मंगलवार, 13 जुलाई 2021

स्त्री तंत्र की व्याख्या भाग 2 अध्याय तृतीय

 स्त्री तंत्र की व्याख्या भाग 2

( प्राकृतिक नियमों के अनुसार मानव विकास की प्रक्रिया के लिए सिद्धांतों का प्रतिपादन)

श्रीमती दीपिका महेश्वरी 'सुमन' अहंकारा

संस्थापिका सुमन साहित्यिक परी नजीबाबाद बिजनौर



अध्याय तृतीय


दुर्गा सप्तशती कीलक स्त्रोत


मार्कंडेय जी कहते हैं, "विशुद्ध ज्ञान ही जिनका स्वरूप है, जो ज्ञान प्राप्ति के निमित्त हैं, अपने मस्तक पर अर्धचंद्र का मुकुट धारण किए हुए हैं, मैं उन भगवान शिव को मन कर्म वचन काया से नमस्कार करता हूं।" 


मंत्रों की सिद्धि में विघ्न उपस्थित करने वाले, श्राप रूपी कीलक का, जो निवारण करने वाला है, उसे संपूर्ण जानकारी उसकी उपासना करनी चाहिए। यद्यपि जो मनुष्य अन्य मंत्रों की साधना में लगातार लगा रहता है, वह भी कल्याण का भागी होता है। मंत्र को लगातार जपने से साधक के उच्चाटन कर्म आदि सिद्ध हो जाते हैं। वह जिस अभीष्ट वस्तु की इच्छा करता है, मंत्रो के प्रभाव से उसे अवश्य मिलती है, लेकिन जो साधक केवल दुर्गा सप्तशती से, दुर्गा मां की स्तुति करते हैं, उन्हें स्तुति मात्र से देवी दुर्गा की सिद्धि हो जाती है। देवी दुर्गा के सिद्ध साधकों को अपने अभीष्ट की प्राप्ति के लिए, किसी मंत्र की आवश्यकता नहीं होती। बिना मंत्र जप करे ही उनके सारे कर्म सिद्ध हो जाते हैं। वे जिस अभीष्ट वस्तु की इच्छा करते हैं, मां दुर्गा के प्रभाव से अवश्य मिलती है। तब लोगों के मन में शंका हुई, कि जब दुर्गा सप्तशती से, तथा अन्य मंत्र की साधना से समान रूप से कार्य सिद्ध होते हैं, तो इन में श्रेष्ठ कौन सा है? तब शंकरजी ने जिज्ञासु की शंका का निवारण करने हेतु, जिज्ञासु को समझाया कि यह दुर्गा सप्तशती सर्वश्रेष्ठ कल्याणमयी है। दुर्गा सप्तशती के सुनने से अशुणय पुण्य मिलता है। इसे सत्य जाने। इसके बाद महादेव जी ने इसे कीलित कर लोप कर दिया। जो पुरुष अपना सर्वस्व देवी मां के चरणों में अर्पित कर, फिर प्रसाद बुद्धि से संसार निर्माण हेतु ग्रहण करता है, उस पर देवी दुर्गा प्रसन्न होती हैं, अन्यथा देवी प्रसन्न नहीं होती। इस प्रकार प्रतिबंधक रूप कीलक द्वारा शिवजी ने इसे कीलित कर दिया।


आप सभी इस स्रोत को दुर्गा सप्तशती में पढ़ते होंगे, लेकिन पढ़ना काफी नहीं है। संसार में उत्पन्न हर नारी दुर्गा का प्रतिरूप है, वही दुर्गा का प्रतिरूप जिसे शिव जी ने कीलित कर रखा है, और प्रत्येक पुरुष का यह कर्तव्य है, कि वह उस कीलित दुर्गा रूप का निष्कीलन करने के लिए अपना सर्वस्व उस देवी के चरणों में अर्पित करें, और फिर प्रसाद बुद्धि से संसार निर्माण हेतु ग्रहण करें। तब वह स्त्री रूपी दुर्गा आप पर प्रसन्न हो आप पर अपना सर्वस्व निछावर कर, आपको अपने साथ मिलाकर संसार का निर्माण करेगी अन्यथा नहीं।


किताबों में लिखी हुई बातों की प्रतिमूर्ति बना, मंदिरों में पूजने से संसार का निर्माण नहीं होता। आदिशक्ति ने स्त्री के रूप में जो अपना प्रतिरूप इस धरा पर उतारा है, इंसान निर्माण के लिए। उसका आदर सत्कार करने पर ही संसार का निर्माण होगा। यह हर पुरुष को ध्यान रखना चाहिए, क्योंकि वह पुरुष स्त्री रूपी आदिशक्ति के अंदर से ही उत्पन्न हुआ है, इसलिए उस पुरुष का प्रथम कर्तव्य उस स्त्री का आदर करना है, जिसके साथ उसे संसार का निर्माण करना है। इसलिए अन्य मंत्रों के फेर में ना पढ़कर, सीधे-सीधे उस दुर्गा प्रति रूप का आदर करो, जिसके प्रसन्न होने पर इस संसार का निर्माण होना है। यही पुरुष तत्व का प्रथम कर्तव्य है।


स्त्री तंत्र की स्थापना पुरुष वर्ग के विचारों से नहीं होगी, इस बात को हमें समझना होगा, कि स्त्री तंत्र की स्थापना स्त्री के विचारों को समर्थन देने से होगी। आप सभी से एक सवाल और करना चाहती हूं कि, आप में से किसी ने भी, संसार में उत्पन्न किसी जीव के जीवन चक्र में मादा को नर की विनय करते हुए देखा है क्या? कि मुझे सृष्टि का विकास करना है, आप उस में सहयोग कीजिए। यदि कहीं ऐसा देखा हो तो बताइएगा जरूर!! परंतु ऐसा होता नहीं है। हर प्रजाति में नर मादा की विनय करता है, कि मैं तुम्हारे साथ मिलकर अपने इस प्रजाति का विकास करना चाहता हूं, मुझे मौका मिलना चाहिए। इसके लिए हर प्रजाति के नर तरह-तरह की क्रियाएं कर मादा को रिझाते हैं, और वही एक नियम हिंदू धर्म की विवाह रीति में भी है, कि सभी दिए जाने वाले वचन, जो सात हैं वह पुरुष द्वारा स्त्री को दिए जाते हैं, लेकिन कुछ लोगों की बेवकूफी ने इस नियम को उलट कर वचनों को स्त्री से भी मांगना शुरू कर दिया। यही विवाह रीति से छेद करने का दुष्परिणाम सामने आ रहा है। स्त्री को संसार निर्माण के लिए कोई भी निर्णय लेने की इजाजत ही नहीं रही, इसलिए ही मनुष्य में विनाश तत्व प्रबल हो रहा है, और भावना शून्य संतानें पैदा हो रही हैं। यदि हमने इस समस्या को गंभीरता से नहीं लिया, तो बहुत जल्दी हम ऐसी प्रजाति से मानव जाति को भर देंगे, जिसमें भावना नहीं होगी, इसलिए स्त्री जाति को जिसका कार्य निर्माण करना है, उसे अपना काम स्वयं करने दीजिए। यदि मानव के लिए मानव होने का अस्तित्व बचाना चाहते हैं। 


स्त्री तंत्र तो दस्तक दे चुका है, आर्टिफिशियल इनसेमिनेशन और स्पर्म बैंक के जरिए! जहां पिता तत्व कहीं भी नहीं होगा, मैं एक बार फिर दोहरा देना चाहती हूं कि स्पर्म बैंक वह जगह है जहां पुरुष वीर्य 10000 साल तक खराब नहीं होता, तब भी हम पिता तत्व को बचा नहीं सकते। मैं जो कर रही हूं, पिता तत्व को बचाने के लिए कर रही हूं, क्योंकि पिता तत्व स्त्री जाति के स्वरूप के तहत स्त्रियों ने ही उत्पन्न किया है, इसलिए उसकी रक्षा करना हर स्त्री का कर्तव्य है, समाज ने स्त्री जाति से उत्पन्न हुए पुरुष तत्वों को, पिता बना कर स्थापित किया और जिंदगी की धुरी को उस पिता के इर्द-गिर्द घुमा दिया। उस स्त्री की सहमति का कोई नाम नहीं जिसने पुरुष तत्व को उत्पन्न किया। यही कारण है कि, पिता तत्व विनाश की ओर जा रहा है, अगर उसका विनाश रोकना है, तो उसको उत्पन्न करने वाले स्त्री जाति की सोच को प्राथमिकता और प्रमुखता देनी ही होगी। तभी हम उस पिता तत्व को बचा सकते हैं, अन्यथा नहीं। 


मैं इस कार्य में सम्मिलित हूं क्योंकि मुझ से उत्पन्न प्रत्येक तत्व की रक्षा करना मेरा धर्म है, और जब तक संलग्न रहूंगी, जब तक मैं जीवित हूं। यदि अपने जीवन काल में मैं सफलता प्राप्त नहीं कर पाई, तो फिर और कोई स्त्री इस तरफ का रुख कभी करेगी ही नहीं और पिता तत्व हमेशा के लिए विलीन हो जाएगा इस धरा पर। सोचना आपको है कि, आपको इस मुद्दे को गंभीरता से लेना है या नहीं, क्योंकि मैं अकेले इस मुद्दे को खींचकर यहां तक लाई हूं और जब तक जीवित हूं तब तक आगे भी ले जाऊंगी। स्त्री तंत्र तो आ ही रहा है पिता तत्व के विलीनीकरण के साथ,परंतु मेरा कर्तव्य है, उस पिता तत्व को विलीन होने से बचाना और वह पिता तत्व स्त्री जाति की सोच और समझ पर ही बच सकेगा इस बात का ध्यान प्रत्येक पुरुष तत्व को रखना चाहिए ।इसलिए इस मुद्दे पर गंभीरता से सोचना हम सभी की जिम्मेदारी है।

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