" 


मंत्रों की सिद्धि में विघ्न उपस्थित करने वाले, श्राप रूपी कीलक का, जो निवारण करने वाला है, उसे संपूर्ण जानकारी उसकी उपासना करनी चाहिए। यद्यपि जो मनुष्य अन्य मंत्रों की साधना में लगातार लगा रहता है, वह भी कल्याण का भागी होता है। मंत्र को लगातार जपने से साधक के उच्चाटन कर्म आदि सिद्ध हो जाते हैं। वह जिस अभीष्ट वस्तु की इच्छा करता है, मंत्रो के प्रभाव से उसे अवश्य मिलती है, लेकिन जो साधक केवल दुर्गा सप्तशती से, दुर्गा मां की स्तुति करते हैं, उन्हें स्तुति मात्र से देवी दुर्गा की सिद्धि हो जाती है। देवी दुर्गा के सिद्ध साधकों को अपने अभीष्ट की प्राप्ति के लिए, किसी मंत्र की आवश्यकता नहीं होती। बिना मंत्र जप करे ही उनके सारे कर्म सिद्ध हो जाते हैं। वे जिस अभीष्ट वस्तु की इच्छा करते हैं, मां दुर्गा के प्रभाव से अवश्य मिलती है। तब लोगों के मन में शंका हुई, कि जब दुर्गा सप्तशती से, तथा अन्य मंत्र की साधना से समान रूप से कार्य सिद्ध होते हैं, तो इन में श्रेष्ठ कौन सा है? तब शंकरजी ने जिज्ञासु की शंका का निवारण करने हेतु, जिज्ञासु को समझाया कि यह दुर्गा सप्तशती सर्वश्रेष्ठ कल्याणमयी है। दुर्गा सप्तशती के सुनने से अशुणय पुण्य मिलता है। इसे सत्य जाने। इसके बाद महादेव जी ने इसे कीलित कर लोप कर दिया। जो पुरुष अपना सर्वस्व देवी मां के चरणों में अर्पित कर, फिर प्रसाद बुद्धि से संसार निर्माण हेतु ग्रहण करता है, उस पर देवी दुर्गा प्रसन्न होती हैं, अन्यथा देवी प्रसन्न नहीं होती। इस प्रकार प्रतिबंधक रूप कीलक द्वारा शिवजी ने इसे कीलित कर दिया।


आप सभी इस स्रोत को दुर्गा सप्तशती में पढ़ते होंगे, लेकिन पढ़ना काफी नहीं है। संसार में उत्पन्न हर नारी दुर्गा का प्रतिरूप है, वही दुर्गा का प्रतिरूप जिसे शिव जी ने कीलित कर रखा है, और प्रत्येक पुरुष का यह कर्तव्य है, कि वह उस कीलित दुर्गा रूप का निष्कीलन करने के लिए अपना सर्वस्व उस देवी के चरणों में अर्पित करें, और फिर प्रसाद बुद्धि से संसार निर्माण हेतु ग्रहण करें। तब वह स्त्री रूपी दुर्गा आप पर प्रसन्न हो आप पर अपना सर्वस्व निछावर कर, आपको अपने साथ मिलाकर संसार का निर्माण करेगी अन्यथा नहीं।


किताबों में लिखी हुई बातों की प्रतिमूर्ति बना, मंदिरों में पूजने से संसार का निर्माण नहीं होता। आदिशक्ति ने स्त्री के रूप में जो अपना प्रतिरूप इस धरा पर उतारा है, इंसान निर्माण के लिए। उसका आदर सत्कार करने पर ही संसार का निर्माण होगा। यह हर पुरुष को ध्यान रखना चाहिए, क्योंकि वह पुरुष स्त्री रूपी आदिशक्ति के अंदर से ही उत्पन्न हुआ है, इसलिए उस पुरुष का प्रथम कर्तव्य उस स्त्री का आदर करना है, जिसके साथ उसे संसार का निर्माण करना है। इसलिए अन्य मंत्रों के फेर में ना पढ़कर, सीधे-सीधे उस दुर्गा प्रति रूप का आदर करो, जिसके प्रसन्न होने पर इस संसार का निर्माण होना है। यही पुरुष तत्व का प्रथम कर्तव्य है।


स्त्री तंत्र की स्थापना पुरुष वर्ग के विचारों से नहीं होगी, इस बात को हमें समझना होगा, कि स्त्री तंत्र की स्थापना स्त्री के विचारों को समर्थन देने से होगी। आप सभी से एक सवाल और करना चाहती हूं कि, आप में से किसी ने भी, संसार में उत्पन्न किसी जीव के जीवन चक्र में मादा को नर की विनय करते हुए देखा है क्या? कि मुझे सृष्टि का विकास करना है, आप उस में सहयोग कीजिए। यदि कहीं ऐसा देखा हो तो बताइएगा जरूर!! परंतु ऐसा होता नहीं है। हर प्रजाति में नर मादा की विनय करता है, कि मैं तुम्हारे साथ मिलकर अपने इस प्रजाति का विकास करना चाहता हूं, मुझे मौका मिलना चाहिए। इसके लिए हर प्रजाति के नर तरह-तरह की क्रियाएं कर मादा को रिझाते हैं, और वही एक नियम हिंदू धर्म की विवाह रीति में भी है, कि सभी दिए जाने वाले वचन, जो सात हैं वह पुरुष द्वारा स्त्री को दिए जाते हैं, लेकिन कुछ लोगों की बेवकूफी ने इस नियम को उलट कर वचनों को स्त्री से भी मांगना शुरू कर दिया। यही विवाह रीति से छेद करने का दुष्परिणाम सामने आ रहा है। स्त्री को संसार निर्माण के लिए कोई भी निर्णय लेने की इजाजत ही नहीं रही, इसलिए ही मनुष्य में विनाश तत्व प्रबल हो रहा है, और भावना शून्य संतानें पैदा हो रही हैं। यदि हमने इस समस्या को गंभीरता से नहीं लिया, तो बहुत जल्दी हम ऐसी प्रजाति से मानव जाति को भर देंगे, जिसमें भावना नहीं होगी, इसलिए स्त्री जाति को जिसका कार्य निर्माण करना है, उसे अपना काम स्वयं करने दीजिए। यदि मानव के लिए मानव होने का अस्तित्व बचाना चाहते हैं। 


स्त्री तंत्र तो दस्तक दे चुका है, आर्टिफिशियल इनसेमिनेशन और स्पर्म बैंक के जरिए! जहां पिता तत्व कहीं भी नहीं होगा, मैं एक बार फिर दोहरा देना चाहती हूं कि स्पर्म बैंक वह जगह है जहां पुरुष वीर्य 10000 साल तक खराब नहीं होता, तब भी हम पिता तत्व को बचा नहीं सकते। मैं जो कर रही हूं, पिता तत्व को बचाने के लिए कर रही हूं, क्योंकि पिता तत्व स्त्री जाति के स्वरूप के तहत स्त्रियों ने ही उत्पन्न किया है, इसलिए उसकी रक्षा करना हर स्त्री का कर्तव्य है, समाज ने स्त्री जाति से उत्पन्न हुए पुरुष तत्वों को, पिता बना कर स्थापित किया और जिंदगी की धुरी को उस पिता के इर्द-गिर्द घुमा दिया। उस स्त्री की सहमति का कोई नाम नहीं जिसने पुरुष तत्व को उत्पन्न किया। यही कारण है कि, पिता तत्व विनाश की ओर जा रहा है, अगर उसका विनाश रोकना है, तो उसको उत्पन्न करने वाले स्त्री जाति की सोच को प्राथमिकता और प्रमुखता देनी ही होगी। तभी हम उस पिता तत्व को बचा सकते हैं, अन्यथा नहीं। 


मैं इस कार्य में सम्मिलित हूं क्योंकि मुझ से उत्पन्न प्रत्येक तत्व की रक्षा करना मेरा धर्म है, और जब तक संलग्न रहूंगी, जब तक मैं जीवित हूं। यदि अपने जीवन काल में मैं सफलता प्राप्त नहीं कर पाई, तो फिर और कोई स्त्री इस तरफ का रुख कभी करेगी ही नहीं और पिता तत्व हमेशा के लिए विलीन हो जाएगा इस धरा पर। सोचना आपको है कि, आपको इस मुद्दे को गंभीरता से लेना है या नहीं, क्योंकि मैं अकेले इस मुद्दे को खींचकर यहां तक लाई हूं और जब तक जीवित हूं तब तक आगे भी ले जाऊंगी। स्त्री तंत्र तो आ ही रहा है पिता तत्व के विलीनीकरण के साथ,परंतु मेरा कर्तव्य है, उस पिता तत्व को विलीन होने से बचाना और वह पिता तत्व स्त्री जाति की सोच और समझ पर ही बच सकेगा इस बात का ध्यान प्रत्येक पुरुष तत्व को रखना चाहिए ।इसलिए इस मुद्दे पर गंभीरता से सोचना हम सभी की जिम्मेदारी है।

रविवार, 11 जुलाई 2021

*ऑनलाइन गोष्ठी ग्रुप द्वारा 'एक शाम देश के नाम' काव्य-गोष्ठी का आयोजन*

 


*ऑनलाइन गोष्ठी ग्रुप द्वारा 'एक शाम देश के नाम' काव्य-गोष्ठी का आयोजन*



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नजीबाबाद, 12 जुलाई। सुप्रतिष्ठित साहित्यिक समूह ऑनलाइन गोष्ठी ग्रुप (सुमन परी) की ओर से आज गूगल मीट पर 'एक शाम देश के नाम' शीर्षक से काव्य-गोष्ठी का आयोजन किया गया। वरिष्ठ कवि आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' द्वारा प्रस्तुत माँ शारदे की वंदना से आरंभ हुई इस ऑनलाइन काव्य-गोष्ठी का संचालन समूह की संस्थापिका कवयित्री दीपिका माहेश्वरी 'सुमन' ने किया। कार्यक्रम में  जबलपुर से उपस्थित कवि आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'' ने देशप्रेम की अलख जगाते हुए कहा -  "मैं लड़ूँगा, मैं लड़ूँगा, मैं लड़ूँगा। लाख दागो गोलियाँ ,सर छेद दो, मैं नहीं बस्ता तजूँगा।" कानपुर के वरिष्ठ कवि विद्याशंकर अवस्थी 'पथिक' ने एक सैनिक की भावनाओं को कुछ इस प्रकार उकेरा - "मेरी अन्तिम अभिलाषा है सेना में भर्ती हो जाऊं। चीन,पाक सारे दुश्मनों को सीमा पर वहीं मिटा आऊं।।" लखनऊ के सुप्रसिद्ध रचनाकार नरेन्द्र भूषण ने देशभक्ति की अलख कुछ इस प्रकार जगाई - "हम न पीछे हटें शान की बात हो, आगे बढ़के सुनें ज्ञान की बात हो। हँसके सह लें सभी अपने नुकसान हम, गर कहीं देश के आन की बात हो।।"  मुरादाबाद के रचनाकार राजीव 'प्रखर' ने वीर सैनिकों को नमन करते हुए कहा - "लिये जाँ हाथ में अपनी, सजग हर बार रहते हैं। अड़े जिनके सदा सम्मुख, कई मझधार रहते हैं। उन्हें शत-शत नमन है जो, वतन के मान पर हरदम, लिपटने को तिरंगे में, खड़े तैयार रहते हैं।।" नजीबाबाद की कवयित्री व कार्यक्रम संचालिका दीपिका माहेश्वरी 'सुमन' ने देश के सैनिकों को कुछ इस प्रकार नमन किया - "जो शहीदों ने कुर्बां किया है, उस जज़बे को तुम ना भूलाना। जो आजा़दी का तोहफ़ा दिया है, उसे तुम माथे से लगाना। " मुरादाबाद की कवयित्री डाॅ. रीता सिंह ने सकारात्मकता को जगाने का प्रयास इस सुंदर रचना के साथ किया - "सोना चाँदी न उपहार चाहिए। हीरे मोती न शृंगार चाहिए। मुझको तो सबके ही चेहरों पर, खुशियाँ बड़ी बेशुमार चाहिए ।।" मुरादाबाद के ही अरविंद शर्मा 'आनंद' की भावनाएं इस प्रकार शब्दों में ढलकर निकलीं  -  "कुछ दिये जल उठे रौशनी के लिये। नूर ही नूर है ज़िन्दगी के लिये।।"  सभी प्रतिभागी रचनाकारों को स्मृति-चिह्न प्रदान कर सम्मानित किया गया।

दीपिका महेश्वरी 'सुमन' द्वारा अभार अभिव्यक्ति के साथ कार्यक्रम विश्राम  पर पहुँचा।


श्रीमती दीपिका महेश्वरी 'सुमन'अहंकारा

संस्थापक एवं संचालिका सुमन साहित्यिक परी

फोन नंबर 7060714750

( प्राकृतिक नियमों के अनुसार मानव विकास की प्रक्रिया के लिए सिद्धांतों का प्रतिपादन

 स्त्री तंत्र की व्याख्या भाग 2


( प्राकृतिक नियमों के अनुसार मानव विकास की प्रक्रिया के लिए सिद्धांतों का प्रतिपादन)


        श्रीमती दीपिका महेश्वरी 'सुमन' अहंकारा
संस्थापिका सुमन साहित्यिक परी नजीबाबाद बिजनौर


अध्याय द्वितीय



सृष्टि की उत्पत्ति के उद्देश्य से, सबसे पहले आदिशक्ति ने अपने सतोगुण से, जिस प्रकाश पुंज की उत्पत्ति कर, नर रूप स्थापित किया था, और उसे विवाह का प्रस्ताव दिया। तब वह विवाह प्रस्ताव, उस नर रूप द्वारा ठुकरा दिए जाने पर, आदिशक्ति ने अपने क्रोध से उसे पत्थर बना दिया। फिर उन्होंने रजोगुण से प्रकाश पुंज की उत्पत्ति कर,उसे नर रूप दिया। उसके भी विवाह प्रस्ताव ठुकरा देने पर, उसे पत्थर बना दिया और वे दोनों पर पत्थरों प्रकाश पुंज आज भी ब्रह्मांड में तैर रहे हैं। इन सब का तात्पर्य यही है कि जो पुरुष स्त्री रूप शक्ति का कहना नहीं मानेगा, उसे पत्थर रुपी जीवन जीना ही पड़ेगा, क्योंकि आदिशक्ति ने नर रूप का प्रकाश पुंज इसलिए ही विकसित किया है कि वह स्त्री जाति की सेवा कर सके। स्त्री की हुकूमत को सर झुका कर माने।


हम अक्सर पढ़ते हैं, अणुओं के संघनन से द्रव्य का निर्माण होता है, और यह बात हमें तब पता चलती है, जब हम पूर्ण रूप से स्वस्थ हो, किताबी ज्ञान अर्जित करने के काबिल होते हैं, परंतु स्त्री ज्ञान का भंडार है, जो अणुओं का संघनन कर मानव की उत्पत्ति करके देती है। यह प्रयोगात्मक उदाहरण सबसे बड़ा उदाहरण है। इस बात का कि, स्त्री समस्त ज्ञान का भंडार है। यह ज्ञान अदिति माता ने स्त्री के अंदर स्वयं प्रवाहित किया है, और जब वह परिपक्व नारी के रूप में परिवर्तित होती है, तो इस ज्ञान की हरपोर स्वयं उसमें खुलती जाती है, परंतु पता नहीं क्यों भारतीय हिंदू व्यवस्था में हर कार्य प्रकृति से उलट रखा गया है? कुछ बातों को सोच कर तो हंसी आती है। भारतीय हिंदू धर्म में क्रोधित काली की पूजा होती है, और स्त्रियों पर हमेशा धैर्य रखने का ज्ञान बघारा जाता है, और तो और उस क्रोधित काली पर मदिरा चढ़ाई जाती है। इसका मतलब यही है कि हिंदू धर्म में स्त्री जाति मदिरापान कर सकती है, परंतु पुरुषों के लिए मदिरापान निषेध है, लेकिन समाज में जो स्थापना की गई वह इससे बिल्कुल उलट है दूसरी बात महादेव शिव शंकर के साथ जितने भी गण मौजूद हैं, और भांग के खुमार को उनका आवरण बताया गया है। वह सब भूतों की श्रेणी में आते, मानव जाति की नहीं।  महादेव शिव शंकर जो स्वयं अदिति माता के अंश हैं, वह तटस्थ सन्यासी के रूप में यानी योग निद्रा में लीन, इस सृष्टि की सुरक्षा कवच के द्वार पालक हैं, और संरक्षक यानी सेवक के रूप में विद्यमान हैं, पार्वती मैया की सेवा में। जो प्रलय के समय अपने सभी नेत्रों को खोल कर संघारकर्ता का रूप धारण कर लेते हैं। आज के समाज पर हावी होती निराशावादीता यह साबित करती है, कि मानव के सृजन में स्त्री रूपी सृजन और विनाशक रूपी पुरुष का जो तालमेल है, उसमें विनाशक तत्व हावी है, क्योंकि स्त्री को यह निर्णय लेने की आजादी ही नहीं रही, कि उसे अपने द्वारा उत्पन्न मानव को किस प्रकार के अणुओं का संघनन कर उत्पन्न करना है, जबकि यह अधिकार सिर्फ और सिर्फ स्त्री का ही होना चाहिए। 


जिस प्रकार स्त्री का धर्म है, इस धरा पर आकर मानव जाति के विकास करने के लिए, उस विकास के हर क्रम को पूरा करना। उसी प्रकार पुरुषों का भी पहला कर्तव्य यही है, कि अपने आप को इस योग्य बनाएं, कि उनके अणुओं के संघनन से स्त्री मानव जाति का विकास कर सके। जो स्त्री के अंश से पैदा हुआ है, यदि उसने मानव विकास के क्रम में स्त्री का सहयोग नहीं किया, तो उसका जीवन निरर्थक है। यदि वह इस योग्य अपने आप को नहीं बना पाया, कि स्त्री खुद उसका चयन कर उसके अणुओं से मानवजाति का विकास करें, तब भी उसका जीवन निरर्थक है। सीखने की आवश्यकता पुरुषों को इसलिए है, कि पुरुष वह तत्व है जिसे स्त्री ने पैदा किया है। जो लोग इस विचार को रखते हैं, कि पैदा करने वाला ईश्वर है और हमारा शरीर पांच तत्वों से मिलकर बना है, तो उनके लिए मैं सिर्फ यही कहना चाहूंगी कि आप की देह किस प्रकार तैयार हुई है, वह सिर्फ वह स्त्री जानती हैं, जिसने अणुओं की संघनन से आपकी देह को तैयार किया है, और कोई नहीं। 

इस पर एक प्रश्न और आएगा, जीवन मृत्यु ईश्वर के हाथ है, ईश्वर वह है जिसमें सृजन और विनाश दोनों ही रूप मिले होते हैं, जिसे हम अर्धनारीश्वर कहते हैं। इसमें स्त्री के सृजन रूप और महादेव के विनाश रूप को मिला कर, जो प्रतिमा बनती है, सही मायनों में वह ईश्वर है। उसी तरह अदिति माता की प्रतीक स्त्री जाति को सृजन का कार्य सौंपा है, और वह अपना कार्य परिपूर्ण ढंग से कर रही है।  विनाश रूप महादेव का है,  वही पुरुषों के तत्वों में समाया हुआ है,  यदि उसे यह नहीं पता कि मृत्यु क्या है? इसका मतलब यही है कि उसने अपना कार्य ठीक तरह से नहीं किया, इस संसार में आकर, क्योंकि पुरुष जाति इस पर मंथन कभी करती ही नहीं। उसने अपना प्रमुख कार्य खुद ही नियुक्त कर लिया, स्त्री जाति को नीचे दिखाना, उसका प्रमुख कार्य हो गया। इसलिए वह इस बात को जान नहीं पाया कि मृत्यु क्या है, जबकि वह विनाश रूपक अंश है, तो उसे भली-भांति यह पता होना चाहिए, कि मृत्यु क्या है? हम जब ही सही मायने में हम संसार की स्थापना कर सकेंगे, जिस दिन पुरुष यह समझ गया कि मृत्यु क्या है? तब वह अपने इस संसार को पालने का कर्तव्य प्रमुखता से निभाने लगेगा5 जिस प्रकार शिव शंकर महादेव द्वार पालक की तरह से इस पृथ्वी की प्रलयकाल तक रक्षा करते हैं। ठीक उसी तरह मृत्यु को जानने के पश्चात, पुरुष भी इस संसार में उत्पन्न संतानों को पालना, अपना प्रमुख कर्तव्य समझने लगेगा। जिस दिन पुरुष पिता की जगह पालक कर्तव्य निभाने लगेगा, उस दिन से यह संसार सुचारू रूप से अपनी गति को बहता जाएगा। 


पुरुष तत्व विनाश रूप है, इसलिए ही उसके अनुसरण से मानव जाति विनाश की तरफ जा रही है। स्त्री सृजन का रूप है इसलिए आते हुए स्त्री काल की महत्ता को समझिए और स्त्री जाति का अनुसरण कीजिए तथा निर्माण की ओर अग्रसर होइए।

पुरुष विनाश रूप है, इसलिए स्वयं मृत्यु है परंतु स्त्री सृजन रूप है इसलिए ही वह मृत्यु को जीतकर, मृत्यु के अणुओं का संगठन कर मानव जाति का निर्माण करती है, और मृत्यु को जीत कर ही मानव को जन्म देती है, और मृत्यु के कारणों से बने होने के कारण ही मानव जाति का जीवन चक्र जन्म से शुरू हो मृत्यु पर खत्म होता है, इसलिए यदि चाहते हैं कि यह जीवन चक्र यूं ही चलता रहे, तो पुरुष तत्व को अपने को इस काबिल बनाना होगा, कि स्त्री उसके अणुओं के गठन से मानव जाति का निर्माण कर सकें। 

सभी से एक सवाल... इस संसार में जितने भी प्राणी हैं, जो सांस ले रहे हैं उनकी उत्पत्ति मादा जाति से हुई है, लेकिन उनमें कहीं भी पिता शब्द नहीं है, सिवाय मानव जाति के क्या कोई भी एक व्यक्ति मुझे यह बता सकता है? मानव के अतिरिक्त प्राणियों में पिता तत्व की धारणा क्यों नहीं है? यदि प्रकृति के किसी प्राणी में पिता तत्व की धारणा नहीं है, तो मनुष्य ने फिर किस आधार पर पिता तत्व को प्रमुखता दी और क्यों प्रकृति के नियम को उलट दिया। 


यह संसार केवल सतयुग से प्रारंभ नहीं हुआ, वैदिक काल से भी पहले से प्रारंभ है। तब ना तो मां थी, ना पिता था। फिर मानव योनि में मानव ने बुद्धि लगाकर मां-बाप की परिधि क्यों तय की? यही उसका सबसे बड़ा दोष है। यह संसार असीमित आकाश और धरा से युक्त असीमित संसाधनों से युक्त है, फिर हमने माता-पिता का घेरा बनाकर जो निर्णय लेने की गलती की है, वही मानव जाति के विनाश का सबसे बड़ा कारण है। क्या बिना माता-पिता के घेरे के सृष्टि का विकास नहीं हो रहा था, जो सबसे पहले श्वेतकेतु ऋषि ने माता-पिता का बंधन बना कर परिवार का आवरण ओढ़ाया? क्या कर लिया यह बंधन तय करके हमने? प्रकृति को कुछ काल तक छुपाया जा सकता है, समाप्त नहीं कर सकते आप। आज सतयुग, द्वापर युग, त्रेता युग, कलयुग जीने के बाद आर्टिफिशियल इनसेमिनेशन स्पर्म बैंक जैसी टेक्नोलॉजी आ गई क्या कर लिया किसी ने?

 "स्पर्म बैंक वो जगह है जहां पर पुरुष का वीर्य 10000 साल तक खराब नहीं होगा।"


 उससे स्त्री बच्चे पैदा कर सकती है, फिर पिता कहां से लाओगे? पुरुष का जीवन नारी से शुरू होकर नारी पर खत्म होता है, इसलिए उसे नारी का कहा मानना है, यही प्राकृतिक नियम है लेकिन उसने नारी पर अपने नियम थोप कर नारी या प्रकृति को रोकने की कोशिश की है, जिसका खामियाजा भुगत रहा है। प्रकृति अपने ऊपर हुए अन्याय को ना तो बर्दाश्त करती है, ना ही कभी अन्याय करने वाले को माफ करती है

बुधवार, 7 जुलाई 2021

कैबिनेट मंत्री (New Cabinet ministers)2021

 कैबिनेट मंत्री (New Cabinet ministers)2021




1. राजनाथ सिंह - रक्षा मंत्री

2. अमित शाह - गृह मंत्री और सहकारिता मंत्री

3. नितिन जयराम गडकरी - सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री

4. निर्मला सीतारमण - वित्त मंत्री और कॉर्पोरेट मामलों के मंत्री

5. नरेंद्र सिंह तोमर - कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री

6. डॉ. सुब्रह्मण्यम जयशंकर - विदेश मंत्री

7. अर्जुन मुंडा - जनजातीय मामलों के मंत्री

8. स्मृति जुबिन ईरानी - महिला एवं बाल विकास मंत्री

9. पीयूष गोयल - वाणिज्य और उद्योग मंत्री, उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्री और कपड़ा मंत्री

10. धर्मेंद्र प्रधान - शिक्षा मंत्री, कौशल विकास और उद्यमिता मंत्री

11. प्रल्हाद जोशी - संसदीय कार्य मंत्री, कोयला मंत्री, और खान मंत्री

12. नारायण तातू राणे - सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्री

13. सर्बानंद सोनोवाल - बंदरगाह, जहाजरानी और जलमार्ग मंत्री, आयुष मंत्री

14. मुख्तार अब्बास नकवी - अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री

15. वीरेंद्र कुमार - सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री

16. गिरिराज सिंह - ग्रामीण विकास मंत्री, और पंचायती राज मंत्री

17. ज्योतिरादित्य एम. सिंधिया - नागरिक उड्डयन मंत्री

18. रामचंद्र प्रसाद सिंह - इस्पात मंत्री

19. अश्विनी वैष्णव - रेल मंत्री, संचार मंत्री, और इलेक्ट्रॉनिक्स-सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री

20. पशुपति कुमार पारस - खाद्य प्रसंस्करण, उद्योग मंत्री

21. गजेन्द्र सिंह शेखावत - जल शक्ति मंत्री

22. किरण रिजिजू - कानून और न्याय मंत्री

23. राज कुमार सिंह - विद्युत मंत्री, और ऊर्जा मंत्री

24. हरदीप सिंह पुरी - पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री, और आवास और शहरी मामलों के मंत्री

25. मनसुख मंडाविया - स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री, और रसायन और उर्वरक मंत्री

26. भूपेंद्र यादव - पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री, और श्रम और रोजगार मंत्री

27. महेंद्र नाथ पाण्डेय - भारी उद्योग मंत्री

28. पुरुषोत्तम रूपाला - मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्री

29. जी. किशन रेड्डी - संस्कृति मंत्री, पर्यटन मंत्री, और पूर्वोत्तर क्षेत्र के विकास मंत्री

30. अनुराग सिंह ठाकुर - सूचना और प्रसारण मंत्री, और युवा मामले और खेल मंत्री


राज्य मंत्री (MoS in Modi Cabinet)


1. श्रीपद येसो नाइक - बंदरगाह, जहाजरानी और जलमार्ग मंत्रालय में राज्य मंत्री; और पर्यटन मंत्रालय में राज्य मंत्री

2. फग्गनसिंह कुलस्ते - इस्पात मंत्रालय में राज्य मंत्री, और ग्रामीण विकास मंत्रालय में राज्य मंत्री

3. प्रहलाद सिंह पटेल - जल शक्ति मंत्रालय में राज्य मंत्री, और खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय में राज्य मंत्री

4. अश्विनी कुमार चौबे - उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय में राज्य मंत्री, और पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय में राज्य मंत्री

5. अर्जुन राम मेघवाल - संसदीय कार्य मंत्रालय में राज्य मंत्री, और संस्कृति मंत्रालय में राज्य मंत्री

6. जनरल (सेवानिवृत्त) वी. के. सिंह - सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय में राज्य मंत्री, और नागरिक उड्डयन मंत्रालय में राज्य मंत्री

7. कृष्ण पाल - विद्युत मंत्रालय में राज्य मंत्री,  और भारी उद्योग मंत्रालय में राज्य मंत्री

8. दानवे रावसाहेब दादाराव - रेल मंत्रालय में राज्य मंत्री, कोयला मंत्रालय में राज्य मंत्री, और खान मंत्रालय में राज्य मंत्री

9. रामदास अठावले - सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय में राज्य मंत्री

10. साध्वी निरंजन ज्योति - उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय में राज्य मंत्री, और ग्रामीण विकास मंत्रालय में राज्य मंत्री

11. डॉ. संजीव कुमार बाल्यान - मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय में राज्य मंत्री

12. नित्यानंद राय - गृह मंत्रालय में राज्य मंत्री

13. पंकज चौधरी - वित्त मंत्रालय में राज्य मंत्री

14. अनुप्रिया सिंह पटेल - वाणिज्य मंत्रालय में राज्य मंत्री

15. एस. पी. सिंह बघेल - कानून और न्याय मंत्रालय में राज्य मंत्री

16. राजीव चंद्रशेखर - कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय में राज्य मंत्री, और इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय में राज्य मंत्री

17. शोभा करंदलाजे - कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय में राज्य मंत्री

18. भानु प्रताप सिंह वर्मा - सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय में राज्य मंत्री

19. दर्शन विक्रम जरदोश - कपड़ा मंत्रालय में राज्य मंत्री, और रेल मंत्रालय में राज्य मंत्री

20. वी. मुरलीधरन - विदेश मंत्रालय में राज्य मंत्री, और संसदीय कार्य मंत्रालय में राज्य मंत्री

21. मीनाक्षी लेखी - विदेश मंत्रालय में राज्य मंत्री, और संस्कृति मंत्रालय में राज्य मंत्री

22. सोम प्रकाश - वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय में राज्य मंत्री


23. रेणुका सिंह सरुता - जनजातीय मामलों के मंत्रालय में राज्य मंत्री 

24. रामेश्वर तेली - पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय में राज्य मंत्री, और श्रम और रोजगार मंत्रालय में राज्य मंत्री

25. कैलाश चौधरी - कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय में राज्य मंत्री

26. अन्नपूर्णा देवी - शिक्षा मंत्रालय में राज्य मंत्री

27. ए. नारायणस्वामी - सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय में राज्य मंत्री

28. कौशल किशोर - आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय में राज्य मंत्री

29. अजय भट्ट - रक्षा मंत्रालय में राज्य मंत्री, और पर्यटन मंत्रालय में राज्य मंत्री

30. बी एल वर्मा - उत्तर पूर्वी क्षेत्र के विकास मंत्रालय में राज्य मंत्री, और सहकारिता मंत्रालय में राज्य मंत्री

31. अजय कुमार - गृह मंत्रालय में राज्य मंत्री

32. देवुसिंह चौहान - संचार मंत्रालय में राज्य मंत्री

33. भगवंत खुबा - नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय में राज्य मंत्री, और रसायन और उर्वरक मंत्रालय में राज्य मंत्री

34. कपिल मोरेश्वर पाटिल - पंचायती राज मंत्रालय में राज्य मंत्री

35. प्रतिमा भौमिक - सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय में राज्य मंत्री

36. डॉ. सुभाष सरकार - शिक्षा मंत्रालय में राज्य मंत्री

37. डॉ. भागवत किशनराव कराड - वित्त मंत्रालय में राज्य मंत्री

38. डॉ. राजकुमार रंजन सिंह - विदेश मंत्रालय में राज्य मंत्री, और शिक्षा मंत्रालय में राज्य मंत्री

39. डॉ. भारती प्रवीण पवार - स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय में राज्य मंत्री

40. बिश्वेश्वर टुडू - जनजातीय मामलों के मंत्रालय में राज्य मंत्री, और जल शक्ति मंत्रालय में राज्य मंत्री

41. शांतनु ठाकुर - बंदरगाह, जहाजरानी और जलमार्ग मंत्रालय में राज्य मंत्री

42. डॉ. मुंजापारा महेंद्रभाई - महिला एवं बाल विकास मंत्रालय में राज्य मंत्री, और आयुष मंत्रालय में राज्य मंत्री

43. जॉन बारला - अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय में राज्य मंत्री

44. डॉ. एल. मुरुगन - मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय में राज्य मंत्री,  और सूचना और प्रसारण मंत्रालय में राज्य मंत्री

45. निसिथ प्रमाणिक - गृह मंत्रालय में राज्य मंत्री, और युवा मामले और खेल मंत्रालय में राज्य मंत्री

डा. दीपक शर्मा बने राष्ट्रीय लोकराज पार्टी केजिला मीडिया प्रभारी मथुरा

 वर्तमान में राजनैतिक दलों द्वारा लोकतंत्र का मखोल उड़ा रखा है लोकतंत्र की बेहतरी के लिए लोकराज की स्थापना आवश्यक हो गयी है।

राष्ट्रीय लोकराज पार्टी लोकराज की स्थापना के लिए दृण संकल्पित है ।

भगवान श्री कृष्ण की जन्मस्थली से लोकराज की स्थापना का आगाज करते हुए राष्ट्रीय लोकराज पार्टी ने पार्टी का विस्तार किया है ।

डॉ. दीपक शर्मा जो कि शिक्षाविद है को जिला मीडिया प्रभारी का दायित्व सौंपा गया है।

राष्ट्रीय लोकराज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मनोज चौधरी व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मृदुल शर्मा ने पार्टी में दीपक शर्मा जी को यह उत्तरदायित्व दिया है।


प्राकृतिक नियमों के अनुसार मानव विकास की प्रक्रिया के लिए सिद्धांतों का प्रतिपादन

 स्त्री तंत्र की व्याख्या भाग 2


( प्राकृतिक नियमों के अनुसार मानव विकास की प्रक्रिया के लिए सिद्धांतों का प्रतिपादन)

            श्रीमती दीपिका महेश्वरी 'सुमन' अहंकारा
      संस्थापिका सुमन साहित्यिक परी नजीबाबाद बिजनौर


 अध्याय प्रथम



जब मुझे इस बात का एहसास हुआ, कि मानव योनि में से पिता और पति तत्व दो पीढ़ियों के बाद अंत हो जाएंगे, तब मैंने इस अध्ययन को प्राथमिकता से आरंभ किया, पिता और पति तत्व को बचाने के लिए, और इसके लिए जो भी तरीका इन तत्वों को बचाने के लिए प्राकृतिक नियमों के अनुसार कारगर लगा, उसे अपने अध्ययन में सम्माहित करती चली गई। 


 आजकल मैं 2 सिद्धांतों पर कार्य कर रही हूं पहला:


हिंदू धर्म के अनुसार स्त्री एक प्राकृतिक नियम है, जिसे उसके अनुरूप निभाकर, जीवन व्यतीत करना पुरुष का कर्तव्य है। इसकी व्याख्या करते हुए मैंने स्त्री तंत्र की व्याख्या नामक पुस्तक लिखी है। 


दूसरा पैदा होती भावना शून्य संतानों के लिए है:


जिसके अनुसार, आदि शक्ति को सृजनात्मक तत्व  तथा शिव शंकर को विनाशक तत्व के रूप में माना है, क्योंकि आदिशक्ति  सृजन करती हैं  और महादेव  संघारकर्ता के रूप में जाने जाते हैं। इसके अनुसार  स्त्री को  सृजन तत्व के रूप में तथा पुरुष को विनाशक तत्व की प्रबलता के रूप में रखा गया है। स्त्री  मानसिक संतुष्टि  के पश्चात शारीरिक वरीयता को  प्राथमिकता देती है  अन्यथा नहीं। यह बात स्त्री तंत्र की व्याख्या में सिद्ध कर चुकी हूं, इसलिए:


" स्त्री यदि स्वतंत्र और स्वच्छंद नहीं है, तो वह अपने आने वाली संतानों में अपने सृजनात्मक तत्व को प्रधानता प्रबलता से नहीं रख पाती, जिससे संतानों में पुरुष के विनाशक तत्व की प्रबलता रहती है।" 

अत: "काम क्रिया में स्त्री की क्रियाशीलता होने वाली संतानों में भावनात्मक पक्ष को मजबूती प्रदान करती है।"


यह विषय स्त्री तंत्र मुझे भारतीय संस्कृति का अध्ययन करते हुए प्राप्त हुआ था। इस विषय का अध्ययन करने पर मैंने पाया, कि स्त्री तंत्र कोई विषय नहीं एक नियम है। जिस पर यह सृष्टि चलती है, फिर मैंने अपने इस अध्ययन को प्रकृति के प्रत्येक जीव के जीवन चक्र से जोड़ दिया, और प्रकृति में उत्पन्न सभी जीवो का जीवन चक्र पढ़ने के पश्चात मैंने यह दो सिद्धांत तैयार किए हैं, और इन पर वर्क कर रही हूं शोध कर रही हूं। अपने अध्ययन का कुछ हिस्सा आपके साथ भी शेयर कर रही हूं। 



जब कोई नया विषय आता है, तब लोग उस विषय को गलत सिद्ध करने में कोई कसर नहीं छोड़ते, लेकिन मेरा यह चैलेंज है, समस्त पुरुष वर्ग को आप मुझे पुरुष  वर्चस्व  पर जीवन चक्र जीने वाले जानवर को लाकर दे दो, तो मैं अपना अध्ययन नहीं रोक दूंगी। इस चैलेंज पर ही मैंने दोनों सिद्धांत तैयार किए हैं। इसलिए इन सिद्धांतों के विपक्ष में बोलने से पहले मेरे चैलेंज को पूरा करना होगा, तब आप इन सिद्धांतों के विरुद्ध बोल सकते हैं अन्यथा नहीं।


जब भी कोई सिद्धांत पारित होता है तब उस पर सबसे पहले लिखने वाले को पागल करार कर देती है, दुनिया। यह बात हमें इतिहास बहुत अच्छी तरह बताता है। जब भी कोई नियम पारित किया गया उस पर सबसे पहले बोलने वाले को इस समाज में इस दुनिया ने पागल करार किया। 


न्यूटन एडिसन सभी इसी खेमे में आते हैं। जिस प्रकार न्यूटन की खोज एक सिद्धांत है। उसी प्रकार मेरा यह कहना एक नियम है, एक सिद्धांत है कि:


"यदि स्त्री स्वतंत्र और स्वच्छंद नहीं है तो वह अपने सृजनात्मक पक्ष को आने वाली संतान में प्रबलता से नहीं रख पाती, जिससे संताने भावनात्मक पक्ष में शून्य स्तर पर होती हैं।" 


अर्थात् "काम क्रिया के दौरान मादा की क्रियाशीलता होने वाली संतान में भावनात्मक पक्ष की मजबूती के लिए बहुत जरूरी है।"


यह नियम मानवों के मुख्य नियमों में से एक है। इस नियम को फॉलो करने से अनुवांशिकता के लक्षणों में भी फर्क पड़ेगा, जिससे समाज में बहुत फर्क पड़ेगा। हम सभी इस नियम को फॉलो नहीं करते इसलिए होने वाली संतानों को हम उदाहरण के रूप में प्रस्तुत कर सकते हैं। इस नियम पर होने वाली संतान तथा इस नियम के विरुद्ध होने वाली संतानों के स्वभाव और लक्षणों को शोध के अंतर्गत अध्ययन कर आप खुद ब खुद एक सही निष्कर्ष पर पहुंचेंगे। हमारे वैज्ञानिकों को इस में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेना चाहिए ताकि मेरे दिए गए सिद्धांत को प्रयोगों द्वारा सिद्ध कर नियम के रूप में स्थापित कर सकें। 


मेरे द्वारा पारित किए गए सिद्धांत पर कोई इफ या बट की गुंजाइश नहीं, क्योंकि स्त्री मानसिक संतुष्टि के पश्चात ही शारीरिक समर्पण को वरीयता देती है, और मैं यह भी सिद्ध कर चुकी हूं कि स्त्री विशाल बुद्धि का सागर है, और उसकी बुद्धि पर सवाल उठाने की औकात, उसके द्वारा पैदा किए गए पुरुष वर्ग में नहीं है। 

संसार में पुरुष तत्व स्त्री द्वारा पैदा किया जाता है, और उस तत्व का काम है, स्त्री के कोमल तन और मन की रक्षा करना। स्त्री का संरक्षण यानी सेवक के तौर पर ध्यान रखना। जो पुरुष इस तरह से समाज का निर्माण करते हैं कि वह स्त्री के कोमल तन और मन की रक्षा की जा सके वह अपना धर्म निभाते हुए इस दुनिया से विदा होते हैं। तब हम उनके जन्म को एक उत्सव की तरह मनाते हैं, परंतु यह भूल जाते हैं कि उस पुरुष तत्व को एक स्त्री ने पैदा किया है, जिसने अपने जीवन को मौत की डगर पर ले जाकर ऐसे पुरुष तत्वों को जन्म दिया, हम ना तो उन स्त्रियों का नाम जान पाते हैं ना ही कभी उनकी बड़ाई में दो शब्द भी कहते हैं, और तो और हंसी आती है मुझे, जन्म गुरु गोविंद सिंह की पत्नी ने अपने बच्चों को दिया  और नाम गुरु गोविंद सिंह के  का पूजा जाता है, इस भारत देश में।  यही पुरुषवादिता  खत्म करने का बीड़ा उठाया है इस दीपिका महेश्वरी सुमन  ने। आज मैं उन सभी स्त्रियों को नमन करती हूं जिन्होंने मां के रूप में मदन मोहन मालवीय, अटल बिहारी वाजपेई, ईसा मसीह, और गुरु गोविंद सिंह को जन्म दिया और गुरु गोविंद सिंह जी की पत्नी, जिन्होंने चार ऐसे बच्चों को जन्म दिया, कि वह बच्चे अपना बलिदान कर पाए ऐसी वीरांगना को मैं शत-शत नमन करती हूं। 


जो लोग आध्यात्म का रोना रोते हैं, और अध्यात्म के रास्ते में स्त्रियों को सबसे बड़ी बाधा समझते हैं। उन्हें बता देना चाहती हूं कि ईश्वर की जिस तरह उपासना करो, उसी रूप में आकर इंसान की रक्षा करते हैं। मैं स्वयं अदिति माता के अंश, महादेव शिव शंकर को भाई के रूप में मानती हूँ, और उनको राखी बांधती हूं और सच मानिए ! मुझे रोज रोज मंदिर जाकर घंटे बजाने की आवश्यकता नहीं पड़ती। उनकी कलाई पर बांधा हुआ रक्षा धागा, मेरी पल प्रतिपल रक्षा करता है और गर्व के साथ कहती हूं, कि वे मेरे भाई की तरह मेरी और मेरे परिवार की रक्षा करते हैं। सभी जानते हैं ईश्वर की मर्जी के बगैर एक पत्ता नहीं हिलता। मैं जो कुछ करती हूं, लिखती हूं। यह सब ईश्वरीय प्रताप है, और स्त्री तंत्र के अनुसार आदिति माता ईश्वरीय रूप हैं, जिन्होंने इस संसार की रचना की है, तथा  अपने ही अंश महादेव को अपने साथ संलग्न  कर  ईश्वरीय युग्म की स्थापना कर, संसार का संचालन करती हैं, और कालांतर में वही इस संसार का भक्षण करेंगी। इसलिए जब तक स्त्रियां यह बात नहीं समझेंगी कि पुरुष तत्व उनके द्वारा पैदा किया हुआ एक तत्व है, जो उनके संरक्षण के लिए सेवा के लिए पैदा हुआ है। तब तक वे अपनी दशा नहीं सुधार सकती। जिस दिन स्त्रियां यह बात अपने अंदर धारण कर लेंगी और अपनी योग्य  संसारी पुरुष तत्व को चुनकर मानव विकास के क्रम को आगे बढ़ाएंगी, तो संसार में उत्पन्न कोई भी पुरुष उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकता।


आजकल समाज में एक बड़ा प्रश्न भावनात्मक लुप्तता का उभर कर आ रहा है, जोकि आना स्वभाविक ही है, और लोगों का यह सवाल भी जायज है, कि आसमान, धरा, दसों दिशाएं, सूरज, चांद, सितारे, हम (यानी मानव) सभी एक साथ रहते हुए भी, हम मानवों के स्वभाव में इतना बड़ा अंतर कैसे आ गया, कि हम धीरे-धीरे भावना शून्य होते जा रहे हैं? मैंने इस तथ्य की विश्लेषणात्मक विस्तृत व्याख्या स्त्री तंत्र में की है, इसलिए ही मैं बार-बार आप सभी से  आग्रह करती हूं कि स्त्री तंत्र की व्याख्या पढ़िए ।स्त्री तंत्र की व्याख्या पढ़ने के बाद ही आप स्त्री तंत्र की व्याख्या भाग 2 में लिखे नियमों को समझ सकेंगे। 


जब आदिकाल में अदिति माता की इच्छा इस संसार को, सृष्टि को, जगत को उत्पन्न करने की हुई, तब उन्होंने अपने तमोगुण से उत्पन्न अंश को महादेव के रूप में परिवर्तित कर, इस संसार का संचालन और निर्माण करने हेतु, महादेव को अपने आधे अंग में समाहित कर, अर्धनारीश्वर रूप में उसका निर्माण, उसका विस्तार, उसका संचालन किया,  जो आदिशक्ति की इच्छा से ही हो रहा था।  उस युग्म को मानव विकास के क्रम के रूप में अनिवार्य पड़ाव का स्थान देखकर आदिशक्ति ने विस्तार का प्रारंभ किया, परंतु जिस पल स्त्री तंत्र को नष्ट भ्रष्ट कर पुरुष के रूप में पिता और ईश्वर की स्थापना की गई, उस पल से आज तक धीरे धीरे कर उस युग में स्त्री यानि भावना के सागर की महत्ता को धीरे धीरे कम किया गया, मानव द्वारा। आज उस भावना के सागर को युग्म में शून्य के स्थान पर लाकर खड़ा कर दिया है, क्योंकि आज संसार सिर्फ और सिर्फ पुरुष मानसिकता से चलता है। स्त्रियों के जन्म लेने से मानव विकास की प्रक्रिया तक आने का दायरा बंधनों में इस प्रकार बंधा है कि स्त्री अपनी मर्जी से कोई निर्णय ले ही नहीं सकती, इसलिए उससे उत्पन्न संतानों में भावना का स्तर भी बिल्कुल शून्य के कागार पर आ गया है, और यदि हमें इस भावनात्मक लुप्तता  को अपने स्तर पर वापस लाना है, तो हमें स्त्रियों के मुताबिक इस संसार की संरचना करने की प्रक्रिया की शुरुआत करनी होगी, नहीं तो अंजाम इससे भी भयानक होंगे।

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