#स्त्री_तंत्र_की_व्याख्या
सप्तम् अध्याय_( विवाह के प्रथम 2 वचन समीक्षा सहित)
अब विवाह सात वचनों की व्याख्या की जायेगी।
यहां पर सबसे बड़ी बात ध्यान देने योग्य कि यह सात वचन पुरुष द्वारा स्त्री को दिए जाते हैं तभी वह पत्नी धर्म को अर्थात पुरुष का वाम अंग स्वीकार करती है जब विवाह वचनों के अनुरूप होता है तब इनके टूट जाने पर विवाह स्वत: ही टूट जाएगा इस प्रमुख बात को पुरुष प्रधान समाज ने नकार दिया ऐसा क्यों? यह बात समझ से परे है जबकि इन वचनों के सापेक्ष स्त्री को सुहाग की सभी वस्तुओं को पहनाया गया उनकी अहमियत समाज में स्त्री की अहमियत से ज्यादा है परंतु उन वचनों की कोई अहमियत नहीं जो पुरुष स्त्री को देता है तब स्त्री उसके वाम अंग में आना स्वीकार करती है इसे ऐसी भी कहा जा सकता है कि अग्नि को साक्षी मानकर लिए गए सातों वचन के पश्चात स्त्री पुरुष को अपने दाहिने अंग में समाहित करने के लिए राजी होती है यदि इस पद्धति के अनुसार भी स्त्री ही अपने दाहिने अंग में पुरुष को सम्माहित करती है तब किस आधार पर हमने समाज का निर्धारण नारी समर्पण पर तय किया यह सोचने की बात है जिसे गंभीरता से सोचना चाहिए आइए अब सातों वचनों में से पहले वचन की व्याख्या को समझें
#1 #तीर्थव्रतोद्यापन #यज्ञकर्म #मया #सहैव #प्रियवयं #कुर्या:
#वामांगमायामि #तदा #त्वदीयं #ब्रवीति #वाक्यं #प्रथमं #कुमारी!।
(यहां कन्या वर से कहती है कि यदि आप कभी तीर्थयात्रा को जाओ तो मुझे भी अपने संग लेकर जाना। कोई व्रत-उपवास अथवा अन्य धर्म कार्य आप करें तो आज की भांति ही मुझे अपने वाम भाग में अवश्य स्थान दें। यदि आप इसे स्वीकार करते हैं तो मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूं।)
किसी भी प्रकार के धार्मिक कृत्यों की पूर्णता हेतु पति के साथ पत्नी का होना अनिवार्य माना गया है। पत्नी द्वारा इस वचन के माध्यम से धार्मिक कार्यों में पत्नी की सहभागिता व महत्व को स्पष्ट किया गया है।
इस वचन की व्याख्या से स्पष्ट होता है की हिंदू धर्म में कोई भी धार्मिक अनुष्ठान बिना स्त्री के पूरा नहीं किया जाता क्योंकि हिंदू धर्म में नारी त्याग पाप माना गया है इसलिए ही यह वचन सातों वचनों में प्रमुख और पहले पायदान पर है
विवाह के सात वचनों में दूसरा वचन अर्थ सहित इस वचन की कसौटी पर अपने अपने विवाह संबंध को कसकर निर्णय कर सकते हैं कि क्या वाकई में आपका विवाह अखंडित है यदि कसौटी पर कसने के पश्चात आपका विवाह अखंडित है तब आप वाकई में एक संरक्षक की भूमिका निभा रहे हैं इस जगत में
#2. #पुज्यो #यथा #स्वौ #पितरौ #ममापि #तथेशभक्तो #निजकर्म #कुर्या:
#वामांगमायामि #तदा #त्वदीयं #ब्रवीति #कन्या #वचनं #द्वितीयम!!
(कन्या वर से दूसरा वचन मांगती है कि जिस प्रकार आप अपने माता-पिता का सम्मान करते हैं, उसी प्रकार मेरे माता-पिता का भी सम्मान करें तथा कुटुम्ब की मर्यादा के अनुसार धर्मानुष्ठान करते हुए ईश्वर भक्त बने रहें तो मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूं।)
यहां इस वचन के द्वारा कन्या की दूरदृष्टि का आभास होता है। उपरोक्त वचन को ध्यान में रख वर को अपने ससुराल पक्ष के साथ सदव्यवहार के लिए अवश्य विचार करना चाहिए।
#समीक्षा
विवाह के प्रथम दो वचनों की समीक्षा जो पुरुष द्वारा स्त्री को दिए जाते हैं
यह सात वचन पुरुष द्वारा स्त्री के लिए दिए जाते हैं तब वे अपने दाहिने अंग में पुरुष को समाहित करती है पहले वचन के अनुसार पुरुष यदि कोई भी धार्मिक अनुष्ठान करता है तब स्त्री की सहभागिता अनिवार्य है बिना स्त्री के कोई भी धार्मिक अनुष्ठान पूर्ण नहीं होता तब क्यों इस पुरुष प्रधान समाज में सारे व्रत स्त्रियों द्वारा रखे जाते हैं जबकि इस वचन के अनुसार कहीं से कहीं तक यह बात जाहिर नहीं होती कि स्त्रियों को कोई भी व्रत रखने की आवश्यकता है ऐसा कोई नियम बंधन इस वचन में नहीं है फिर किस पायदान पर पुरुष समाज का वर्चस्व निर्धारित कर हमने सारे व्रत नियम स्त्रियों के लिए बना दिए इससे तो यही जाहिर होता है की पुरुष प्रधान समाज का वर्चस्व स्थापित करने के लिए नारी समुदाय को नीचा दिखाने के लिए ही बाकी सारे कर्मकांड स्थापित किए गए जिससे नारियां अपने लिए कुछ सोच नहीं सके और जो पुरुष इस वचन के सापेक्ष में अपने वर्चस्व को बनाए रखने के लिए नियम तथा कर्मकांड बनाते हैं और स्त्रियों को उन्हें करने के लिए बाध्य करते हैं उन सभी के विवाह खंडित है इस वचन की अवधारणा पर क्योंकि दोनों वचनों में कहीं भी यह नहीं लिखा कि स्त्रियों को पुरुष के लिए कोई व्रत रखना अनिवार्य है या उन्होंने व्रत रखने का वचन दिया है
दूसरे वचन के अंतर्गत दिए गए दूसरे वचन के अनुसार वधू पक्ष के घर वालों का सम्मान सर्वोपरि है जैसे वह अपने माता-पिता और सगे संबंधियों का सम्मान करता है वैसे ही उसे वधु के घर वालों का मान सम्मान करना चाहिए पुत्र की भांति सेवाभाव रखना चाहिए परंतु होता उल्टा ही है। यह लड़की के घरवालों की दरियादिली है कि अपनी लड़की को पाल पोस कर आप के हवाले कर देते हैं फिर भी आप के सम्मान में कोई कमी नहीं करते पलके बिछाते हैं दमाद आया है चार सब्जियां बनेंगी खीर पूरी का भोग लगाया जाता है कि आने वाला शख्स हमारी बेटी का सुहाग है लेकिन क्या वाकई में आप लड़की के घरवालों को इतना सम्मान दे पाते हैं? जितना अपने मां-बाप को देते हैं, अगर नहीं तो आपका विवाह खंडित है
कहीं-कहीं तो इतना मनमुटाव कर दिया जाता है कि लड़कियों का आना जाना बंद हो जाता है वे अपने परिवार वालों से मिल नहीं पाती क्योंकि उनके पति की उस लड़की के घरवालों से अनबन हो गई है
इन दोनों वचनों में कहीं भी ऐसा नहीं लिखा कि स्त्री अपने माता पिता के घर नहीं जा सकती। आप ही उसे दो वचन दे चुके हैं कि कोई भी धार्मिक अनुष्ठान पूजा पाठ आप करेंगे तो आप उसे बाम अंग में बिठाएंगे यह अनिवार्य है इस नियम के चलते आपने उस पर व्रत उपवास के नियम थोप डाले अपने वर्चस्व को स्थापित करने के लिए और दूसरा आप उसके माता पिता का सम्मान अपने माता पिता की तरह करेंगे हकीकत में तो सम्मान दूर की बात है गाए भघाए अपनी पत्नी को उसके घर वालों का ताना ही मारा जाता है
अब बताइए यदि इन दोनों वचनों का उल्लंघन हो गया तो क्या विवाह अखंडित रहा।
सप्तम् अध्याय_( विवाह के प्रथम 2 वचन समीक्षा सहित)
अब विवाह सात वचनों की व्याख्या की जायेगी।
यहां पर सबसे बड़ी बात ध्यान देने योग्य कि यह सात वचन पुरुष द्वारा स्त्री को दिए जाते हैं तभी वह पत्नी धर्म को अर्थात पुरुष का वाम अंग स्वीकार करती है जब विवाह वचनों के अनुरूप होता है तब इनके टूट जाने पर विवाह स्वत: ही टूट जाएगा इस प्रमुख बात को पुरुष प्रधान समाज ने नकार दिया ऐसा क्यों? यह बात समझ से परे है जबकि इन वचनों के सापेक्ष स्त्री को सुहाग की सभी वस्तुओं को पहनाया गया उनकी अहमियत समाज में स्त्री की अहमियत से ज्यादा है परंतु उन वचनों की कोई अहमियत नहीं जो पुरुष स्त्री को देता है तब स्त्री उसके वाम अंग में आना स्वीकार करती है इसे ऐसी भी कहा जा सकता है कि अग्नि को साक्षी मानकर लिए गए सातों वचन के पश्चात स्त्री पुरुष को अपने दाहिने अंग में समाहित करने के लिए राजी होती है यदि इस पद्धति के अनुसार भी स्त्री ही अपने दाहिने अंग में पुरुष को सम्माहित करती है तब किस आधार पर हमने समाज का निर्धारण नारी समर्पण पर तय किया यह सोचने की बात है जिसे गंभीरता से सोचना चाहिए आइए अब सातों वचनों में से पहले वचन की व्याख्या को समझें
#1 #तीर्थव्रतोद्यापन #यज्ञकर्म #मया #सहैव #प्रियवयं #कुर्या:
#वामांगमायामि #तदा #त्वदीयं #ब्रवीति #वाक्यं #प्रथमं #कुमारी!।
(यहां कन्या वर से कहती है कि यदि आप कभी तीर्थयात्रा को जाओ तो मुझे भी अपने संग लेकर जाना। कोई व्रत-उपवास अथवा अन्य धर्म कार्य आप करें तो आज की भांति ही मुझे अपने वाम भाग में अवश्य स्थान दें। यदि आप इसे स्वीकार करते हैं तो मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूं।)
किसी भी प्रकार के धार्मिक कृत्यों की पूर्णता हेतु पति के साथ पत्नी का होना अनिवार्य माना गया है। पत्नी द्वारा इस वचन के माध्यम से धार्मिक कार्यों में पत्नी की सहभागिता व महत्व को स्पष्ट किया गया है।
इस वचन की व्याख्या से स्पष्ट होता है की हिंदू धर्म में कोई भी धार्मिक अनुष्ठान बिना स्त्री के पूरा नहीं किया जाता क्योंकि हिंदू धर्म में नारी त्याग पाप माना गया है इसलिए ही यह वचन सातों वचनों में प्रमुख और पहले पायदान पर है
विवाह के सात वचनों में दूसरा वचन अर्थ सहित इस वचन की कसौटी पर अपने अपने विवाह संबंध को कसकर निर्णय कर सकते हैं कि क्या वाकई में आपका विवाह अखंडित है यदि कसौटी पर कसने के पश्चात आपका विवाह अखंडित है तब आप वाकई में एक संरक्षक की भूमिका निभा रहे हैं इस जगत में
#2. #पुज्यो #यथा #स्वौ #पितरौ #ममापि #तथेशभक्तो #निजकर्म #कुर्या:
#वामांगमायामि #तदा #त्वदीयं #ब्रवीति #कन्या #वचनं #द्वितीयम!!
(कन्या वर से दूसरा वचन मांगती है कि जिस प्रकार आप अपने माता-पिता का सम्मान करते हैं, उसी प्रकार मेरे माता-पिता का भी सम्मान करें तथा कुटुम्ब की मर्यादा के अनुसार धर्मानुष्ठान करते हुए ईश्वर भक्त बने रहें तो मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूं।)
यहां इस वचन के द्वारा कन्या की दूरदृष्टि का आभास होता है। उपरोक्त वचन को ध्यान में रख वर को अपने ससुराल पक्ष के साथ सदव्यवहार के लिए अवश्य विचार करना चाहिए।
#समीक्षा
विवाह के प्रथम दो वचनों की समीक्षा जो पुरुष द्वारा स्त्री को दिए जाते हैं
यह सात वचन पुरुष द्वारा स्त्री के लिए दिए जाते हैं तब वे अपने दाहिने अंग में पुरुष को समाहित करती है पहले वचन के अनुसार पुरुष यदि कोई भी धार्मिक अनुष्ठान करता है तब स्त्री की सहभागिता अनिवार्य है बिना स्त्री के कोई भी धार्मिक अनुष्ठान पूर्ण नहीं होता तब क्यों इस पुरुष प्रधान समाज में सारे व्रत स्त्रियों द्वारा रखे जाते हैं जबकि इस वचन के अनुसार कहीं से कहीं तक यह बात जाहिर नहीं होती कि स्त्रियों को कोई भी व्रत रखने की आवश्यकता है ऐसा कोई नियम बंधन इस वचन में नहीं है फिर किस पायदान पर पुरुष समाज का वर्चस्व निर्धारित कर हमने सारे व्रत नियम स्त्रियों के लिए बना दिए इससे तो यही जाहिर होता है की पुरुष प्रधान समाज का वर्चस्व स्थापित करने के लिए नारी समुदाय को नीचा दिखाने के लिए ही बाकी सारे कर्मकांड स्थापित किए गए जिससे नारियां अपने लिए कुछ सोच नहीं सके और जो पुरुष इस वचन के सापेक्ष में अपने वर्चस्व को बनाए रखने के लिए नियम तथा कर्मकांड बनाते हैं और स्त्रियों को उन्हें करने के लिए बाध्य करते हैं उन सभी के विवाह खंडित है इस वचन की अवधारणा पर क्योंकि दोनों वचनों में कहीं भी यह नहीं लिखा कि स्त्रियों को पुरुष के लिए कोई व्रत रखना अनिवार्य है या उन्होंने व्रत रखने का वचन दिया है
दूसरे वचन के अंतर्गत दिए गए दूसरे वचन के अनुसार वधू पक्ष के घर वालों का सम्मान सर्वोपरि है जैसे वह अपने माता-पिता और सगे संबंधियों का सम्मान करता है वैसे ही उसे वधु के घर वालों का मान सम्मान करना चाहिए पुत्र की भांति सेवाभाव रखना चाहिए परंतु होता उल्टा ही है। यह लड़की के घरवालों की दरियादिली है कि अपनी लड़की को पाल पोस कर आप के हवाले कर देते हैं फिर भी आप के सम्मान में कोई कमी नहीं करते पलके बिछाते हैं दमाद आया है चार सब्जियां बनेंगी खीर पूरी का भोग लगाया जाता है कि आने वाला शख्स हमारी बेटी का सुहाग है लेकिन क्या वाकई में आप लड़की के घरवालों को इतना सम्मान दे पाते हैं? जितना अपने मां-बाप को देते हैं, अगर नहीं तो आपका विवाह खंडित है
कहीं-कहीं तो इतना मनमुटाव कर दिया जाता है कि लड़कियों का आना जाना बंद हो जाता है वे अपने परिवार वालों से मिल नहीं पाती क्योंकि उनके पति की उस लड़की के घरवालों से अनबन हो गई है
इन दोनों वचनों में कहीं भी ऐसा नहीं लिखा कि स्त्री अपने माता पिता के घर नहीं जा सकती। आप ही उसे दो वचन दे चुके हैं कि कोई भी धार्मिक अनुष्ठान पूजा पाठ आप करेंगे तो आप उसे बाम अंग में बिठाएंगे यह अनिवार्य है इस नियम के चलते आपने उस पर व्रत उपवास के नियम थोप डाले अपने वर्चस्व को स्थापित करने के लिए और दूसरा आप उसके माता पिता का सम्मान अपने माता पिता की तरह करेंगे हकीकत में तो सम्मान दूर की बात है गाए भघाए अपनी पत्नी को उसके घर वालों का ताना ही मारा जाता है
अब बताइए यदि इन दोनों वचनों का उल्लंघन हो गया तो क्या विवाह अखंडित रहा।