गुरुवार, 30 अप्रैल 2020

स्त्री_तंत्र_की_व्याख्या सप्तम् अध्याय_( विवाह के प्रथम 2 वचन समीक्षा सहित)

#स्त्री_तंत्र_की_व्याख्या
सप्तम् अध्याय_( विवाह के प्रथम 2 वचन समीक्षा सहित)


अब विवाह  सात वचनों की व्याख्या  की जायेगी।

यहां पर सबसे बड़ी बात ध्यान देने योग्य कि यह सात वचन पुरुष द्वारा स्त्री को दिए जाते हैं तभी वह पत्नी धर्म को अर्थात पुरुष का वाम अंग  स्वीकार करती है जब विवाह वचनों के अनुरूप होता है तब इनके टूट जाने पर विवाह स्वत: ही टूट जाएगा इस प्रमुख बात को पुरुष प्रधान समाज ने नकार दिया ऐसा क्यों? यह बात समझ से परे है जबकि इन वचनों के सापेक्ष स्त्री को सुहाग की सभी वस्तुओं को पहनाया गया उनकी अहमियत समाज में  स्त्री की  अहमियत से ज्यादा है  परंतु  उन वचनों  की कोई अहमियत नहीं जो पुरुष स्त्री को देता है तब स्त्री  उसके वाम अंग में आना स्वीकार करती है इसे ऐसी भी कहा जा सकता है कि अग्नि को साक्षी मानकर लिए गए सातों वचन के पश्चात स्त्री पुरुष को अपने दाहिने अंग में समाहित करने के लिए राजी होती है यदि इस पद्धति के अनुसार भी स्त्री ही अपने दाहिने अंग में पुरुष को सम्माहित करती है तब किस आधार पर हमने समाज का निर्धारण नारी समर्पण पर तय किया यह सोचने की बात है जिसे गंभीरता से सोचना चाहिए आइए अब सातों वचनों में से पहले वचन की व्याख्या को समझें

#1 #तीर्थव्रतोद्यापन #यज्ञकर्म #मया #सहैव #प्रियवयं #कुर्या:
#वामांगमायामि #तदा #त्वदीयं #ब्रवीति #वाक्यं #प्रथमं #कुमारी!।

(यहां कन्या वर से कहती है कि यदि आप कभी तीर्थयात्रा को जाओ तो मुझे भी अपने संग लेकर जाना। कोई व्रत-उपवास अथवा अन्य धर्म कार्य आप करें तो आज की भांति ही मुझे अपने वाम भाग में अवश्य स्थान दें। यदि आप इसे स्वीकार करते हैं तो मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूं।)

किसी भी प्रकार के धार्मिक कृत्यों की पूर्णता हेतु पति के साथ पत्नी का होना अनिवार्य माना गया है। पत्नी द्वारा इस वचन के माध्यम से धार्मिक कार्यों में पत्नी की सहभा‍गिता व महत्व को स्पष्ट किया गया है।

इस वचन की व्याख्या से स्पष्ट होता है की हिंदू धर्म में कोई भी धार्मिक अनुष्ठान बिना स्त्री के पूरा नहीं किया जाता क्योंकि हिंदू धर्म में नारी त्याग पाप माना गया है इसलिए ही यह वचन सातों वचनों में प्रमुख और पहले पायदान पर है

विवाह के सात वचनों में दूसरा वचन अर्थ सहित इस वचन की कसौटी पर अपने अपने विवाह संबंध को कसकर निर्णय कर सकते हैं कि क्या वाकई में आपका विवाह  अखंडित है यदि कसौटी पर कसने के पश्चात आपका विवाह अखंडित है तब आप वाकई में एक संरक्षक की भूमिका निभा रहे हैं इस जगत में

#2. #पुज्यो #यथा #स्वौ #पितरौ #ममापि #तथेशभक्तो #निजकर्म #कुर्या:
#वामांगमायामि #तदा #त्वदीयं #ब्रवीति #कन्या #वचनं #द्वितीयम!!

(कन्या वर से दूसरा वचन मांगती है कि जिस प्रकार आप अपने माता-पिता का सम्मान करते हैं, उसी प्रकार मेरे माता-पिता का भी सम्मान करें तथा कुटुम्ब की मर्यादा के अनुसार धर्मानुष्ठान करते हुए ईश्वर भक्त बने रहें तो मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूं।)

यहां इस वचन के द्वारा कन्या की दूरदृष्टि का आभास होता है। उपरोक्त वचन को ध्यान में रख वर को अपने ससुराल पक्ष के साथ सदव्यवहार  के लिए अवश्य विचार करना चाहिए।

#समीक्षा

विवाह के प्रथम दो वचनों की समीक्षा जो पुरुष द्वारा स्त्री को दिए जाते हैं

यह सात वचन पुरुष द्वारा स्त्री के लिए दिए जाते हैं तब वे अपने दाहिने अंग में पुरुष को समाहित करती है पहले वचन के अनुसार पुरुष यदि कोई भी धार्मिक अनुष्ठान करता है तब स्त्री की सहभागिता अनिवार्य है बिना स्त्री के कोई भी धार्मिक अनुष्ठान पूर्ण नहीं होता तब क्यों इस पुरुष प्रधान समाज में सारे व्रत स्त्रियों द्वारा रखे जाते हैं जबकि इस वचन के अनुसार कहीं से कहीं तक यह बात जाहिर नहीं होती कि स्त्रियों को कोई भी व्रत रखने की आवश्यकता है ऐसा कोई नियम बंधन इस वचन में नहीं है फिर किस पायदान पर पुरुष समाज का वर्चस्व निर्धारित कर हमने सारे व्रत नियम स्त्रियों के लिए बना दिए इससे तो यही जाहिर होता है की पुरुष प्रधान समाज का वर्चस्व स्थापित करने के लिए नारी समुदाय को नीचा दिखाने के लिए ही बाकी सारे कर्मकांड स्थापित किए गए जिससे नारियां अपने लिए कुछ सोच नहीं सके और जो पुरुष इस वचन के सापेक्ष में अपने वर्चस्व को बनाए रखने के लिए नियम तथा कर्मकांड बनाते हैं और स्त्रियों को उन्हें करने के लिए बाध्य करते हैं उन सभी के विवाह खंडित है इस वचन की अवधारणा पर क्योंकि दोनों वचनों में कहीं भी यह नहीं लिखा कि स्त्रियों को पुरुष के लिए कोई व्रत रखना अनिवार्य है या उन्होंने व्रत रखने का वचन दिया है

दूसरे वचन के अंतर्गत दिए गए दूसरे वचन के अनुसार वधू पक्ष के घर वालों का सम्मान सर्वोपरि है जैसे वह अपने माता-पिता और सगे संबंधियों का सम्मान करता है वैसे ही उसे वधु के घर वालों का मान सम्मान करना चाहिए पुत्र की भांति सेवाभाव रखना चाहिए परंतु होता उल्टा ही है। यह लड़की के घरवालों की दरियादिली है कि अपनी लड़की को पाल पोस कर आप के हवाले कर देते हैं फिर भी आप के सम्मान में कोई कमी नहीं करते पलके बिछाते हैं  दमाद आया है चार सब्जियां बनेंगी  खीर पूरी का भोग लगाया जाता है कि  आने वाला शख्स हमारी बेटी का सुहाग है लेकिन क्या वाकई में आप लड़की के घरवालों को इतना सम्मान दे पाते हैं? जितना अपने मां-बाप को देते हैं, अगर नहीं तो आपका विवाह खंडित है
कहीं-कहीं तो इतना मनमुटाव कर दिया जाता है कि लड़कियों का आना जाना बंद हो जाता है वे अपने परिवार वालों से मिल नहीं पाती क्योंकि उनके पति की उस लड़की के घरवालों से अनबन हो गई है

इन दोनों वचनों में कहीं भी ऐसा नहीं लिखा कि स्त्री अपने माता पिता के घर नहीं जा सकती। आप ही उसे दो वचन दे चुके हैं कि कोई भी धार्मिक अनुष्ठान पूजा पाठ आप करेंगे तो आप उसे बाम अंग में बिठाएंगे यह अनिवार्य है इस नियम के चलते आपने उस पर व्रत उपवास के नियम थोप डाले अपने वर्चस्व को स्थापित करने के लिए और दूसरा आप उसके माता पिता का सम्मान अपने माता पिता की तरह करेंगे हकीकत में तो  सम्मान दूर की बात है गाए भघाए  अपनी पत्नी को  उसके घर वालों का ताना ही मारा जाता है
अब बताइए यदि इन दोनों वचनों का उल्लंघन हो गया तो क्या विवाह अखंडित रहा।

कोविड 19 कोरोना होम आइसोलेशन की गाइड लाइन जारी देखें

वेरी माइल्ड कोविड-19 मामलों के होम आइसोलेशन को लेकर गाइडलाइन्स की गयी जारी



• स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने जारी की गाइडलाइन्स

•  होम आइसोलेशन में रहने के लिए मरीजों को दिए गए निर्देश

•  संक्रमित व्यक्ति की 24 घंटे देखभाल करने वाले को भी सतर्क रहने की जरूरत

आगरा, 29 अप्रैल: कोरोना संक्रमितों को बेहतर सुविधा प्रदान करने के लिए सरकार द्वारा निरंतर प्रयास किये जा रहे हैं. साथ ही इस दिशा में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार भी नियमित अंतराल पर कोरोना संक्रमण की रोकथाम एवं उपचार के लिए गाइडलाइन्स भी जारी कर रही है. इस दिशा में सोमवार को स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने पुनः वेरी माइल्ड कोविड-19 मामलों के होम आइसोलेशन को लेकर गाइडलाइन्स जारी कर विस्तार से इस संबंध में जानकारी दी है.

वेरी माइल्ड कोविड-19 मामलों को ही होम आइसोलेशन की सलाह:

कोरोना संक्रमितों को बेहतर सुविधा प्रदान करने के लिए सरकार द्वारा कोविड केयर सेंटर बनाये गए हैं. चिकित्सकीय जांच के बाद यह स्पष्ट होता है कि संक्रमित व्यक्ति को कैसी सुविधा की जरूरत है. संक्रमितों को संक्रमण के आधार पर 4 श्रेणियों में बांटा गया है. जिसमें वेरी माइल्ड, माइल्ड, मॉडरेट एवं सीवियर कोविड-19 संक्रमण शामिल है. माइल्ड मामलों के लिए कोविड केयर सेंटर, मॉडरेट के लिए डेडिकेटेड कोविड हेल्थ सेंटर  एवं सीवियर कोविड-19 संक्रमण मामलों के लिए डेडिकेटेड कोविड हॉस्पिटल की व्यवस्था की गयी है. जबकि चिकित्सकों की पुष्टि के बाद वेरी माइल्ड कोविड-19 मामलों को होम आइसोलेशन में रहने की सलाह दी गयी है. जिसके लिए स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने गाइडलाइन्स जारी कर विस्तार से इस संबंध में जानकारी दी है.



होम आइसोलेशन के लिए योग्यताएं:

• मेडिकल ऑफिसर  द्वारा वेरी माइल्ड कोविड-19 की पुष्टि की गयी हो

• ऐसे व्यक्तियों के घर पर होम आइसोलेशन की सुविधा उपलब्ध हो

• होम आइसोलेशन के दौरान 24 घन्टे देखभाल करने वाला कोई व्यक्ति उपलब्ध हो

• आरोग्य सेतु एप को डाउनलोड कर उसे हमेशा एक्टिव रखना जरुरी है

• मरीज की स्वास्थ्य स्थिति से जिला सर्विलांस पदाधिकारी को अवगत कराते रहना जरुरी है

• होम आइसोलेशन में गए व्यक्ति को सेल्फ आइसोलेशन अंडरटेकिंग फॉर्म भरना जरुरी होगा



 इन परिस्थितियों में चिकित्सकीय सलाह होगा जरुरी:

• यदि व्यक्ति को सांस लेने में अधिक तकलीफ हो रही हो

• छाती में निरंतर दबाब या दर्द हो रहा हो

• मानसिक संशय बढ़ रहा हो या सोचने में दिक्कत हो रही हो

• यदि चेहरा या ओंठ नीले पड़ रहे हों

कब होम आइसोलेश्न से मुक्त हो सकते हैं:

जिला सर्विलासं पदाधिकारी द्वारा सत्यापित करने के बाद ही होम आइसोलेशन में रह रहे व्यक्ति को आइसोलेशन से मुक्त किया जा सकता है. इसके लिए संक्रमित व्यक्ति में कोरोना के किसी भी प्रकार के लक्षण नहीं होने चाहिए जिसकी पुष्टि लैब टेस्ट की रिपोर्ट के नेगेटिव आने के बाद ही संभव है.

देखभाल करने वाले व्यक्ति भी बरतें ये सावधानियां:

• ट्रिपल लेयर मेडिकल डिस्पोजेबल मास्क का इस्तेमाल करें. साथ ही अपने चेहरे, मुँह एवं नाक को छूने से बचें

• नियमित तौर पर हाथों की सफाई करें. लगभग 40 सेकंड तक साबुन एवं पानी से हाथ धोएं या अल्कोहल बेस्ड सैनीटाइजर का प्रयोग करें

• संक्रमित से डायरेक्ट कांटेक्ट में आने से बचें. मरीज को किसी भी तरह से छूने से पहले हैण्ड ग्लोब्स का प्रयोग करें

• संक्रमित मरीज द्वारा इस्तेमाल किसी भी चीज को इस्तेमाल न करें

•  संक्रमित मरीज की स्वास्थ्य पर पैनी नजर रखें

संक्रमित भी होम आइसोलेशन के दौरान बरतें सावधानियां:

• हमेशा ट्रिपल लेयर मेडिकल डिस्पोजेबल मास्क का इस्तेमाल करें. 8 घन्टे के बाद मास्क को डिस्पोज कर दें

• मास्क को सोडियम हाइपो-क्लोराइट से डिश-इन्फेक्ट करने के बाद ही बाहर फेंकें

• मरीज पर्याप्त मात्रा में आराम लें एवं प्रचुर मात्रा में पानी पीएं

• लगभग 40 सेकंड तक साबुन एवं पानी से हाथ धोएं या अल्कोहल बेस्ड सैनीटाइजर का प्रयोग करें

• निजी सामान किसी दूसरे के साथ साझा न करें

• जिन सतहों एवं चीजों को छुते हों उसे नियमित तौर पर हाइपो-क्लोराइट से डिश-इन्फेक्ट करें

• चिकिस्त्कीय सलाह को पूरी तरह पालन करें

• अपना ख्याल खुद रखें एवं अपने शारीरिक तापमान को प्रतिदिन मॉनिटर भी करते रहें

बुधवार, 29 अप्रैल 2020

उत्तर प्रदेश के सभी जनपदों के जिलाधिकारियों के मोबाइल नम्बर ।


उत्तर प्रदेश मुख्यमंत्री के आदेशानुसार सभी जिलाधिकारी व्हाट्सआप पर ऑन लाइन
कर दिए गए हैं ।
सीधे डीएम के व्हाट्सएप पर शिकायत कर सकते हैं .उत्तर प्रदेश के सभी जिलों के जिलाधिकारियों के संपर्क...
District Magistrate Uttar Pradesh CUG
No's
Sl.No District CUG No.
1 DM Agra 9454417509
3 DM Aligarh 9454415313
4 DM Allahabad 9454417517
5 DM Ambedkar Nagar 9454417539
6 DM Amroha 9454417571
7 DM Auraiya 9454417550
8 DM Azamgarh 9454417521
9 DM Badaun 9415908422
10 DM Baghpat 9454417562
11 DM Bahraich 9454417535
12 DM Ballia 9454417522
13 DM Balrampur 9454417536
14 DM Banda 9454417531
15 DM Barabanki 9454417540
16 DM Bareilly 9454417524
17 DM Basti 9454417528
18 DM Bijnor 9454417570
19 DM Budaun 9454417525
20 DM Bulandshahar 9454417563
21 DM Chandauli 9454417576
22 DM Chitrakoot 9454417532
23 DM CSJM Nagar 9454418891
24 DM Deoria 9454417543
25 DM Etah 9454417514
26 DM Etawah 9454417551
27 DM Faizabad 9454417541
28 DM Farrukhabad 9454417552
29 DM Fatehpur 9454417518
30 DM Firozabad 9454417510
31 DM Gautambudh Nagar 94544
32 DM Ghaziabad 9454417565
33 DM Ghazipur 9454417577
34 DM Gonda 9454417537
35 DM Gorakhpur 9454417544
36 DM Hamirpur 9454417533
37 DM Hapur 8449053158
38 DM Hardoi 9454417556
39 DM Hathras 9454417515
40 DM J.P.Nagar 5922262999
41 DM Jalaun 9454417548
42 DM Jaunpur 9454417578
43 DM Jhansi 9454417547
44 DM Kannauj 9454417555
45 DM Kanpur Nagar 9454417554
46 DM Kashiram Nagar 9454417516
47 DM Kaushambhi 9454417519
48 DM Kheri 9454417558
49 DM Kushinagar 9454417545
50 DM Lalitpur 9454417549
51 DM Lucknow 9454417557
52 DM Maharaj Ganj 9454417546
53 DM Mahoba 9454417534
54 DM Mainpuri 9454417511
55 DM Mathura 9454417512
56 DM Mau 9454417523
57 DM Meerut 9454417566
58 DM Mirzapur 9454417567
59 DM Moradabad9897897040
61 DM MRT 1212664133
62 DM Muzaffar Nagar 9454417574
63 DM Mzn 9454415445
64 DM PA Mujeeb 9415908159
65 DM Pilibhit 9454417526
66 DM Pratapgarh 9454417520
67 DM Raebareili 9454417559
68 DM Ramabai Nagar 9454417553
69 DM Rampur 9454417573
70 DM Saharanpur 9454417575
71 DM Sambhal 9454416890
72 DM Sant Kabir Nagar 9454417529
73 DM Sant Ravidaas Nagar
9454417568
74 DM Shahjhanpur 9454417527
75 DM Shamli 9454416996
76 DM Shrawasti 9454417538
77 DM Siddhathnagar 9454417530
78 DM Sitapur 9454417560
79 DM Sonbhadra 9454417569
80 DM Sultanpur 9454417542
81 DM Unnao 9454417561
82 DM Varansi 9454417579

ना जुर्म करें ना होने दें ,
करें सीधे जिलाधिकारी से संपर्क। अपने परिचितों को भी भेजें।

मुम्बई में शिवसेना ने घर घर जा कर बांटी राहत सामिग्री

*शिव सेना ने घर-घर जाकर जरूरतमंदों को बांटी राहत सामग्री*



समाचार ब्यूरो मुंबई।
कोरोना संकट के चलते प्रभावित हुए वर्ग को सहयोग देने के उद्देश्य से शिव सेना  के वरिष्ठ पदाधिकारी व सदस्य के मार्गदर्शन से शिव सेना ने कदम आगे बढ़ाए हैं। शिव सेना की नवी मुंबई इकाई ने बुधवार को अधिकाधिक परिवारों को राशन सामग्री मुहैया कराने का पुरजोर प्रयास किया। इस कार्य में कई पदाधिकारियों एवं सदस्यों ने सहभागिता करते हुए घर-घर सामग्री पहुंचाई। जिन लोगों को सामग्री मिली, उन्होंने समस्त पदाधिकारियों और सदस्यों का आभार जताया। शिव सेना जिलाध्यक्ष एवं टॉपर्स फाउंडेशन के संस्थापक संदीप शर्मा ने बताया कि 'कोई भूखा न सोये' की नीति पर चलते हुए इस नेक कार्य को अंजाम दिया जा रहा है। इसी के तहत  *शिव सेना  के विभाग प्रमुख कोपरखैरने सचिन कांबले जी*  ने राशन सामग्री की पूरी व्यवस्था की। उन्होंने 100 से अधिक परिवारों को गेहूं, चावल, नमक, शक्कर , चाय, बटाटा, कादा तथा हल्दी इत्यादि रसोई सामग्री वितरित की। संदीप शर्मा ने कहा कि विभाग प्रमुख समाजसेवी कार्यों में सेवा के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं। साथ ही वे अन्य लोगों के लिए भी आदर्श उदारण बनते हैं। उनका कहना है कि आपदा के समय जरूर एक-दूसरे का सहयोग करना चाहिए। इस अवसर पर बड़ी संख्या में सहयोगकर्ता मौजूद रहे।

*कोई भूखा न सोये ऐसा प्रयास जारी है नवी मुंबई*

यदि अन्य प्रदेशों में फसे हैं और उत्तर प्रदेश आना चाहते हैं तो...



गृह मंत्रालय ने जारी किए आदेश अन्य प्रांतों में फंसे हुए लोग अपने अपने घर जा सकेंगे। सरकार लोगो को अपने घरों को भेजने के लिए छूट दे रही है ।
अपने जनपदों के जिलाधिकारियों से संपर्क करें। 
गूगल पर खोजें मेल करें । अपनी जानकारी दें ।

*दूसरे राज्यों से यूपी आने के लिए संपर्क करें*

महाराष्ट्र से यूपी आने के लिए इस नंबर पर संपर्क करे- 700 7304 242 और 9454 400 177

 तेलंगाना व आंध्र प्रदेश से यूपी आने के लिए इस नंबर पर संपर्क करें 98 866 400 721 or 9454 40 2544

गोवा वह कर्नाटक से यूपी आने के लिए इस नंबर पर संपर्क करें 9415 90 4444 or 9454 400 135

पंजाब व चंडीगढ़ से यूपी आने के लिए इस नंबर पर संपर्क करें 9455 3511 11और 9454 400 190

पश्चिम बंगाल व अंडमान एवं निकोबार से यूपी आने के लिए इस नंबर पर संपर्क करें 9639 981 600 aur 9454 400 537

 राजस्थान से यूपी आने के लिए इस नंबर पर संपर्क करें
945 44 10235 और 94544 05388

 हरियाणा से यूपी आने के लिए इस नंबर पर संपर्क करें
94544 18828

बिहार /झारखंड से यूपी आने के लिए इस नंबर पर संपर्क करें
9 6 2 1 6 5 0067  और 9454400122

गुजरात /दमन /दीव /दादरा एवं नगर हवेली से यूपी आने के लिए इस नंबर पर संपर्क करें 8881954573 और 9454400191

उत्तराखंड /हिमाचल प्रदेश से यूपी आने के लिए इस नंबर पर संपर्क करें 8005194092 और 9454400155

मध्य प्रदेश /छत्तीसगढ़ से यूपी आने के लिए इस नंबर पर संपर्क करें 9454410331 और 9454400157

दिल्ली /जम्मू एवं कश्मीर /लद्दाख से यूपी आने के लिए इस नंबर पर संपर्क करें 8920827174 और 7839854579

 उड़ीसा से यूपी आने के लिए इस नंबर पर संपर्क करें 9454400133

तमिलनाडु /पांडिचेरी से यूपी आने के लिए इस नंबर पर संपर्क करें 9415114075 और 9454400162

अरुणाचल प्रदेश /असम /नागालैंड/ मेघालय /मणिपुर /त्रिपुरा /मिजोरम से यूपी आने के लिए इस नंबर पर संपर्क करें
9454441070 और 9454400148

केरल /लक्ष्यदीप से यूपी आने के लिए इस नंबर पर संपर्क करें
6386725278 और 9454400162

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पुण्यतिथि एक महान योद्धा बाजी राव पेशबा की।

आइए परिचय कराते है ऐसे व्यक्ति से जिसने अपनी आयु के 20 वे वर्ष में पेशवाई के सूत्र संभाले  40 वर्ष  तक के कार्यकाल में 42 युद्ध लड़े हो और सभी जीते हो यानि जो सदा "अपराजेय" रहा हो जिसके एक युद्ध को अमेरिका भी अपने सैनिकों को पाठ्यक्रम के रूप में पढ़ा रहा है ऐसे योद्धा  को आप क्या कहेंगे ?
आप उसे जानते ही नही क्योंकि आपका उससे परिचय ही नहीं
सन 18 अगस्त सन् 1700 में जन्मे उस महान पराक्रमी पेशवा का नाम है - " बाजीराव पेशवा "
जिनका इतिहास में कोई विस्तृत उल्लेख हमने नहीं पढ़ा ,
हम बस इतना जानते हैं कि संजय लीला भंसाली की फिल्म है "बाजीराव-मस्तानी"

"अगर मुझे पहुँचने में देर हो गई तो इतिहास लिखेगा कि एक राजपूत ने मदद मांगी और ब्राह्मण भोजन करता रहा "

ऐसा कहते हुए भोजन की थाली छोड़कर बाजीराव अपनी सेना के साथ राजा छत्रसाल की मदद को बिजली की गति से दौड़ पड़े ।

धरती के महानतम योद्धाओं में से एक , अद्वितीय , अपराजेय और अनुपम योद्धा थे बाजीराव बल्लाल ।

छत्रपति शिवाजी महाराज का हिन्दवी स्वराज का सपना जिसे पूरा कर दिखाया तो सिर्फ - बाजीराव बल्लाल भट्ट जी ने ।

अटक से कटक तक , कन्याकुमारी से सागरमाथा तक केसरिया लहराने का और हिंदू स्वराज लाने के सपने को पूरा किया ब्राह्मण पेशवाओं ने ,खासकर पेशवा 'बाजीराव प्रथम' ने

इतिहास में शुमार अहम घटनाओं में एक यह भी है कि दस दिन की दूरी बाजीराव ने केवल पांच सौ घोड़ों के साथ 48 घंटे में पूरी की, बिना रुके, बिना थके !!

देश के इतिहास में ये अब तक दो आक्रमण ही सबसे तेज माने गए हैं । एक अकबर का फतेहपुर से गुजरात के विद्रोह को दबाने के लिए नौ दिन के अंदर वापस गुजरात जाकर हमला करना और दूसरा बाजीराव का दिल्ली पर हमला ।

बाजीराव दिल्ली तक चढ़ आए थे । आज जहां तालकटोरा स्टेडियम है । वहां बाजीराव ने डेरा डाल दिया । उन्नीस-बीस साल के उस युवा ने मुगल ताकत को दिल्ली और उसके आसपास तक समेट दिया था ।

तीन दिन तक दिल्ली को बंधक बनाकर रखा । मुगल बादशाह की लाल किले से बाहर निकलने की हिम्मत ही नहीं हुई । यहां तक कि 12वां मुगल बादशाह और औरंगजेब का नाती दिल्ली से बाहर भागने ही वाला था कि उसके लोगों ने बताया कि जान से मार दिए गए तो सल्तनत खत्म हो जाएगी । वह लाल किले के अंदर ही किसी अति गुप्त तहखाने में छिप गया ।
बाजीराव मुगलों को अपनी ताकत दिखाकर वापस लौट गए ।

हिंदुस्तान के इतिहास के बाजीराव बल्लाल अकेले ऐसे योद्धा थे जिन्होंने अपनी मात्र 40 वर्ष की आयु में 42 बड़े युद्ध लड़े और एक भी नहीं हारे । अपराजेय , अद्वितीय ।

बाजीराव पहले ऐसा योद्धा थे जिसके समय में 70 से 80 % भारत पर उनका सिक्का चलता था । यानि उनका भारत के 70 से 80 % भू भाग पर राज था ।

बाजीराव बिजली की गति से तेज आक्रमण शैली की कला में निपुण थे जिसे देखकर दुश्मनों के हौसले पस्त हो जाते थे ।

बाजीराव हर हिंदू राजा के लिए आधी रात मदद करने को भी सदैव तैयार रहते थे ।
पूरे देश का बादशाह एक हिंदू हो, ये उनके जीवन का लक्ष्य था । और जनता किसी भी धर्म को मानती हो, बाजीराव उनके साथ न्याय करते थे ।

आप लोग कभी वाराणसी जाएंगे तो उनके नाम का एक घाट पाएंगे, जो खुद बाजीराव ने सन 1735 में बनवाया था । दिल्ली के बिरला मंदिर में जाएंगे तो उनकी एक मूर्ति पाएंगे । कच्छ में जाएंगे तो उनका बनाया 'आइना महल' पाएंगे , पूना में 'मस्तानी महल' और 'शनिवार बाड़ा' पाएंगे

अगर बाजीराव बल्लाल , लू लगने के कारण कम उम्र में ना चल बसते , तो , ना तो अहमद शाह अब्दाली या नादिर शाह हावी हो पाते और ना ही अंग्रेज और पुर्तगालियों जैसी पश्चिमी ताकतें भारत पर राज कर पाती..!!

28अप्रैल सन् 1740 को उस पराक्रमी "अपराजेय" योद्धा ने  मध्यप्रदेश में सनावद के पास रावेरखेड़ी में प्राणोत्सर्ग किया .  उनकी पुण्यतिथि है.. उन्हें शत शत नमन, वंदन पहुँचे🙏🏼💖🚩

#ऐतिहासिक_दिन_विशेष_066   ©अभ्युदय

CSR FUNDS FOR NGO

सीएसआर प्राप्त करने हेतु प्राथमिक कदम :
१. अपने कार्यक्षेत्र के १०० किमी परिधि में आने वाले कंपनियों/PSU एवं उनके CSR अधिकारी को सूचीबद्ध करे एवं उनकी CSR पालिसी का अध्ययन करे , उनके विषय में सम्पूर्ण जानकारी एकत्रित करे
२. सूचीबद्ध CSR अधिकारियो के साथ सोशल मीडिया के माध्यम से सतत संपर्क में रहे. अपने सामाजिक कार्यो को अवगत करने हेतु उन्हें अपने कार्यक्रमों के आमंत्रित करे.
३. अपने दीर्घ कालीन सामाजिक लक्ष्य बनाये (कार्यक्षेत्र ज्यादा ना हो तो ठीक रहेगा जिससे संस्था की विश्वसनीयता बनी रहेगी)
४. अपने प्रकल्प (प्रोजेक्ट) हेतु प्राथमिक रिपोर्ट बनाये २-३ पेज की (ज्यादा विस्तारित ना हो तो ठीक रहेगा) जिसका प्रारूप आपके पास है ही
कृपया अपने इस कार्य को प्राथमिकता से करे , अपना धन एवं समय दलालों के पीछे खराब ना करे , कोई दलाल आपके सामाजिक कार्य एवं उत्थान हेतु CSR फण्ड नहीं दिलवा सकता , आप ही अपने प्रकल्प की सबसे अच्छी मार्केटिंग कर सकते है और कोई नहीं , कृपया एक प्रबल नीति बनाये एवं उसका ही क्रियान्वयन करे , किसी मदद की आवश्यकता हेतु मै हमेशा आपके साथ हु
आपका
अमित जोशी



 भारत पेट्रोलियम से सीएसआर के तहत अनुदान के लिए आवेदन करें
 * संगठन: * भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड
 * थीम: * सीएसआर, शिक्षा, स्वास्थ्य, कौशल विकास, आदि
 * विवरण: * परियोजना कार्यान्वयन एजेंसियां ​​साबित ट्रैक रिकॉर्ड और क्रेडेंशियल्स के साथ BPCL के लिए अपने सीएसआर प्रस्तावों को प्रस्तुत करने के लिए स्वागत है।  बीपीसीएल सीएसआर अनुदान के मुख्य जोर क्षेत्रों में शामिल हैं
 - शिक्षा और कौशल विकास
 - स्वास्थ्य और स्वच्छता
 - जल संरक्षण
 - सामुदायिक विकास
 * पात्रता: * भारत के एनजीओ बीपीसीएल से इस सीएसआर अनुदान के लिए आवेदन कर सकते हैं
 * अनुदान राशि: * निर्दिष्ट नहीं
 * द्वारा लागू करें: * नहीं समय सीमा।  प्रस्ताव कभी भी प्रस्तुत किए जा सकते हैं
 * वेबलिंक: *
https://www.bharatpetroleum.com/social-responsibility/social-responsons.skx


 फॉर एक्शन टूवर्ड्स COVID19
 * संगठन: * एचसीएल फाउंडेशन
 * थीम: * कोविद 19 प्रतिक्रिया
 * विवरण: * एचसीएल फाउंडेशन COVID -19 की ओर कार्रवाई के लिए कहता है और कार्रवाई के लिए इस कॉल में भाग लेने के लिए पात्र गैर सरकारी संगठनों / सीएसआर कार्यान्वयन एजेंसियों से ब्याज की अभिव्यक्ति को आमंत्रित करता है।  सीओएलआईडी -19 में एचसीएल फाउंडेशन की प्रतिक्रिया में तत्काल राहत, बहाली और 'बिल्ड बैक' शामिल होंगे।  राष्ट्रीय संकट के इस समय में, एचसीएल फाउंडेशन, राष्ट्र निर्माण के प्रति अपनी प्रतिबद्धताओं की पुष्टि करता है और आश्वासन देता है कि यह COVID- 19 महामारी के खिलाफ अपनी क्षमता के अनुसार लड़ाई में भाग लेगा।  एचसीएल फाउंडेशन साझेदारों से जवाब देने के साथ-साथ लचीलापन बढ़ाने और स्थानीय समुदायों की कमजोरियों को कम करने, उन्हें बेहतर तैयारी के लिए सक्षम करने, कम करने और COVID-19 आपदा पर प्रतिक्रिया देने की मांग कर रहा है।
 * पात्रता: * भारत भर के गैर सरकारी संगठन इस अनुदान के लिए आवेदन कर सकते हैं
 * अनुदान राशि: * निर्दिष्ट नहीं
 * द्वारा लागू करें: * तुरंत (2-3 दिनों के भीतर)
 * वेबलिंक: * https://drive.google.com/file/d/1zGKICV2HdtePcHfZqACie5gjyGxDlrKB/view?usp=sharing

Ngo help

सूचना       सुचना      सुचना

समाज सेवा के लिए व्यापक रूप से कार्यरत एनजीओ,संस्था ,ट्रस्ट,गैर सरकारी संगठन, सामाजिक संस्था,और प्रतिबद्ध समाजसेवी, सामाजिक कार्यकर्ताओ  को मार्गदर्शन और सहयोग के लिए हमारी संस्था छत्तीसगढ़ शबरी सेवा संस्थान लखनपुर जिला सरगुजा (छ ग) सदैव तैयार रहती है।
एनजीओ के पंजीयन उपरान्त उनके आवश्यक दस्तावेजों का कुशल निर्माण एवं संस्था द्वारा किये गए विभिन्न गतिविधियों की रूप रेखा ही सरकारी अनुदान हेतु प्राप्त होती है।  | जो संस्थाये फण्डिंग पाने कि उम्मीद करती हैं और उनको सरकारी  और निजी अनुदान दाताओ अथवा अन्य एनजीओ फण्डिंग से अनुदान कैसे मिले और किनको मिलेगा  इसके बारे में  हमारे से तकनीकी जानकारो से जानकारी एंव सहयोग ले सकते है।|
मेरा आप सभी एनजीओ संचालकों से विनम्र निवेदन है कि एनजीओ , ट्रस्ट में कोई शॉर्टकट नहीं होता है।
यदि आपका एनजीओ का सिर्फ रजिस्ट्रेशन किया हुआ हैं एवं कोई सामाजिक कार्य, एनुअल रिपोर्ट,ऑडिट रिपोर्ट,एवं अन्य दस्तवेजों जिसमे पंजीकरण प्रमाण प्रत्र ,संविधान नियमावली की कापी, पेन कार्ड,नीति आयोग पंजीकरण कापी, ,धारा 27,28 नवीन कार्यकारिणी की सुची हो एवं आडीट रिपोर्ट, वार्षिक रिपोर्ट, बैक खाता तो ऐसी संस्थाओ को फण्ड अथवा अनुदान की मिलने की संभावना अधिक  रहती हैं |
आपसे निवेदन हैं कि अपने सभी कार्यक्रमों,गतिविधियों एवं वार्षिक बैठक, मासिक बैठक रजिस्टर पंजी ,आवक जावक,किये गये कार्यक्रमो उपलब्धियों के पेपर कटिंग ,फोटोग्राफ,दस्तवेज जरूर रखे एंव  बनाये ।  साथ ही संस्था का विधिवत लेटर पैड हो जिसमे संस्था का पंजीकरण नंबर,संस्था का मोनो,संस्था नाम ,पुरा पता ,ईमेल, अगर वेवसाईट हो तो एंव मोबाइल नंबर अवश्य रहे हो।लेटर पैड मे विधिवत आवेदन देना अनिवार्य है ।अंत मे संस्था प्रमुख का सील एंव हस्ताक्षर अनिवार्य है। तभी अनुदान प्रस्ताव विभिन्न विभागों मे भेजा जाये।कही भी कोई समस्या अगर दस्तावेज बनानेआ रही है तो छत्तीसगढ़ शबरी सेवा संस्थान लखनपुर जिला सरगुजा छत्तीसगढ़ के सचिव सुरेन्द्र साहू मोंन09977225594,0942424938 पर सम्पर्क कर सकते है।

मंगलवार, 28 अप्रैल 2020

स्त्री_तंत्र_की_व्याख्या छठा अध्याय_( विवाह पद्धति को समझने से पहले जानने योग्य कुछ बातें)

#स्त्री_तंत्र_की_व्याख्या
छठा अध्याय_( विवाह पद्धति को समझने से पहले जानने योग्य कुछ बातें)



#विवाह_से_पूर्व_वर_वधू_का_न_मिलना

विवाह से पूर्व विवाह करने वाले जोड़े का एक दूसरे से दूर रहना इस विषय पर आज आपका ध्यान केंद्रित कराना चाहती हूं।

इस बिन्दु को समझाने से पहले मैं यहां पर एक बात और ध्यान दिलाना चाहती हूं कि हमारे समाज में युग्म के लिए स्त्री पुरुष का चुनाव या तो मां-बाप के द्वारा किया जाता है या फिर पुरुषों द्वारा किया जाता है, परंतु प्रकृति में ऐसा विधान है कि स्त्री यानी कि मादा अपने जीवन साथी का चुनाव करती है, तो हमें भी इसी बात को नींव बनाकर विवाह पद्धति में आगे बढ़ना है। चुनाव या निर्णय लेने की क्षमता स्त्री में ज्यादा होती है। स्त्री की प्रकृति है ग्रहण करने की, वह उसी पुरुष को ग्रहण करेंगी जो उसके मन में समाहित होगा, तभी हम परमपिता परमात्मा के उस युग्म को प्राप्त कर पाएंगे।

इतनी बड़ी जिम्मेदारी का निर्वहन करने के लिए बच्चों में शुरू से ही इस बात का इन विचारों का हम समावेश करें कि आपको आगे चलकर  जिस युग्म के रूप में उन्हें परिवर्तित होना है उसकी महत्व क्या है? यह हम उन्हें उनके जीवन काल में विवाह पूर्व समय अनुसार बताते रहें ताकि वे अपने धर्म को उनकी विधियों को बहुत अच्छी तरह समझ सकें।

यहां मैं बात कर रही थी स्त्री द्वारा चयन करने की। प्रकृति में मादा को अधिकार है कि वह  सृष्टि के विस्तार के लिए अपने साथी का चुनाव करें, इसलिए यह जरूरी हो जाता है कि मनुष्य योनि में भी स्त्रियों को अधिकार हो कि वह अपने अनुरूप जीवनसाथी का चुनाव कर उसके साथ युग्म में परिवर्तित होकर सृष्टि का विकास करें।

जो लोग इस बात से इत्तेफाक नहीं रखते उन्हें यह याद रखना चाहिए कि जो प्रकृति के नियम के विरुद्ध जाता है विनाश की ओर जाता है

 इसका एक उदाहरण दे रही हूं केदारनाथ की विध्वंस कारी प्रलय इस बात का साक्षात उदाहरण है कि प्रकृति के विरुद्ध जाने पर प्रकृति विनाश का नजारा दिखाती है। वहां पर जो प्रलय आई वह इसलिए नहीं आई कि केदारनाथ मोक्ष का द्वार है और वहां सभी उम्र के लोग जाकर मस्ती मजाक और तरह-तरह की सुख-सुविधाओं का भोग कर रहे थे, नहीं क्योंकि प्रकृति की गोद में प्रकृति के बच्चे खेलें  इससे प्रकृति खुश होती है। फलीभूत होती है। इसलिए वह कभी भी बच्चों के खेलने पर प्रलय कारी रूप नहीं धरेगी। इस बात को हमें समझना होगा वहाँ पर महाप्रलय सिर्फ इसलिए आई है की लोगों ने नदी का रास्ता रोक कर वह बिल्डिंग बनाई जिससे नदी को बहने में परेशानी हुई और एक दिन उसने एक धार के साथ सब को बता दिया कि यह मेरा क्षेत्र है और यहां मुझे बहने से कोई नहीं रोक सकता।

अब बात करती हूं विवाह से पूर्व वर वधू का ना मिलना इस तरह की परंपरा प्रचलित है इस पर प्रकाश डाल रही हूं

विवाह पद्धति में इस परंपरा का बहुत ही सुन्दर, सौम्य कारण है कि हम वर वधु की शुद्धि करके अपने धर्म के सभी देवी देवताओं का आशीर्वाद दिलाने के लिए उनका हवन पूजन करते हैं ताकि उनकी आत्मा शुद्ध हो युग्म परिवर्तित होने के लिए तैयार हो सके।

 एक दूसरे चयन करने के पश्चात एक दूसरे में समाहित होने की लगन उन्हें एक दूसरे के परस्पर आकर्षण पर खींचती है। स्त्री पुरुष का युग्म बनना कोई पाप नहीं है, परंतु विवाह फॉर्मेट, यह पद्धति हमारे धर्म में इसलिए डाली गई है कि जिस युग्म को बनाकर वह परमपिता परमात्मा के उच्चतम शिखर पर पहुंचेंगे उस युग्म को हमारे धर्म में सम्मिलित सभी देवी देवताओं का आशीर्वाद मिल सके  ताकि उनका आने वाला भविष्य सुदृढ़ हो सके यदि हम अपने बच्चों में कूट-कूट कर देंगे तो वह हमारे किसी भी संस्कार को नकार नहीं सकते। हम जिस धर्म में पैदा हुए हैं उस धर्म से संबंधित सभी देवी देवताओं का आशीर्वाद लेकर युग्म बनने के क्या फायदे हैं? क्या मायने हैं? यह बात हम अपने बच्चों को परवरिश के दौरान समझाने हैं ताकि वह अपने धर्म को अपनी परंपराओं के महत्व को समझ सके और यदि हमारे पढ़े-लिखे बच्चों को हम सभी कारणों सहित सारी परंपराओं के बारे में ज्ञान दे, तो वह अपनी परंपराओं को मानने से मना नहीं करने के क्योंकि वह भी इतने बुद्धिमान है कि अपना अच्छा बुरा सोच सकें।

उम्र के वे पड़ाव जिन पर हमें अपने बच्चों को यह बताना है कि उनका जन्म सृष्टि के विकास के लिए हुआ है

प्राचीन काल में परंपरा थी जब नव युक्तियां मासिक धर्म की ओर अग्रसर हित होती थी तब उनके प्रथम बार इस श्रेणी में कदम रखने पर घर में उत्सव मनाया जाता था यह संस्कार है हमारे हिंदू धर्म के, जब नवयुवतियां इस श्रेणी में कदम रखती हैं तब हमें उनकी परवरिश के दौरान उन्हें इस चीज की अहमियत बतानी चाहिए। उद्देश्य बताने चाहिए। कार्यो से अवगत कराना चाहिए ताकि वह पढ़ने लिखने के साथ अपने दिमाग को इस बात के लिए भी सेट अप कर लें कि उन्हें सृष्टि का विकास करना है और उसके लिए उन्हें जिस साथी की तलाश करनी है वह उनकी अनुकूल होना चाहिए। इसके लिए उन में चयन शक्ति का तीव्र और तक्षिण होना बहुत जरूरी है। जब हम अपने बच्चों का दिमाग इस तरह से सेटअप करेंगे तब यह भविष्य के युग्म निर्धारण कार्य के लिए परिपक्व होते जाएंगे और इसके लिए जरूरी है कि हमारे सभी संस्कारों जैसे विवाह पद्धति के व्याख्यात्मक विश्लेषण का हमारी शिक्षा पद्धति में जुड़ना।

इसलिए सभी सुधार के साथ-साथ सबसे अहम बिन्दु है शिक्षा पद्धति का बदला जाना। यह तभी हो सकेगा जब हमारी आवाज शिक्षा पद्धति को चयन करने वाले चयनकर्ताओं तक पहुंचे। अगर मेरे लेख आप लोगों को कुछ प्रेरणा देते हैं तो प्लीज इन्हें फॉरवर्ड कीजिए शिक्षा पद्धति के चयनकर्ताओं तक और यह फॉरवर्ड होने चाहिए हमारे मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री तक भी क्योंकि उन लोगों के ही हाथ में है कि वह शिक्षा पद्धति के चयनकर्ताओं को नियुक्त करते हैं। जब उन्हें इस स्थिति को अवगत कराया जाएगा तो वे इस तरह जरूर ध्यान देंगे क्योंकि वह खुद एक समाज सुधारक के रूप में देश में कार्यरत हैं।
#विवाह #के #सात #वचनों #से #पूर्व #जानने #योग्य #बातें

विवाह के सात वचनों से पहले बच्चों को उनके संस्कार में हिंदू धर्म के प्रति आस्था जगाने वाला हर क्रियाकलाप होना चाहिए और वह उसी परिपाटी पर होना चाहिए, जो स्त्री जाति की प्रमुखता पर आधारित हो। अगर इसमें एक भी शब्द ऐसा हुआ जिससे स्त्री जाति को नीचा दिखाने की वाली बात जाहिर हो रही हो तो हमारा बदलाव कोई भी फायदा नहीं देगा।

हिंदू धर्म के नियम परंपराएं उसी अनुसार हमें अपने बच्चों को समझाने है, जो स्त्री जाति की श्रेष्ठता बताएं। क्योंकि स्त्री नियम है स्त्री ग्रहण करती है इसलिए हिंदू धर्म की परिपाटी भी उसी के अनुकूल बताई जाए क्योंकि वास्तविक हिंदू धर्म प्रकृति के ही अनुकूल है।

आजकल के बच्चों के मन में सवाल बहुत उठते हैं और जब तक वह अपने सवालों के उत्तर से संतुष्ट नहीं होते, तब तक वह कोई चीज मानने को तैयार नहीं होते, इसलिए उत्तर तर्कपूर्ण होने चाहिए आपके, आपके बच्चों की संतुष्टि के लिए ताकि उनका हिंदू धर्म के प्रति रुझान बने।

उदाहरण के तौर पर बच्चे कहें कि हम अन्य किसी धर्म के अंदर शादी क्यों नहीं कर सकते तो पहला बिन्दु आप उन्हें यही बताएं कि आप जिस परिवेश में पले बढ़े हुए हो, यदि उससे हटकर धर्म का चुनाव अपने जीवन यापन के लिए करोगे तो वह आपके लिए ही मुसीबत बनेगा क्योंकि आपको आदत नहीं है दूसरे धर्म के अनुसार चलने की, उसका अनुसरण करने की, इसलिए बेहतर जीवन यापन के लिए जीवनसाथी का चुनाव अपने ही धर्म के अनुसार करें अपने कास्ट के आधार पर करें। उन्हें यह भी बताया जाए कि एक ही गोत्र में हमारे यहां शादी नहीं की जाती क्योंकि एक गोत्र के होने के कारण वह गोती भाई माने जाते हैं इसलिए एक गोत्र में भी हम शादी नहीं कर सकते। क्योंकि हमारे धर्म में भाई बहनों का विवाह  निषेध है। यह सब हमें अपने बच्चों को शुरू से ही समझाने होंगे, तब जाकर वह चयन कर पाएंगे अच्छे जीवनसाथी का। उन्हें  यह भी  बताना चाहिए  कि यदि उनका मन मिल रहा है परंतु उनका कास्ट, उनका धर्म, उस परिवेश से अलग है जिस परिवेश में वह खुद पले बढ़े हैं तब भी वे अच्छा जीवन यापन नहीं कर पाएंगे। भविष्य में यह सब शिक्षा हमें अपने अनुरूप अपने बच्चों को देनी चाहिए ताकि उनका दिमाग इस बात के लिए सेट हो सके कि उन्हें क्या चयन करना है। जब यह सब बातें उनके दिमाग में होंगी तब वे अपनी चयन का दायरा सुनिश्चित करके आगे भविष्य के लिए कदम बढ़ाएंगे। उन्हें यह भी समझाएं कि हमें परमपिता का युग्म बनाना है जो कि हमारे अपने हिंदू धर्म के अनुसार ही बनेगा और किसी धर्म के लोग उस परमपिता परमात्मा के युग्म के लिए बनने को तैयार नहीं होंगे क्योंकि भी उसी युग्म की महत्ता को समझ नहीं पाएंगे इस बात को  हमें अपने बच्चों के अंदर बिठाना है और परमपिता परमात्मा के युग्म को ही ध्यान में रखकर हमें संस्कार की परिपाटी तय करनी है अगर वह कोई क्वेश्चन करते हैं तो आप भी उनसे पूछिए कि क्या दूसरे धर्म का साथी आपके उस परमपिता परमात्मा की धारणा को समझ पाएगा?

इस समय हिंदू धर्म की सबसे बड़ी  कमी  यही है कि  इस धर्म में मां और बेटी के प्रति इज्जत सिखाते हैं लेकिन पत्नी के प्रति नहीं  इसलिए सब चीजों के साथ-साथ हिंदू धर्म के पुरुष वर्ग को भी नारियों की भावनाओं को समझने की शिक्षा बचपन से ही देनी चाहिए यह नहीं कि सिर्फ मां की इज्जत करनी है, मां की इज्जत करनी है बड़े होकर तो पूरा जीवन अपनी पत्नी के साथ ही बिताना है और वह पत्नी नहीं है बनने वाले युग्म का आधा भाग है तो मां और बहन की इज्जत के साथ पत्नी की इज्जत की शिक्षा भी उम्र अनुसार पुरुष वर्ग में प्रसारित की जानी चाहिए इस बात की हिंदू धर्म में बहुत कमी है कारण यही है कि प्रकृति के अनुकूल चलने वाला हिंदू धर्म प्रकृति के विपरीत चल रहा है। यदि हमें इसका प्रकृति के अनुकूल ढलान बनाना है तो हमें स्त्री और पुरुष दोनों वर्गों की परवरिश प्रकृति के अनुकूल करनी होगी।

 जो लोग मेरी इन बातों से संदेहात्मक स्थिति या जटिलता की अवस्था में जा रहे हैं उन्हें याद रखना चाहिए कि समाज हमेशा नियमों के दायरे में चलता है और परिवार के भी नियम निर्धारण की है व्यवस्था की जा रही है तथा विवाह पद्धति वचनों के अनुसार तय की गई है हमारे धर्म में इसलिए मेरे लिखी हुई एक एक बात को गौर से पढ़ें दो-तीन बार पढ़ें  क्योंकि मैंने कोई भी पॉइंट ऐसा नहीं डाला जिससे स्त्री जाति के  अपमान का दायरा बने और जो लोग  पुरुष प्रधान समाज के दायरे में ही चलकर  इन बातों को समझेंगे तो वह कुछ समझ नहीं पाएंगे उन्हें अपनी सोच बदलनी होगी  तभी हम नवनिर्माण की तरफ बढ़ पाएंगे।

कल से विवाह के सात वचन की व्याख्या की जाएगी।

राष्ट्रीय मासिक पत्रिका में प्रकाशन हेतु आलेख आमंत्रित।

 प्रिय महोदय/महोदया,

आपके 'नवदृष्टि युवा आवाज  की 'करोना संकट' से सम्बन्धित आलेखों पर आधारित ऑनलाइन ब्लॉग में  यदि आलेख प्रस्तुति हेतु रुचि है, तो आपका हार्दिक स्वागत।

आपसे आग्रह है कि आप अपने आलेख का इच्छित विषय कृपा कर सूचित करें। आपके इच्छित विषय आलेख प्रस्तुत करें। इच्छित विषय पर संपादन मंडल की स्वीकृति न होने पर आप संपादन मंडल द्वारा तैयार विषय सूची पर भी अपना आलेख प्रस्तुत कर सकते हैं -

कोरोना पर आलेखों की विषय सूची -

1. विश्व राजनीति पर प्रभाव
2. भारतीय राजनीति पर प्रभाव
3. विश्व अर्थव्यवस्था पर प्रभाव 4. भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव
 5. कोरोना संक्रमण रोकथाम की विधियां
6. कोरोना संकट और पर्यावरण
7. भारतीय संस्कृति और कोरोना संकट का लॉक डाउन ।
8. कोरोना महामारी या षड्यंत्र
9. कोरोना संकट का चीन की अंतरराष्ट्रीय स्थिति पर प्रभाव
10. कोरोना संकट कोविड 19 में वामपंथी व्यवहार
11. कोरोना संकट कोविड 19 व तबलीगी जमात
12. कोरोना संकट कोविड 19 में सोशल मीडिया पर मुस्लिम
13. कोरोना संकट कोविड 19 में कार्यरत योद्धाओं का संघर्ष
14. कोरोना संकट कोविड 19 में मजदूर पलायन
15. कोरोना संकट के बाद  की दुनिया
16. कोरोना संकट में महत्वपूर्ण आंकड़े
17. कोरोना संकट में भारतीय संस्कृति और पश्चिम
18. कोरोना  संकट में निकाले गए भारतीय
19. कोरोना संकट में भारत में विदेशी
20. कोरोना संकट में केरल
21. कोरोना संकट में भीलवाड़ा
22. कोविड 19 कोरोना संकट में इंदौर
23. कोविड 19 कोरोना संकट में दिल्ली
24. कोविड 19कोरोना संकट में मुंबई
25. कोविड 19कोरोना संकट में जम्मू-कश्मीर
26. कोविड 19कोरोना संकट में अंडमान
27. कोविड 19कोरोना संकट में पूर्वोत्तर
28. कोविड 19 कोरोना संकट में पश्चिम बंगाल
29. कोविड 19कोरोना संकट में बेसुरे बोल
30. कोविड 19कोरोना संकट और पत्थरबाजी
31. कोविड 19कोरोना संकट और अफवाह बाजी
32. कोविड 19कोरोना संकट और कानून
33.कोविड 19 कोरोना और चीन के आर्थिक हित

    निवेदन, देश के टुकड़े करने वालो के द्वारा फैलाई जा रही सामाजिक वैमनस्यता के प्रतिरोध हेतु आप नवदृष्टि युवा आवाज राष्ट्रीय ऑनलाइन पत्रिका में  सक्रिय सहभागिता करें।

आशा है आप हमसे सहमत होंगे।
सादर


मृदुल शर्मा
प्रधान संपादक
नवदृष्टि युवा आवाज
राष्ट्रीय मासिक पत्रिका।
9759348402 पर वाट्स एप करें ।




अखिल भारतीय निबंध प्रतियोगिता
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आचार्य अकादमी, (पंजीकृत)चुलियाणा रोहज,जिला -रोहतक (हरियाणा)-124501
पिछले नौ वर्षों से नियमित रूप से ग्यारह अंतरराष्ट्रीय रिसर्च जर्नल प्रकाशित करने,सोशल मिडिया के माध्यम से हजारों राष्ट्र-संस्कृति-धर्म-अध्यात्म-योग साधना भक्तिपूर्ण आलेख प्रचारित प्रसारित करने , साहित्यिक गोष्ठियों का आयोजन करने तथा 'वैदिक योगशाला' के माध्यम से नियमित रुप से योगाभ्यास की व्यवस्था करने में संलग्न रही है।,,,,,,,,,इसी श्रृंखला में 'आचार्य अकादमी' आर्य वैदिक नव-वर्ष 1960853121के शुभ अवसर पर एक अखिल भारतीय वृहद् निबंध प्रतियोगिता का आयोजन करवाने जा रही है।
निबंध प्रतियोगिता के विषय:
1.सनातन भारतीय राष्ट्रवाद
2.सनातन आर्य वैदिक संस्कृति:धरा का वर्तमान व भविष्य
3.सनातन आर्य वैदिक जीवन-मूल्यों की समकालीन प्रासंगिकता
4. भारतीय दर्शन:धरा के सभी दर्शनों का आदिमूल
5.धर्म,योग व विज्ञान: विरोधी या परस्पर पूरक?
6.राष्ट्रभाषा के बिना कैसा राष्ट्र?:आर्यभाषा(हिंदी)
7.स्वदेशी भावना के विकास-सूत्र व भारत राष्ट्र निर्माण
8.स्वदेशी हथियार प्रणाली की जरूरत
9.सनातन भारतीय योग- साधना का व्यापारीकरण
10.गीतोपदेश में आतंकवाद की समाप्ति के स्वर्णिम सूत्र
11.'शठे शाठ्यम् समाचरेत' की सनातन भारतीय नीति की समकालीन प्रासंगिकता
12.हमारे आधुनिक महापुरुष: स्वामी दयानंद सरस्वती, ओशो रजनीश व राजीव भाई दीक्षित
13.स्वदेशी संविधान की जरूरत

विशेष:
1.निबंध केवल आर्यभाषा(हिंदी) में कृष्णा व यूनिकोड मंगल फांट में टाईप करवाकर ईमेल के माध्यम से  shilakram9@gmail.com पर प्रेषित करवाना है।
2.निबंध की शब्द संख्या 1000 शब्दों तक सीमित हो।
3.निबंध भेजने की अंतिम तिथि 30 अप्रैल 2020 है।
4.आर्य वैदिक मानवी सृष्टि नववर्ष 1960853121के शुभारंभ दिवस पर प्रतियोगिता के पुरस्कारों की घोषणा की जाएगी।
5.किसी भी आयु वर्ग का कोई भी व्यक्ति इस निबंध प्रतियोगिता में भाग ले सकता है।
6.दिए गए विषयों की हरेक श्रेणी में आचार्य अकादमी की ओर से तीन- तीन पुरस्कार (कुल पुरस्कार 39) 1100,500 व 250 रुपये की राशि व प्रमाणपत्र प्रदान किए जाएंगे।
7.हरेक विधा में विषय विशेषज्ञों की समिति का निर्णय अंतिम होगा।
8.यदि संभव हुआ तथा कोई योजना बनी तो इन निबंधों की आईएसबीएन सहित पुस्तक भी प्रकाशित कर देंगे।
9.किसी भी जानकारी के लिए संपर्क करें:
9050407192,9992885894,9813013065,8222913065.
ईमेल: shilakram9@gmail.com

विनीत-
आचार्य शीलक राम
आचार्य अकादमी
चुलियाणा रोहज
जिला -रोहतक
(हरियाणा)
पिन:124501

लॉक डाउन अनुभूति

     सभी सम्माननीय साथियों को सादर अभिनंदन साथियो मैं मृदुल शर्मा संस्थापक एवम अध्यक्ष राष्ट्रीय जागरूक युवा संगठन भारत से एक सामाजिक कार्यकर्ता हूं ।बहन सीमा घोष जी राष्ट्रीय जागरूक युवा संगठन की वरिष्ठ पदाधिकारी हैं ।उनके आग्रह पर लोक डाउन की अनुभूति प्रकट कर रहा हूँ । इस लॉक डाउन में सामाजिक दूरी और सम्पूर्ण लोक डाउन का पालन करते हुए अब तक का समय व्यतीत किया एवम इस समय कोविड 19 से लड़ने में जो योद्धा अपनी जान पर खेल कर कार्य कर रहे हैं जैसे डॉक्टर्स एवम मेडिकल स्टाफ , पुलिस अधिकारी एवम कर्मचारी , सफाई कर्मचारी ,पत्रकार , सक्रिय रूप से कार्य कर रहे समस्त विभाग, समाज सेवी एवम समाज सेवी संस्थाएं , साथ मे ऐसे में सभी मूलभूत आवश्यकताओं को पूर्ति करने वाले व्यापारी वर्ग दुकानदार दूध वाले उन्हें हृदय से नमन ।

   
       सामाजिक कार्यकर्ता होनेके नाते एवम राष्ट्रीय स्तर पर rjys भारत ngo का संचालन करने के कारण इस आपदा में हेल्पलाइन नम्बर पर देश के विभिन्न स्थानों के भाई बंधुओ से, जो अधिकतर अपने परिवारों से दूर दूसरे प्रदेशों में फस गए हैं,  संवाद हुआ उनकी समस्याएं सुनी और उनकी सहायता हेतु यथा संभव कार्य भी किये ।  इस समय अपनी सामाजिक गतिविधियों के कारण अपने परिवार से दूर दिल्ली में ही हूँ। लॉक डाउन शुरू होने के लगभग 8 दिन बाद से ही अन्य प्रांतों में जाकर कार्य कर रहे या घूमने गए लोगो के फोन आने लगे कि किसी प्रकार उन्हें अपने घर पहुंचाया जाए । हमने शासन प्रशासन से जो सहयोग मिला उससे एवम सामाजिक संस्थाओं के सहयोग से सभी की मदद करने का प्रयास किया । उन लोगो का आत्मबल बढ़ाया।उन्हें संबल दिया। जहां है वही रहने के लिए कहा एवम उनकी जरूरतों सुरक्षा हेतु समय समय पर सम्पर्क में रहे और जो स्वयम से संभव हुआ किया इसमे समाजिक कार्यकर्ताओ का विशेष सहयोग मिला। साथ ही सामाजिक संस्थाओं से यह निवेदन भी किया किसीकी मदद करते वक्त फ़ोटो खींच कर लज्जित ना करें । 

    राजस्थान से दिल्ली आए हुए कुछ लोगो की आर्थिक सहायता भी की एवम भोजन व्ययवस्था भी की गई। ऐसे ही महाराष्ट्र से अन्य स्थानों में फसे लोगो की सहायता करने का प्रयास किया गया गुजरात मे फसे मथुरा के लोगो की सहायता की गई। महाराष्ट्र में फसे उत्तर प्रदेश के लोगों की सहायता की गई ऐसे कार्यो में संलग्नता रही यह कार्य निरंतर जारी है। 

   कोविड 19 सबसे बड़ी प्राकृतिक आपदा है और इसकी भयावहता आने वाले समय मे देखने को मिलेगी । गरीब और निम्न मध्यम परिवार के लोगो के लिए यह बहुत ही खतरनाक होने वाली है । लाखो लोगो के रोजगार पर संकट है । आने वाले समय की अनिश्चितता से चिन्तित और व्यथित हैं।
 
    समाज सेवी संस्थाओ द्वारा भोजन आदि की व्यवस्था की जा रही है जो कि अत्यंत सराहनीय है क्योंकि सामाजिक कार्यकर्ता अपनी जान पर खेल कर मुसीबत के समय जरूरत मन्दो को भोजन प्रसाद वितरित कर रहे हैं साक्षात ईश्वर से कम नहीं हैं ।
 
    जीवन के लिए अन्य महत्वपूर्ण वस्तुओ की आवश्यकता होती है जिसके लिए धन की आवश्यकता पड़ती ही है ग़रीबी रेखा से नीचे जीवन जीने वाले लोग भोजन के लिए लाइन में लग सकते हैं और भोजन ले सकते है उससे ज्यादा मरना उन लोगों का होगा जो किसी से मांग नही सकते और उनके पास कुछ होगा नहीं। स्वयम कोई जाकर उन्हें देगा नहीं।
 
     सरकारों द्वारा गरीबो के लिए अनेक दावे और घोषणाएं हो रही हैं धरातल पर सरकार से ज्यादा सामाजिक संस्थाएं कार्य करती नज़र आ रहीं हैं।

     पर्यावरण की बात की जाए तो निश्चित रूप से प्रदूषण तो खत्म ही हो गया है  क्योंकि ना फेक्ट्री चल रहीं ना मोटरयान। जल प्रदूषण की बात करें नदियों में गिरने वाले गंदे नाले रोक दिए जाए तो शुद्धता और निर्मलता वापस आ सकती है। वैसे नदियों का जल पहले से अधिक शुद्ध हो चुका है । यह एक सकारात्मक लाभ मानव प्रजाति को मिला है पर्यावरण शुद्ध हुआ है।
 
     मनुष्य को भागदौड़ की जिंदगी में स्वयम से मिलने का अवसर नही मिल पाता था इस लॉक डाउन में आत्मसाक्षात्कार का अवसर मिला है खुद से हुई भूल व चूक को सुधार आगे बढ़ने का सही समय इस लॉक डाउन ने हमे दिया है ।
 
    ध्यान और योग ऐसी क्रियाएं है जिनकी सहायता से हम स्वयम को आंतरिक और शारीरिक रूप से मजबूत कर सकते हैं।इसे हमने अपने जीवन का अंग बना लिया है ।
 
     अपने ज्ञान को बढ़ाने के लिए आज हम सबके पास इंटरनेट, मोबाइल और इनमें गूगल यूट्यूब मौजूद है । आप अपनी स्किलक्स डेवेलोप कर सजते हैं। यह अच्छा अवसर है। लॉक डाउन में मोबाइल सभी का साथी बना हुआ है और हमारा भी जिसके माध्यम से आप जैसे सभी महानुभावो से हम जुड़े हुए हैं ।
   
     आने वाले समय में इस महामारी के कारण जीवन शैली पर प्रभाव पड़ सकता है। जैसे मास्क लगाना अनिवार्य हो सकता है। सामाजिक दूरी भी अनिवार्य हो सकती है। अब हम सब डिजिटली साथ रह कर कार्य कर सकते हैं।
 
     आत्मा एक दुसरे के सहयोग में रहेंगी माध्यम होगा इंटरनेट। खैर एक दूसरे का यथा सामर्थ्य साथ दें । अपने लोगों की समस्या को भांप कर आवश्यकतानुसार कदम बढ़ाकर सहयोग अवश्य करें। तब ही हम इस प्राकृतिक आपदा से जीत पाएंगे। 

संघे शक्ति कलयुगे । 

   इस सब के बीच संस्था का ब्लॉग संचालित किया गया है जिस पर ब्लॉगिंग भी शुरू की गई। जिसमे लेखक एववम लेखिकाओं का सहयोग मिल रहा है ।इसके लिए आप सभी का सहयोग भी अपेक्षित है। ब्लॉग हेतु जन उपयोगी लेख , ज्ञानवर्धक,  राष्ट्रवादी लेख , आमंत्रित है। आप स्वयम इस ब्लॉग के एडिटर के रूप में स्वयम कार्य कर सकते हैं ।
इसके लिए अपनी ईमेल आई डी 9759348402 पर मेल कर सकते हैं । अपने विचार, लेख, रचनाएं एवम सामाजिक कार्य भी प्रेषित कर सकते हैं। आवश्यक सुझाव भी दे सकते हैं। 
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#स्त्री_तंत्र_की_व्याख्या पांचवा अध्याय - दीपिका माहेश्वरी।

#स्त्री_तंत्र_की_व्याख्या
 पांचवा अध्याय_(परिवार निर्धारण के नियम के महत्वपूर्ण बिंदु)


मेरे इस कदम से परिवार निर्धारण के नियमों की रूपरेखा तय करने में सभी को मदद मिलेगी क्योंकि हम एक प्रजातंत्र देश में रहते हैं सभी के पास अपनी बुद्धि, विवेक है और अपना अपना परिवार है। जो मैं बिंदु दे रही हूं, उन बिंदुओं के समावेश से सभी लोग अपने अपने परिवार के नियमों का निर्धारण करें ऐसी आशा करती हूँ...

सबसे पहला बिंदु है
1) #कामौर्य #को #नगण्य #स्थान #पर #रखना

प्राचीन काल में परिवार का निर्धारण इस बिंदु को सर्वश्रेष्ठ मानकर किया गया यानी कामौर्य के आधार पर किया गया इसलिए ही इसकी प्रधानता  के साथ पारिवारिक संस्था का विकास विनाश की ओर जा रहा है।
जानती हूं कि यह मनुष्य की मुख्य जरूरतों में से एक है जितनी यह मुख्य है उतनी सरलता से यह पूर्ण भी हो जाएगी यदि हम इसे प्रधानता नहीं देंगे तब भी क्योंकि यह भावना प्रधान होती है यदि हम अपने जीवनसाथी की भावनाओं का ध्यान रखें तो हमें अपनी इस जरूरत को पूरा करने के लिए कोई भी प्रयत्न नहीं करना पड़ेगा क्योंकि स्त्री जाति का यह स्वभाविक गुण है कि जो उसे मिलता है उसे हजार गुना वह बढ़ा कर वापस करती है और दूसरा यह कि नारी जाति सम्मान पर समर्पण करती है यदि उसकी भावनाओं का ध्यान रखा जाए उसके सम्मान का ध्यान रखा जाए तो आपकी जरूरत है वह बिना कहे ही पूरा कर देगी यह उसका स्वाभाविक गुण है जिसके लिए कोई विचार रखना आपके बुद्धि के दोषों को उजागर करेगा क्योंकि नारी एक नियम है और नियम पर सवाल नहीं उठाए जाते।
 परिवार निर्धारण का दूसरा महत्वपूर्ण नियम बिंदु_

2) #स्त्रीजाति #की #भावनाओं #की #प्रधानता

स्त्री की संरचना भावों से की गई है और भावनाएं तरल रूप होती है इसलिए आप इस तरह समझ सकते हैं की स्त्रियां भावनाओं के रूप में समुद्र जैसी हैं जिनकी स्थिति आज मैं आपके सामने रख रही हूं
स्त्रियां आज के समय में भावनाओं का वह समंदर है जिसे समाज ने तपती अकाल की धूप में रख रखा है और इस कारण उसका पानी निरंतर सूख कर बादलों के रूप में आकाश में जमा हो रहा है।

आप गौर करें तो समुंद्र का एक प्राकृतिक नियम है यदि गर्मी से समुद्र का पानी सूख कर भाप बनता है और बादलों में समाता है तब बादलों से उस पानी की  बरसात  भी होना  अत्यंत आवश्यक है । यह प्राकृतिक नियम है।

यहां पर  यही बात गौर करने की है  कि हमने स्त्री रूपी भावना के समुद्र को  अकाल रूपी धूप में झुलसा रखा है। साथ ही इस नियम की पाबंदी भी लगा दी है कि भाप बनकर उड़ने वाला भावनाओं का समंदर जब बादल के रूप में आकाश में जमा हो, तो उसे बरसने की आजादी नहीं है।  यह नियम पिछले 2500 वर्ष से स्त्री जाति पर लगा हुआ है। अब आप खुद ही इसका चित्रण कर समझने की कोशिश कीजिए की स्त्री की स्थिति क्या है? यदि इसका हमने कोई भी हल नहीं निकाला तो वह जो बादलों का जमावड़ा है फट जाएगा और संसार में प्रलय आ जाएगी। तब भी ऑटोमेटिकली संसार नारीमय  हो जाएगा क्योंकि बादलों का जो वेग बहेगा वह नारी भावनाओं का ही वेग होगा और जब ऐसा होगा तो पुरुष का अस्तित्व मिट जाएगा।

इसलिए यदि संसार से पुरुष का अस्तित्व मिटाना नहीं चाहते या यूं कहूं कि जिस पिता तत्व को संसार में लाया गया। वह नेचुरल नहीं है उसका अस्तित्व बरकरार रखना चाहते हैं, तब स्त्रियों की भावनाओं को संसार में जगह देनी होगी। उसके लिए स्त्री को समझना होगा, उनकी भावनाओं को प्रमुखता देनी होगी और इसके लिए स्त्रियों के विचारों को  समझना होगा,  उनके साथ  समय बिताना होगा, अपनी लगाए गए नियमों की बंदिशें  हटानी होंगी।

इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि स्त्रियों की भावनाओं को पंक्ति बद्ध करके  आप उसे फॉलो कीजिए अगर आप अपना अस्तित्व चाहते हैं क्योंकि संसार में पिता का अस्तित्व प्राकृतिक नहीं है उसे समाज में बनाया गया है और परिवार के लिए पिता का अस्तित्व बरकरार रखने के लिए स्त्रियों की भावनाओं का फॉलो किया जाना बेहद जरूरी है।

नारी एक नियम है जिसे बदला नहीं जा सकता और नारी का स्वाभाविक गुण है कि उसे जो कुछ मिलता है वह उसे हजार गुना बढ़ा कर वापस करती है

यह परिवार निर्धारण का तीसरा बिन्दु, वह राज खोलेगा, जहाँ लोग कहते हैं कि स्त्री क्या है? चाहती क्या है? समझ नहीं आता.. इसलिये इस बिन्दु में लिखी व्याख्या का एक एक शब्द गौर से पढ़े नियमित पढ़ने वाले.....

3)#चर्चा #के #पायदान #की #महत्ता

स्त्री प्रकृति का नियम है जिसे बदला नहीं जा सकता और भाव प्रधान होने के कारण उसका तन और मन बहुत कोमल है इसीलिए पुरुष की रचना की गई एक रक्षक के रूप में संरक्षक के रूप में जो स्त्री की कोमल तन और मन की रक्षा कर सकें, सेवा भाव से। इस व्याख्या में कहीं भी आधिपत्य का अधिकार दर्शाया नहीं गया क्योंकि नियम पर एकाधिकार कर पाना संभव नहीं नियम को नियम के अनुसार निभाकर उसको पूर्ण किया जाता है, तभी उपलब्धियां होती है, विस्तार होता है।

क्योंकि नियम सेवा मांगता है और सृष्टि के विस्तार के लिए स्त्री रूपी नियम की सेवा आवश्यक है। वह भी उसके अपने अनुसार, तभी सृष्टि विकास होगा और पिता तत्व की प्राप्ति होगी। यह भी कह सकते हैं परिवार निर्धारण के लिए यदि पिता तत्व को जीवित करना है तो पुरुष का स्त्री में विलीनीकरण आवश्यक है यही स्त्री पुरुष का एकीकार रूप अर्धनारीश्वर है। जिसे हम परमपिता परमेश्वर कहते है।  यह हमें तभी प्राप्त होता है जब पुरुष द्वारा स्त्री की सेवा की जाए उस की इच्छाओं के अनुरूप तभी हमें पिता तत्व की प्राप्ति होगी और यह तत्व जब तक ही जीवित रहेगा जब तक स्त्री की सेवा उसके मन अनुरूप की जाएगी।

परंतु संसार में पिता तत्व को ऊपर रखने के लिए ऋषि-मुनियों ने पुरुष को आधिपत्य का अधिकार दिया। जिसके चलते पुरुष सिर्फ स्त्री को वासना रस का स्रोत समझकर भावना के सागर में से वासना रस पीना ही अपना अधिकार समझने लगे और उन्होंने स्त्री की महत्ता को खत्म कर दिया।

जिसके चलते हम यह भूल गए की जिस पिता तत्व की प्राप्ति के लिए स्त्री रूपी नियम की सेवा की जानी थी नियम पूरा होने पर वह परीक्षा भी लेगी और हमने वह परीक्षा रूपी चर्चा का पायदान ही खत्म कर दिया।

जबकि नियम वत ईश्वर की सेवा और तपस्या करने पर ईश्वर इच्छित वर की प्राप्ति से पहले परीक्षा लेते हैं। इसलिए ही स्त्री के गुणों में से 1 गुण बौद्धिक परिचर्चा का भी है। स्त्री समागम के लिए उस पुरुष का चुनाव करती है जो बौद्धिक स्तर पर उसे सम्मानित कर सके और सम्मान के प्रतिउत्तर में वह उस पुरुष को हर प्रकार का सुख देकर सम्मान जनक पदवी पर बिठाकर पिता तत्व से अलंकृत करती है।

पिता तत्व सिर्फ बच्चे का पिता बनना नहीं होता बल्कि पिता तत्व वह पूजनीय है अलंकार है जिसे हम परम पिता परमेश्वर कहते है जो सृष्टि संरक्षक है पालनकर्ता है। यदि पुरुष को पिता की पदवी पर विद्यमान रहना है तब बौद्धिक चर्चा का यह पायदान जीवन से कभी विस्मित नही होना चाहिए।

इसलिए स्त्री के स्वाभाविक गुण वैचारिक चर्चा को निषेधात्मकता के पायदान से ऊपर उठाना होगा ताकि हम एक सुदृढ़ समाज की स्थापना कर सकें।

जब हम किसी खंडहर प्लॉट को खरीदते हैं। तब नव निर्माण करने से पहले बने हुए सारे खंडहर को ध्वस्त करना पड़ता है। जब वह ध्वस्त कर दिया जाता है तो उस क्षेत्र में कंकड़ पत्थर आदि बिखर जाते हैं, पूरी तरह और जब बाहर से कोई निरीक्षण करने आता है तो उसे उस क्षेत्र में चलने में जटिलता महसूस होती है, कंकड़ और रोडियो के कारण। इसलिए मेरा लिखा हुआ भी लोगों को जटिल लग रहा है क्योंकि मैं पुराना सब कुछ ध्वस्त करके मलवा उठा रही हूं और जब तक उस क्षेत्र से सारा पुराना मलवा उठाकर बाहर ना फेंक दूं, तब तक वह क्षेत्र जहां परिवार का नवनिर्माण होना है, किसी को ढंग से दिखाई नहीं देगा। इसलिए ही चर्चा की महत्ता के पायदान पर एक उदाहरण प्रस्तुत कर रही हूं ताकि अपनी बात को और अच्छी तरीके से आप सब लोगों के सामने रख सकूं।

आदि शक्ति को शक्तियों से संपन्न प्रकाश पुंज के रूप में माना जाता है। उस प्रकाश पुंज का नारी रूप है। उस प्रकाश पुंज से आदिशक्ति ने अपनी शक्तियों का एक संग्रह तमोगुण से प्रकट किया। इसलिए ही वह अजन्मा कहा जाता है। वह अजन्मी शक्ति का रूप पुरुष शक्ति का है। उसे प्रकट करने के बाद, आदिशक्ति ने उसकी परीक्षा ली और उसे विवाह प्रस्ताव दिया। उस विवाह प्रस्ताव को उस पुरुष रूपी शक्तिपुंज ने स्वीकार किया, जिसके बाद आदिशक्ति ने उस प्रकाश रूपी शक्तिपुंज को रक्षक संरक्षक के रूप में श्रृंगारिक किया। जिसमें विनाश करने की शक्ति भी समाहित थी। इसके बाद परमपिता परमेश्वर की प्राप्ति के लिए आदिशक्ति ने उस पुरुष रूपी शक्तिपुंज को अपने आधे भाग में समाहित कर लिया। उसके बाद अर्धनारीश्वर का जो रूप प्रकट हुआ वह परमपिता परमेश्वर का रूप माना गया।

अधिकतर लोग परमपिता परमेश्वर के रूप में या तो प्रकाश पुंज की पूजा करते हैं या सिर्फ और सिर्फ शिव की पूजा करते हैं आदिशक्ति से अलग करके, परंतु परमपिता परमात्मा का जो असली रूप है, वह शिव और शिवा का यह अर्धनारीश्वर रूप ही परम पिता परमेश्वर का रूप है। इसलिए ही हिंदू संस्कृति में नारी का त्याग पाप माना गया है जो नारी को त्याग कर अलग परमपिता परमेश्वर को ढूंढने जाता है वह भटकाव के सिवाय कुछ नहीं पाता। अगर परमपिता परमेश्वर को ढूंढना है तो उसमें शिव और शिवा दोनों का सम्मिलित होना आवश्यक है वही अर्धनारीश्वर रूप परमपिता परमेश्वर है यही परम ज्ञान है।

और मनुष्यों में भी जब स्त्री में पुरुष का आधा भाग समाहित हो जाता है अर्थात स्त्री में पुरुष का समर्पण अर्धनारीश्वर रूप कहलाता है वही परम ब्रह्म परम ज्ञान और परमपिता परमेश्वर है। यहां यह सवाल उठता है कि  पुरुष का स्त्री में क्यों विलीनीकरण? जवाब है क्योंकि पुरुष को परमेश्वर बनना है इसलिए पुरुष का स्त्री में विलीनीकरण अनिवार्य है।

यहां एक बात मैं बहुत स्पष्ट रूप से कह देना चाहती हूं कि यह आदिशक्ति में शिव का विलीनीकरण मन का विलीनीकरण है। विचारों का विलीनीकरण है। इसलिए स्त्री में पुरुष का विलीनीकरण वैचारिक स्तर पर होना चाहिए मन से मन का विलीनीकरण अर्धनारीश्वर रूप है परमपिता परमेश्वर का रूप है। यदि आप मन से विलीन नहीं होते स्त्री में तब आप अर्धनारीश्वर रूप को प्राप्त नहीं कर पाएंगे और परमपिता परमेश्वर की पदवी पर अलंकृत नहीं हो पाएंगे। कहने का मतलब जब पुरुष अपने हर बड़ी फैसलों में स्त्री की सहमति और भागीदारी करने लगेगा तब वैचारिक स्तर पर विलीनीकरण होगा और वह स्त्री के मन में समाहित हो जाएगा।

मैंने यहां बड़े फैसलों को इसलिए कहा है क्योंकि अधिकतर पुरुष अपने छोटे-छोटे फैसलों में अपने जीवन साथी की रजामंदी लेते हैं जैसे कपड़ों के चयन में, ड्रेसिंग सेंस में परंतु अपने व्यापार में वह अपनी पत्नी की सोच को प्रमुखता नहीं देते क्योंकि उनके दिमाग में यह है बुरी तरह से कूट कूट कर बात भरी हुई है कि स्त्री में इतनी बुद्धि नहीं होती।

मेरी इस बात से कई लोग इत्तेफाक नहीं रखेंगे क्योंकि संसार में नारी को ही समर्पण की मूर्ति माना गया है। नारी के ही समर्पण पर सारे संस्कार दिखाए गए हैं। नारी का समर्पण लोगों को भाता है कि पुरुष में नारी समर्पित हो तो भारत की तस्वीर बनेगी। वह भी संस्कारी सभ्य तस्वीर, परंतु भारत वर्ष इसी एक सोच पर बढ़ता जा रहा है फिर भी विनाश के कगार पर जा रहा है और परिवार प्रथा खत्म हो रही है। इसलिए मैं अब नारी में पुरुष के समर्पण की व्याख्या कर रही हूं हम पिछले 2500 सालों से पुरुष में नारी के समर्पण की व्याख्या पर समाज का निर्धारण कर रहे हैं और उसके बावजूद भी समाज विनाश की ओर जा रहा है तो क्यों नहीं हम इस बार नारी में पुरुष के समर्पण की व्याख्या पर समाज का निर्धारण करें हो सकता है परिवार प्रथा को बचाया जा सके।

किसी को अब भी शंका है तो उसे यह याद कर लेना चाहिए  की  शारीरिक तौर पर भी  पुरुष को स्त्री में विलीनीकरण होता है। क्या वह शारीरिक तौर पर स्त्री का पुरुष में विलीनीकरण कर सकता है? यदि नहीं तो उसे यह बात मान लेनी चाहिए कि नारी एक नियम है, जिसे बदला नहीं जा सकता और नियम को नियम के अनुसार निभाकर तपस्या की परीक्षा देकर परमपिता परमेश्वर की पदवी पर बैठा जा सकता है अन्यथा नहीं।

4) #परीक्षा #लेने #का #स्वाभाविक #गुण

नारी एक नियम है, जो अपने स्वभाव के अनुसार चलती है। नारी के स्वभाविक गुणों में 1 गुण परीक्षा लेने का भी है। लोग कहते हैं नारी कुंठित हो रही है, क्योंकि वह नग्नता की दहलीज पर जा रही है और भारतीय संस्कृति सभ्यता के अनुसार नारी नग्नता की दहलीज पर नहीं जा सकती।

मैं उन लोगों को बताना चाहती हूं की नारी प्रकृति है और प्रकृति के अनुसार चलती है शारीरिक स्तर पर पुरुष का ही नारी में विलीनीकरण होता है और वह इसी सोच पर अपनी परीक्षा की परिधि तैयार करती है।

जब शारीरिक स्तर पर पुरुष का नारी में विलीनीकरण होता है तब हमने किस आधार पर समाज की रणनीति नारी के समर्पण पर तैयार की? यह मेरी समझ से परे है।

समाज का निर्धारण चाहे जिस भी परिधि में किया गया है लेकिन नारी अपने स्वाभाविक गुण के अनुसार चलती है उसके अनुसार यह तथ्य है कि पुरुष का विलीनीकरण नारी में होता है, इसलिए वह विलीनीकरण के बाद पुरुष की परीक्षा लेती है। किसी स्त्री की नग्नता को देखकर पुरुष का मन विचलित होता है इसका मतलब यह है कि उस पुरुष का मन उस स्त्री में विलीन नहीं है जिसमें वह सम्मिलित होकर परमपिता परमेश्वर के युगम में परिवर्तित हुआ था।

लोग कहते हैं कि आज का युवा वर्ग बिल्कुल बिगड़ चुका है। उसे समझाया नहीं जा सकता, वह इस कगार पर पहुंच गया है। परंतु हकीकत यह है कि स्त्री की नग्नता से युवा वर्ग इतना विचलित नहीं होता, जितना की वयोवृद्ध वयस्क पुरुष वर्ग जो कि उस सीमा रेखा को पार कर चुका है, जहां पर स्त्री पुरुष के युगम से परमपिता परमात्मा की अवस्था आती है और इसका सीधा सा मतलब यह भी है कि इस स्थिति पर पहुंचने के बाद भी वह मन से उस स्त्री में विलीन नहीं हुआ, जिस में विलीन होने के बाद वह परमेश्वर की तरह पूजा जाता इसलिए उसके मन में भटकाव है।

 यहां पर दूसरा महत्वपूर्ण बिंदु यह है कि जिस बिंदु पर युवा वर्ग गलत रास्ते पर जा रहा है, उस बिंदु कि हम सही शिक्षा नहीं देते हम उस पर अपने युवा वर्ग से बात नहीं करते क्योंकि हम उस बिंदु के महत्व को खुद ही भुला चुके हैं लोगों की यह भी धारणा है कि इस बिंदु पर बात ही नहीं हो सकती। मैं पिछले 3 दिन से इस बिंदु पर ही बात कर रही हूं, मैंने कौन सा ऐसा शब्द प्रयोग किया है जो बिगड़ते हुए बच्चों को और बिगाड़ दे?

यदि हमें समाज में सुधार करना है तो हमें बिंदुओं की सही शिक्षा समाज में प्रकाशित करनी पड़ेगी। नव युवकों को उस बिंदु की महत्ता और उनके उद्देश्य को बताना पड़ेगा वह भी सही ढंग से, उस परिपाटी पर नहीं जिस पर यह समाज चलता चला आ रहा है क्योंकि वह परिपाटी विनाश की तरफ जा रही है।

सीधी  सी सच्ची बात है प्राकृतिक तौर से पुरुष का ही स्त्री में विलीनीकरण है और इस विलीनीकरण के बाद स्त्री परीक्षा लेती है यदि परीक्षा से विचलित होते हैं तो दोष आप में है, यानी आप ने तपस्या पूरी नहीं की और अपने दोष को ढकने के लिए ही आपने स्त्री पर कुंठा का आरोप लगा दिया।
 जब पुरुष मन से स्त्री में समाहित हो जाएगा तो उसे किसी दूसरी स्त्री की नग्नता से कोई भी फर्क नहीं पड़ेगा तब जाकर उसकी तपस्या पूरी होगी और वह परमपिता परमेश्वर की पदवी पर बैठेगा जिसे हम पति परमेश्वर कहते हैं।

नव युवकों को भी हमें इस शिक्षा को प्रसारित करना है की पुरुष का नारी में विलीनीकरण होना है ना कि नारी का पुरुष में, तब ही हम एक स्वस्थ सुदृढ़ समाज की नव स्थापना करने में सफलता प्राप्त करेंगे।

और जिस दिन ऐसा हो गया उस दिन स्त्री परीक्षा लेकर उसे सफलता प्रदान करेगी उसकी अपनी परीक्षा में और उसे परमेश्वर मानकर खुद भी पूजेगी और दुनिया से भी पुजवाएगी। यही हिंदू धर्म है।

लोग यह भी कहते हैं कि जो मानसिकता किताबों में सुझाई गई है अगर उसे बदल दे तो वह पाप होगा, परंतु ऐसी सोच वाले व्यक्तियों से मेरा एक विचार कि कोई भी किताब गलत नहीं है गलत सिर्फ और सिर्फ हमारी अपनी सोच है जो प्राकृतिक नियमों के विरुद्ध चल रही है। हम अपनी सोच को यदि सही कर ले तो हमें किसी भी किताब को पलटने की जरूरत नहीं पड़ेगी बल्कि प्रकृतिक नियमों के विरुद्ध चलकर जो हम पाप कर रहे हैं, उससे बच जाएंगे और किताबों का सही अध्ययन कर पाएंगे।

दूसरी बात किताबें मनुष्य द्वारा लिखी गई है और यदि वह प्राकृतिक नियम की उल्टी सोच से प्रभावित होकर लिखी गई है तो वह अपने आप गलत साबित हो जाती हैं और उन्हें बदल देना किसी पाप कर्म के दायरे में नहीं आता।
अब तक मैंने जो व्याख्या की है वह वैदिक काल से भी पहले की व्याख्या है जब पृथ्वी पर स्त्री तंत्र स्थापित था इसलिए वैदिक काल आने तक स्त्रियां स्वतंत्र थी कहीं-कहीं गंधर्व विवाह और स्वयंबर तथा पति त्याग की परंपरा का अध्ययन मिलता है वैदिक काल में परंतु श्वेतकेतु ऋषि के परिवार का नियम बनाने से स्त्रियों पर बंधन लगने शुरू हुए इन बंधनों ने शंकराचार्य तक आते-आते नारी को नरक का द्वार ही बता दिया

परिवार प्रथा ना तो बुरी है और ना ही मैं इसके विपक्ष में हूं परंतु इसकी नींव जिन कारणों से रखी गई वह कारण प्राकृतिक नियम के विरुद्ध है इसलिए ही चाहती हूं कि अब नए सिरे से परिवार संस्था का नियम निर्धारण किया जाए जो प्रकृति के अनुकूल हो हम तब ही परिवार रूपी संस्था को बचा पाएंगे अन्यथा नहीं

हांलाकि समाज में परिवार के निर्धारण के बहुत समय बाद विवाह प्रथा प्रारंभ हुई परंतु यदि ध्यान से देखें तो विवाह के रीति रिवाज रसमें बहुत ही सोच समझ कर बनाई गई है

 स्त्री पुरुष का जो युग्म परमपिता परमात्मा के सदृश बनता है उस युग्म को हिंदू धर्म के सभी देवी देवताओं का आशीर्वाद दिलाने के लिए हवन द्वारा शुद्धि करा कर वेदी पर पूजन किया जाता है ताकि वह युगम  जो परमपिता परमात्मा के तुल्य स्थापित होने वाला है उसकी सारी शारीरिक अशुद्धियां धुल कर तप जैसी पवित्र हो जाए और वह जोड़ा एक दूसरे के मन का दर्पण बन सके स्त्री पुरुष के मन दर्पण में अपनी छवि देख कर उसे अपने आधे अंग में समाहित कर उस युग्म का निर्माण करें जिसे परमपिता परमात्मा कहा जाता है ताकि वह युग्म सृष्टि का विकास करें और संतान को जन्म देकर माता पिता और पालक के रूप में बच्चे की परवरिश कर सके।

परंतु आज हमारी यह पारिवारिक संस्था खंडहर  में परिवर्तित हो गई है, जिसमें बस प्रथाओं के नाम पर बंधन है। जिन्हें बहुत बोझिलता से निभाया जाता है क्योंकि भावनाएं मर गई हैं। आज के परिवार  की संस्था में  सिर्फ और सिर्फ पुरुष वर्चस्व है जोकि रक्षक संरक्षक  और विनाश का रूप है  क्योंकि उसमें विनाश की शक्ति समाहित है  इसलिए  जब आवेश आता है तो वह परिवार का विनाश करने पर आमादा हो जाता है, कारण भावना के सागर और उत्पत्ति  े के कारक की कोई भागीदारी नहीं। जबकि युग्म की स्थापना में आधा भाग भावना के सागर यानी स्त्री रूप होता है। उसका महत्व खत्म कर देने पर पारिवारिक संस्था भी भावना शून्य हो, खुश्क, सूखी, मरुस्थल सी हो गई है। जिसमें हरी भरी दूब घास की बजाएं कैक्टस के पौधे उगने लगे हैं। इसलिए जरूरी है कि यदि पारिवारिक संस्था को बचाना है तो उसमें भावनाओं के सागर की सिंचाई करनी है तभी हमारा परिवार खंडहर से नव निर्माण की तरफ बढ़ेगा।

इतना बड़ा महत्व है इस विवाह पद्धति का हमारे हिंदू धर्म में, जिसके लिए नव कोपलों में आस्था जगाना समाज के वयस्क और वयोवृद्ध प्राणियों की जिम्मेदारी है हम इस विवाह पद्धति को इस तरह अपने नव युवक युवतियों के बीच रखें ताकि उन्हें एक युगम  बनकर सृष्टि का निर्माण करने में सहायता प्रदान हो सके। जब उन्हें युग्म का, अपने धर्म का सच्चा ज्ञान होगा, तब किसी भी कीमत पर अपनी विवाह पद्धति को नकार कर आगे नहीं बढ़ेंगे। यदि समाज को, परिवार को बचाना है तो हमें विवाह पद्धति को विस्तार से नव युवकों के सामने प्रसारित करना होगा। परिवार के बाकी नियम विवाह पद्धति समझने के बाद ही लिखे जाएंगे।

इसके आगे विवाह पद्धति के बारे में चर्चा की जाएगी।

सोमवार, 27 अप्रैल 2020

रचनाएं - दीपिका माहेश्वरी बिजनोर।

🌹🌹🌹🌹गीत🌹🌹🌹🌹

याद करता है तुझको ये मेरा जिया
अब निगाहों पर मेरे है पहरा पिया

ज़िन्दगी के सफर में जब नजरें मिली
तब से जगती रही मैं पिया रातभर
तेरी यादों में ऐसे मैं खोई रही
ढल गयी रात तेरी ही जज़्बात पर
हमने कितना मनाया उसे तो पिया
याद करता है......

भानु की रश्मियाँ जब मुझपर पड़ी
सज गयी आज तन पे ज्यूँ शबनम  लड़ी
श्यामा सी मैं तो इक दम खिलने लगी
क्यूँ सताये पिया मुझको तू हर घड़ी
कहीं लगता नहीं है हमारा जिया
अब तो अपना बना ले मुझे तू पिया
याद करता है..........

सच में कहती है मेरे गजरे की लड़ी
कहीं बीत न जाये मिलन की घड़ी
अब तो वश में नहीं है हमारा जिया
बंसरी को बजाता तू आजा पिया
याद करता है............

जब भी रूठूँ मैं तुझसे कभी भी सनम
मेरी बहियाँ पकड़ के मनाना सनम
मैं तेरे नयनों में बस खो जाऊँगी
प्यार में तब सराबोर कर जाऊँगी
आके गरवा लगा ले हमारे पिया
याद करता है.......

              दीपिका महेश्वरी 'सुमन'

🌹🌹🌹🌹गीत🌹🌹🌹🌹

ज़रा थम के बरस ए काली घटा
कहीं दिल न दीवाना हो जाए
मुझ पर चढ़ता बूंदों का नशा
कहीं दिल न दीवाना हो जाए

शोख नजारे यूँ  इतरा के कहें
जवां मौसम में  खिलता है  चमन 
वादियां मुस्कुरा के  पूछ  रहीं
कब आओगे तुम ऐ मेरे सनम
मुझको बहकाये  मदहोश समां
कहीं दिल न दीवाना हो जाए

ज़रा थम के बरस ए...

आंचल मेरा जब लहराके चले
झूमें मस्ती में डाली सा बदन
आकर छू लेती ठंडी हवा
बन जाता है  महका चंदन
तन मन मेरा यूँ चहक रहा
कहीं दिल ना दीवाना हो जाए

ज़रा थम बरस ए...

मैं तो जीती हूं बस देख तुझे
तू ही तो मेरे  जीने की लगन
छम छम करके जब तू बरसती है
मिट जाती  मेरे सीने की तपन
बदरा तू जरा हौले से बरस
कहीं दिल ना दीवाना हो जाए

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स्त्री तंत्र की व्याख्या चतुर्थ अध्याय - दीपिका माहेश्वरी, बिजनोर।

स्त्री तंत्र की व्याख्या
चतुर्थ अध्याय_( स्त्री तंत्र का सविस्तार अर्थ एवं परिवार के नियम निर्धारण की पुनः आवश्यकता)



स्त्री तंत्र का विश्लेषण:_

जो लोग नियमित मेरी व्याख्या पढ़ रहे हैं उनमें से भी आधा को यह नहीं पता होगा कि आखिर स्त्री तंत्र है क्या और मैं इसकी व्याख्या क्यों कर रही हूं इसलिए इसको समझाने के लिए आज इस तंत्र का बहुत सरल शब्दों में अर्थ बताने जा रही हूं ताकि आम से आम व्यक्ति जो इन सब बातों से अनभिज्ञ है वह भी आसानी से इस बात को समझ सके।

मूलतः पृथ्वी पर प्रकृति जिस नियमानुसार क्रियान्वित होती है वह सब स्त्री तंत्र पर आधारित है। स्त्री तंत्र में स्त्री यानि मादा की प्रमुखता है। प्राय: हम देखते हैं कि पशु पक्षियों में मादा को अपना साथी चुनने का अधिकार है और नर उसे अपनी और आकर्षित करने के लिए तरह-तरह की क्रियाएं करते हैं। मादा जिस पर मोहित होती है उसे अपना साथी बना कर प्रकृति के विस्तार का प्रयोजन आरंभ करती है।

गर्भ धारण कर लेने के पश्चात मादा कोई भी हो चाहे वह अंडे के रूप में अपने वंश की वृद्धि करें या जीव के रूप में, वह एकांत में जाकर प्रसव क्रिया को अंजाम देती है बिना नर की सहायता के। पशु पक्षियों में बच्चे के प्रति मोह तभी तक रहता है जब तक वह अपने लिए भोजन ढूंढने लायक नहीं होता और अपनी श्रेणी के अनुसार वयस्क नहीं होता। जब वह इतना आत्मनिर्भर हो जाता है कि वह अपने लिए शिकार कर सके, अपना जीवन यापन कर सके, तब पशु पक्षी अपने बच्चों को अकेला छोड़ देते हैं और यह सब क्रिया मादा अकेले ही करती है। नर सिर्फ संरक्षण के लिए होता है, जो बच्चे की आसपास के खतरों से रक्षा करने में मादा की मदद करता है।

यहां पर एक बात सबसे ज्यादा गौर करने लायक है की इस प्राकृतिक नियम में पिता कहीं भी नहीं है जो नर है वह सिर्फ बीज का स्रोत मात्र है। यही स्त्री तंत्र है जो भारतीय पुरुषों को समझ नहीं आया और उन्होंने इस स्त्री तंत्र को नष्ट भ्रष्ट कर दिया जबकि पूरी पृथ्वी पर अन्य देशों में आज भी इसी प्रकृतिक नियम पर सारे क्रियान्वयन किए जाते हैं। जितने भी यूरोपियन देश हैं वहां पर इसी स्त्री तंत्र को फॉलो किया जाता है वहां स्त्रियां आज भी स्वतंत्र हैं जैसे वेद काल में भारत में स्वतंत्र थी भारत के वेद काल में नियम था कि स्त्रियां सिर्फ रितु काल में अपने पति के साथ समागम कर सकती हैं अन्यथा वे इस कार्य के लिए स्वतंत्र हैं यूरोपीय देशों में आज भी यही प्रथा प्रचलित है लेकिन भारत के ऋषि मुनियों ने प्राकृतिक नियम को उलट कर पुरुष प्रधान समाज की संरचना की जिसके चलते पिता के महत्व को बल दिया गया और उसी नियम पर भारत की आगे की संस्कृतियाँ बनी।

लेकिन आज 2500 साल बाद फिर प्राकृतिक नियम लिव इन रिलेशनशिप के रूप में भारत में दस्तक दे रहा है अपने रूप और नियम के साथ जिसे हम रोक नहीं पा रहे हैं और हमारे समाज की पारिवारिक संस्था खत्म होने के कगार पर आ रही है इसलिए बेहतर यही है कि परिवार निधि को खत्म होने से हम बचाएं और परिवार के नियमों का नव निर्धारण करें प्राकृतिक नियमों के अनुसार।

बच्चों को जैसे समझाओ भी वैसे ही समझते चले जाते हैं और उसकी अनुसार अपनी कार्यप्रणाली का निर्धारण करते जाते हैं। परंतु वयस्क बुद्धियाँ जिन्होंने अपना सारा जीवन पुरुष प्रधान प्रणाली पर व्यतीत किया है वे नर को सहचरी मान लेने के लिए तैयार नहीं है। नए-नए समागम की बात में उलझ कर रह गए हैं।  जिस कारण उनके मन में यह विचार आ रहे हैं कि परिवार से बेहतर लिव इन रिलेशनशिप है जहां पर उन्हें हर रोज नया समागम मिल सकता था परंतु उन्होंने इस बारे में कभी सोचा नहीं तो उनकी आंखें खोलने के लिए एक और उदाहरण दे रही हूं। यह उदाहरण यूरोपीय देशों के परिवारों की जीवन प्रणाली पर प्रकाश डालने के लिए है।

यूरोपीय देश जहां स्त्रियों अपने लिए स्वतंत्र हैं वहां पर भी परिवार होते हैं और ऐसे परिवारों में जब जीवनसंगिनी नहीं रहती या उसको कोई शारीरिक परेशानी होती है तब परिवार में उपस्थित अन्य स्त्रियां अपने परिवार के उन वयस्क पुरुषों को भी संतुष्टि प्रदान करते हैं जिनकी पत्नियां इस काबिल नहीं होती कि वे अपने साथी के जरूरतों को पूरा कर सकें। इस पॉइंट को रखने का महत्वपूर्ण कारण यही है कि भारतीय पुरुष समागम की तरफ ज्यादा आकर्षित होते हैं यदि वे अपनी पत्नी से अपने पिता की संतुष्टि का दायरा बर्दाश्त कर सके तो बेझिझक यूरोपीय सभ्यता की तरफ पदार्पण कर सकते हैं। परंतु यदि वे ऐसा नहीं कर सकते तो उन्हें निम्न बातों का ध्यान कर हिंदुस्तानी परिवार के नियमों का नव निर्धारण कर लेना चाहिए।

1) भारतीय सभ्यता की एकमात्र विशेषता नारी सम्मान है जो नारी सम्मान से हटकर जीवन शैली को अपनाने की कोशिश करेगा उसका विनाश निश्चित है।
2) नारी के स्वाभाविक गुणों में यह गुण यह भी है कि वह अनकहा अनदेखा समझ जाती है इसलिए यदि आप उसके सम्मान का नाटक कर उससे समागम की इच्छा रखेंगे तब कोई भी स्त्री आपकी ओर आकर्षित नहीं होगी जो आप को विनाश की ओर ले जाएगी।
3) नारी सम्मान पर समर्पण करती है इसलिए उसे यह विशेषता दी गई है कि वह अनकहा अनदेखा समझ जाती है।
4) भारतीय परिवारों के नियमों का नव निर्धारण करने के लिए प्राकृतिक नियमों के साथ नारी सम्मान को ध्यान में रखकर नियमों का निर्धारण करना आवश्यक है नहीं तो पुरुषों का अस्तित्व विनाश की ओर जाने से कोई नहीं रोक सकता यदि पुरुष वर्ग अपना विनाश नहीं चाहते तो उन्हें शीघ्र अतिशीघ्र यह कदम उठाना चाहिए।

अगली पोस्ट में परिवार के नियमों पर चर्चा प्रारंभ हो जाएगी। सादर!

रविवार, 26 अप्रैल 2020

लिव इन रिलेशनशिप (Live In Relationship) में जिंदगी भर रहें। मगर, किसी रिश्ते को लंबे समय तक टिकाने के लिए उसके नियम-कानून (Live In Relationship Latest Law) और कुछ व्यवहारिक बातों को जानने के लिए कम से कम दो-चार मिनट देना चाहिए।

लिव इन रिलेशनशिप में रहने के लिए आपका एक्साइटमेंट समझ सकते हैं। आपका लिव इन में रहने का फैसला कितना सही या गलत हो सकता है ये तो कोई नहीं बता सकेगा। अगर कोई केवल मौज-मस्ती के हिसाब से लिव इन रिलेशनशिप का चयन कर रहा है तो उनको संभलने की जरुरत है।

आप भले ही लिव इन रिलेशनशिप में रहने के लिए शादी नहीं करते लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि आप जब दिल किया रह लिए और निकल पड़े। अब आपको लिव इन रिलेशनशिप के साइड इफेक्ट के बारे में जान लेना चाहिए।

कानूनी मान्यताए जान लें


देश की शीर्ष अदालत सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, दो बालिग (लड़का व लड़की) अगर शादी किए बगैर भी अपनी मर्जी से पारिवारिक-वैवाहिक जीवन जी सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है कि विधायिका भी लिव इन रिलेशनशिप को वैध मानती है।

सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में लिव इन रिलेशनशिप को लेकर एक गाइडलाइंस जारी किया था। इसके मुताबिक जो रिश्ता पर्याप्त समय (लंबे समय) से चल रहा है, इतना होना चाहिए कि वह टिकाऊ माना जा सके, ये कोर्ट तय करेगा। अगर दोनों पार्टनर लंबे समय से अपने आर्थिक व अन्य प्रकार के संसाधन आपस में बांट रहे हों तो ये भी रिश्ता लिव इन ही कहलाएगा।

शारीरिक संबंध बनाने का अधिकार

लिव इन रिश्ते की कानूनी मान्यता के अनुसार दोनों पार्टनर के बीच यौन संबंध की पूरी आजादी है। अगर रिश्ते में रहने के दौरान बच्चा पैदा होता है, तो रिश्ते को लिव इन माना जाएगा। यौन संबंध बनाने और बच्चे पैदा करना दोनों की इच्छा पर निर्भर करता है।

लिव इन रिलेशनशिप वालों पर क्यों होती है कानूनी कार्रवाई?



महिलाओं की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए कानून बनाए गए हैं। इससे कोई पुरुष केवल सेक्स संबंध के लिए किसी लड़की के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रहने के बाद छोड़ ना सके। अगर वह छोड़ता है तो उस पर कानूनी कार्रवाई की जा सकती है। लिव इन में रहने वाली महिलाओं के पास वो सारे कानूनी अधिकार हैं, जो भारतीय पत्नी को संवैधानिक तौर पर दिए गए हैं।

घरेलू हिंसा से संरक्षण प्राप्त
प्रॉपर्टी पर अधिकार
संबंध विच्छेद की स्थिति में गुजारा भत्ता
बच्चे को विरासत का अधिकार
लिव इन में रहने के बाद कोई लड़का उक्त लड़की को छोड़ देता है तो उसको उपरोक्त सुख-सुविधाएं कोर्ट दिलाने का काम करेगा। इसके लिए पीड़िता लड़की को लिव इन में होने के सबूत खासकर, आर्थिक लेनदेन के कागज कोर्ट के सामने पेश करने होंगे
अगर कोई भी पुरुष लिव इन रिलेशन में रह रहा है तो वो पति की तरह सारी जिम्मेदारी उठाए। साथ ही अगर आप बगैर धोखा दिए यानी आपसी सहमति से भी रिश्ता तोड़ते हैं तो भी कोर्ट के फैसले के आधार पर जुर्माना लग सकता है। इसके अलावा अगर छोड़ दिए तो भी जान नहीं बचने वाली।
लिव इन रिलेशनशिप में रहें या लव मैरिज करने से पहले खुद को आर्थिक और मानसिक तौर पर सक्षम बना लें।
लिव इन रिलेशनशिप से जुड़े सवाल पूछने के लिए कॉमेंट कर सकते हैं।

Environment


Example of built environment
Environment is a place where different things are such as a swampy or hot environment. It can be living (biotic) or non-living (abiotic) things. It includes physicalchemical and other natural forces. Living things live in their environment. They constantly interact with it and adapt themselves to conditions in their environment. In the environment there are different interactions between animalsplantssoilwater, and other living and non-living things.
Since everything is part of the environment of something else, the word environment is used to talk about many things. People in different fields of knowledge use the word environment differently. Electromagnetic environment is radio waves and other electromagnetic radiation and magnetic fields. The environment of galaxy refers to conditions oshama namberdar is just an employee.
In psychology and medicine, a person's environment is the people, physical things and places that the person lives with. The environment affects the growth and development of the person. It affects the person's behavior, body, mind and heart.
Discussions on nature versus nurture are sometimes framed as heredity vs. environment.

Natural environmentEdit

In biology and ecology, the environment is all of the natural materials and living things, including sunlight. If those things are natural, it is a natural environment.
Environment includes the living and nonliving things that an organism interacts with, or has an effect on it. Living elements that an organism interacts with are known as biotic elements: animals, plants, etc., abiotic elements are non living things which include air, water, sunlight etc. Studying the environment means studying the relationships among these various things. An example of interactions between non-living and living things is plants getting their minerals from the soil and making food using sunlight. Predation, an organism eating another, is an example of interaction between living things.
Some people call themselves environmentalists. They think we must protect the natural environment, to keep it safe. Things in the natural environment that we value are called natural resources. For example; fishinsects, and forests. These are renewable resources because they come back naturally when we use them. Non-renewable resources are important things in the environment that are limited for example, ores and fossil fuels. Some things in the natural environment can kill people, such as lightning.

Historical environmentEdit

A person's environment is the events and culture that the person lived in. Environment is everything around us. A person's beliefs and actions depend on his environment. Modern people mostly think it is wrong to own slaves. But in Jefferson's and Caesar's environments slavery was normal. So, their actions did not look as wrong in their societies. Its simple definition is:
Interaction between human and environment in the past.

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