बुधवार, 7 जुलाई 2021

प्राकृतिक नियमों के अनुसार मानव विकास की प्रक्रिया के लिए सिद्धांतों का प्रतिपादन

 स्त्री तंत्र की व्याख्या भाग 2


( प्राकृतिक नियमों के अनुसार मानव विकास की प्रक्रिया के लिए सिद्धांतों का प्रतिपादन)

            श्रीमती दीपिका महेश्वरी 'सुमन' अहंकारा
      संस्थापिका सुमन साहित्यिक परी नजीबाबाद बिजनौर


 अध्याय प्रथम



जब मुझे इस बात का एहसास हुआ, कि मानव योनि में से पिता और पति तत्व दो पीढ़ियों के बाद अंत हो जाएंगे, तब मैंने इस अध्ययन को प्राथमिकता से आरंभ किया, पिता और पति तत्व को बचाने के लिए, और इसके लिए जो भी तरीका इन तत्वों को बचाने के लिए प्राकृतिक नियमों के अनुसार कारगर लगा, उसे अपने अध्ययन में सम्माहित करती चली गई। 


 आजकल मैं 2 सिद्धांतों पर कार्य कर रही हूं पहला:


हिंदू धर्म के अनुसार स्त्री एक प्राकृतिक नियम है, जिसे उसके अनुरूप निभाकर, जीवन व्यतीत करना पुरुष का कर्तव्य है। इसकी व्याख्या करते हुए मैंने स्त्री तंत्र की व्याख्या नामक पुस्तक लिखी है। 


दूसरा पैदा होती भावना शून्य संतानों के लिए है:


जिसके अनुसार, आदि शक्ति को सृजनात्मक तत्व  तथा शिव शंकर को विनाशक तत्व के रूप में माना है, क्योंकि आदिशक्ति  सृजन करती हैं  और महादेव  संघारकर्ता के रूप में जाने जाते हैं। इसके अनुसार  स्त्री को  सृजन तत्व के रूप में तथा पुरुष को विनाशक तत्व की प्रबलता के रूप में रखा गया है। स्त्री  मानसिक संतुष्टि  के पश्चात शारीरिक वरीयता को  प्राथमिकता देती है  अन्यथा नहीं। यह बात स्त्री तंत्र की व्याख्या में सिद्ध कर चुकी हूं, इसलिए:


" स्त्री यदि स्वतंत्र और स्वच्छंद नहीं है, तो वह अपने आने वाली संतानों में अपने सृजनात्मक तत्व को प्रधानता प्रबलता से नहीं रख पाती, जिससे संतानों में पुरुष के विनाशक तत्व की प्रबलता रहती है।" 

अत: "काम क्रिया में स्त्री की क्रियाशीलता होने वाली संतानों में भावनात्मक पक्ष को मजबूती प्रदान करती है।"


यह विषय स्त्री तंत्र मुझे भारतीय संस्कृति का अध्ययन करते हुए प्राप्त हुआ था। इस विषय का अध्ययन करने पर मैंने पाया, कि स्त्री तंत्र कोई विषय नहीं एक नियम है। जिस पर यह सृष्टि चलती है, फिर मैंने अपने इस अध्ययन को प्रकृति के प्रत्येक जीव के जीवन चक्र से जोड़ दिया, और प्रकृति में उत्पन्न सभी जीवो का जीवन चक्र पढ़ने के पश्चात मैंने यह दो सिद्धांत तैयार किए हैं, और इन पर वर्क कर रही हूं शोध कर रही हूं। अपने अध्ययन का कुछ हिस्सा आपके साथ भी शेयर कर रही हूं। 



जब कोई नया विषय आता है, तब लोग उस विषय को गलत सिद्ध करने में कोई कसर नहीं छोड़ते, लेकिन मेरा यह चैलेंज है, समस्त पुरुष वर्ग को आप मुझे पुरुष  वर्चस्व  पर जीवन चक्र जीने वाले जानवर को लाकर दे दो, तो मैं अपना अध्ययन नहीं रोक दूंगी। इस चैलेंज पर ही मैंने दोनों सिद्धांत तैयार किए हैं। इसलिए इन सिद्धांतों के विपक्ष में बोलने से पहले मेरे चैलेंज को पूरा करना होगा, तब आप इन सिद्धांतों के विरुद्ध बोल सकते हैं अन्यथा नहीं।


जब भी कोई सिद्धांत पारित होता है तब उस पर सबसे पहले लिखने वाले को पागल करार कर देती है, दुनिया। यह बात हमें इतिहास बहुत अच्छी तरह बताता है। जब भी कोई नियम पारित किया गया उस पर सबसे पहले बोलने वाले को इस समाज में इस दुनिया ने पागल करार किया। 


न्यूटन एडिसन सभी इसी खेमे में आते हैं। जिस प्रकार न्यूटन की खोज एक सिद्धांत है। उसी प्रकार मेरा यह कहना एक नियम है, एक सिद्धांत है कि:


"यदि स्त्री स्वतंत्र और स्वच्छंद नहीं है तो वह अपने सृजनात्मक पक्ष को आने वाली संतान में प्रबलता से नहीं रख पाती, जिससे संताने भावनात्मक पक्ष में शून्य स्तर पर होती हैं।" 


अर्थात् "काम क्रिया के दौरान मादा की क्रियाशीलता होने वाली संतान में भावनात्मक पक्ष की मजबूती के लिए बहुत जरूरी है।"


यह नियम मानवों के मुख्य नियमों में से एक है। इस नियम को फॉलो करने से अनुवांशिकता के लक्षणों में भी फर्क पड़ेगा, जिससे समाज में बहुत फर्क पड़ेगा। हम सभी इस नियम को फॉलो नहीं करते इसलिए होने वाली संतानों को हम उदाहरण के रूप में प्रस्तुत कर सकते हैं। इस नियम पर होने वाली संतान तथा इस नियम के विरुद्ध होने वाली संतानों के स्वभाव और लक्षणों को शोध के अंतर्गत अध्ययन कर आप खुद ब खुद एक सही निष्कर्ष पर पहुंचेंगे। हमारे वैज्ञानिकों को इस में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेना चाहिए ताकि मेरे दिए गए सिद्धांत को प्रयोगों द्वारा सिद्ध कर नियम के रूप में स्थापित कर सकें। 


मेरे द्वारा पारित किए गए सिद्धांत पर कोई इफ या बट की गुंजाइश नहीं, क्योंकि स्त्री मानसिक संतुष्टि के पश्चात ही शारीरिक समर्पण को वरीयता देती है, और मैं यह भी सिद्ध कर चुकी हूं कि स्त्री विशाल बुद्धि का सागर है, और उसकी बुद्धि पर सवाल उठाने की औकात, उसके द्वारा पैदा किए गए पुरुष वर्ग में नहीं है। 

संसार में पुरुष तत्व स्त्री द्वारा पैदा किया जाता है, और उस तत्व का काम है, स्त्री के कोमल तन और मन की रक्षा करना। स्त्री का संरक्षण यानी सेवक के तौर पर ध्यान रखना। जो पुरुष इस तरह से समाज का निर्माण करते हैं कि वह स्त्री के कोमल तन और मन की रक्षा की जा सके वह अपना धर्म निभाते हुए इस दुनिया से विदा होते हैं। तब हम उनके जन्म को एक उत्सव की तरह मनाते हैं, परंतु यह भूल जाते हैं कि उस पुरुष तत्व को एक स्त्री ने पैदा किया है, जिसने अपने जीवन को मौत की डगर पर ले जाकर ऐसे पुरुष तत्वों को जन्म दिया, हम ना तो उन स्त्रियों का नाम जान पाते हैं ना ही कभी उनकी बड़ाई में दो शब्द भी कहते हैं, और तो और हंसी आती है मुझे, जन्म गुरु गोविंद सिंह की पत्नी ने अपने बच्चों को दिया  और नाम गुरु गोविंद सिंह के  का पूजा जाता है, इस भारत देश में।  यही पुरुषवादिता  खत्म करने का बीड़ा उठाया है इस दीपिका महेश्वरी सुमन  ने। आज मैं उन सभी स्त्रियों को नमन करती हूं जिन्होंने मां के रूप में मदन मोहन मालवीय, अटल बिहारी वाजपेई, ईसा मसीह, और गुरु गोविंद सिंह को जन्म दिया और गुरु गोविंद सिंह जी की पत्नी, जिन्होंने चार ऐसे बच्चों को जन्म दिया, कि वह बच्चे अपना बलिदान कर पाए ऐसी वीरांगना को मैं शत-शत नमन करती हूं। 


जो लोग आध्यात्म का रोना रोते हैं, और अध्यात्म के रास्ते में स्त्रियों को सबसे बड़ी बाधा समझते हैं। उन्हें बता देना चाहती हूं कि ईश्वर की जिस तरह उपासना करो, उसी रूप में आकर इंसान की रक्षा करते हैं। मैं स्वयं अदिति माता के अंश, महादेव शिव शंकर को भाई के रूप में मानती हूँ, और उनको राखी बांधती हूं और सच मानिए ! मुझे रोज रोज मंदिर जाकर घंटे बजाने की आवश्यकता नहीं पड़ती। उनकी कलाई पर बांधा हुआ रक्षा धागा, मेरी पल प्रतिपल रक्षा करता है और गर्व के साथ कहती हूं, कि वे मेरे भाई की तरह मेरी और मेरे परिवार की रक्षा करते हैं। सभी जानते हैं ईश्वर की मर्जी के बगैर एक पत्ता नहीं हिलता। मैं जो कुछ करती हूं, लिखती हूं। यह सब ईश्वरीय प्रताप है, और स्त्री तंत्र के अनुसार आदिति माता ईश्वरीय रूप हैं, जिन्होंने इस संसार की रचना की है, तथा  अपने ही अंश महादेव को अपने साथ संलग्न  कर  ईश्वरीय युग्म की स्थापना कर, संसार का संचालन करती हैं, और कालांतर में वही इस संसार का भक्षण करेंगी। इसलिए जब तक स्त्रियां यह बात नहीं समझेंगी कि पुरुष तत्व उनके द्वारा पैदा किया हुआ एक तत्व है, जो उनके संरक्षण के लिए सेवा के लिए पैदा हुआ है। तब तक वे अपनी दशा नहीं सुधार सकती। जिस दिन स्त्रियां यह बात अपने अंदर धारण कर लेंगी और अपनी योग्य  संसारी पुरुष तत्व को चुनकर मानव विकास के क्रम को आगे बढ़ाएंगी, तो संसार में उत्पन्न कोई भी पुरुष उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकता।


आजकल समाज में एक बड़ा प्रश्न भावनात्मक लुप्तता का उभर कर आ रहा है, जोकि आना स्वभाविक ही है, और लोगों का यह सवाल भी जायज है, कि आसमान, धरा, दसों दिशाएं, सूरज, चांद, सितारे, हम (यानी मानव) सभी एक साथ रहते हुए भी, हम मानवों के स्वभाव में इतना बड़ा अंतर कैसे आ गया, कि हम धीरे-धीरे भावना शून्य होते जा रहे हैं? मैंने इस तथ्य की विश्लेषणात्मक विस्तृत व्याख्या स्त्री तंत्र में की है, इसलिए ही मैं बार-बार आप सभी से  आग्रह करती हूं कि स्त्री तंत्र की व्याख्या पढ़िए ।स्त्री तंत्र की व्याख्या पढ़ने के बाद ही आप स्त्री तंत्र की व्याख्या भाग 2 में लिखे नियमों को समझ सकेंगे। 


जब आदिकाल में अदिति माता की इच्छा इस संसार को, सृष्टि को, जगत को उत्पन्न करने की हुई, तब उन्होंने अपने तमोगुण से उत्पन्न अंश को महादेव के रूप में परिवर्तित कर, इस संसार का संचालन और निर्माण करने हेतु, महादेव को अपने आधे अंग में समाहित कर, अर्धनारीश्वर रूप में उसका निर्माण, उसका विस्तार, उसका संचालन किया,  जो आदिशक्ति की इच्छा से ही हो रहा था।  उस युग्म को मानव विकास के क्रम के रूप में अनिवार्य पड़ाव का स्थान देखकर आदिशक्ति ने विस्तार का प्रारंभ किया, परंतु जिस पल स्त्री तंत्र को नष्ट भ्रष्ट कर पुरुष के रूप में पिता और ईश्वर की स्थापना की गई, उस पल से आज तक धीरे धीरे कर उस युग में स्त्री यानि भावना के सागर की महत्ता को धीरे धीरे कम किया गया, मानव द्वारा। आज उस भावना के सागर को युग्म में शून्य के स्थान पर लाकर खड़ा कर दिया है, क्योंकि आज संसार सिर्फ और सिर्फ पुरुष मानसिकता से चलता है। स्त्रियों के जन्म लेने से मानव विकास की प्रक्रिया तक आने का दायरा बंधनों में इस प्रकार बंधा है कि स्त्री अपनी मर्जी से कोई निर्णय ले ही नहीं सकती, इसलिए उससे उत्पन्न संतानों में भावना का स्तर भी बिल्कुल शून्य के कागार पर आ गया है, और यदि हमें इस भावनात्मक लुप्तता  को अपने स्तर पर वापस लाना है, तो हमें स्त्रियों के मुताबिक इस संसार की संरचना करने की प्रक्रिया की शुरुआत करनी होगी, नहीं तो अंजाम इससे भी भयानक होंगे।

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