सोमवार, 27 अप्रैल 2020

स्त्री तंत्र की व्याख्या चतुर्थ अध्याय - दीपिका माहेश्वरी, बिजनोर।

स्त्री तंत्र की व्याख्या
चतुर्थ अध्याय_( स्त्री तंत्र का सविस्तार अर्थ एवं परिवार के नियम निर्धारण की पुनः आवश्यकता)



स्त्री तंत्र का विश्लेषण:_

जो लोग नियमित मेरी व्याख्या पढ़ रहे हैं उनमें से भी आधा को यह नहीं पता होगा कि आखिर स्त्री तंत्र है क्या और मैं इसकी व्याख्या क्यों कर रही हूं इसलिए इसको समझाने के लिए आज इस तंत्र का बहुत सरल शब्दों में अर्थ बताने जा रही हूं ताकि आम से आम व्यक्ति जो इन सब बातों से अनभिज्ञ है वह भी आसानी से इस बात को समझ सके।

मूलतः पृथ्वी पर प्रकृति जिस नियमानुसार क्रियान्वित होती है वह सब स्त्री तंत्र पर आधारित है। स्त्री तंत्र में स्त्री यानि मादा की प्रमुखता है। प्राय: हम देखते हैं कि पशु पक्षियों में मादा को अपना साथी चुनने का अधिकार है और नर उसे अपनी और आकर्षित करने के लिए तरह-तरह की क्रियाएं करते हैं। मादा जिस पर मोहित होती है उसे अपना साथी बना कर प्रकृति के विस्तार का प्रयोजन आरंभ करती है।

गर्भ धारण कर लेने के पश्चात मादा कोई भी हो चाहे वह अंडे के रूप में अपने वंश की वृद्धि करें या जीव के रूप में, वह एकांत में जाकर प्रसव क्रिया को अंजाम देती है बिना नर की सहायता के। पशु पक्षियों में बच्चे के प्रति मोह तभी तक रहता है जब तक वह अपने लिए भोजन ढूंढने लायक नहीं होता और अपनी श्रेणी के अनुसार वयस्क नहीं होता। जब वह इतना आत्मनिर्भर हो जाता है कि वह अपने लिए शिकार कर सके, अपना जीवन यापन कर सके, तब पशु पक्षी अपने बच्चों को अकेला छोड़ देते हैं और यह सब क्रिया मादा अकेले ही करती है। नर सिर्फ संरक्षण के लिए होता है, जो बच्चे की आसपास के खतरों से रक्षा करने में मादा की मदद करता है।

यहां पर एक बात सबसे ज्यादा गौर करने लायक है की इस प्राकृतिक नियम में पिता कहीं भी नहीं है जो नर है वह सिर्फ बीज का स्रोत मात्र है। यही स्त्री तंत्र है जो भारतीय पुरुषों को समझ नहीं आया और उन्होंने इस स्त्री तंत्र को नष्ट भ्रष्ट कर दिया जबकि पूरी पृथ्वी पर अन्य देशों में आज भी इसी प्रकृतिक नियम पर सारे क्रियान्वयन किए जाते हैं। जितने भी यूरोपियन देश हैं वहां पर इसी स्त्री तंत्र को फॉलो किया जाता है वहां स्त्रियां आज भी स्वतंत्र हैं जैसे वेद काल में भारत में स्वतंत्र थी भारत के वेद काल में नियम था कि स्त्रियां सिर्फ रितु काल में अपने पति के साथ समागम कर सकती हैं अन्यथा वे इस कार्य के लिए स्वतंत्र हैं यूरोपीय देशों में आज भी यही प्रथा प्रचलित है लेकिन भारत के ऋषि मुनियों ने प्राकृतिक नियम को उलट कर पुरुष प्रधान समाज की संरचना की जिसके चलते पिता के महत्व को बल दिया गया और उसी नियम पर भारत की आगे की संस्कृतियाँ बनी।

लेकिन आज 2500 साल बाद फिर प्राकृतिक नियम लिव इन रिलेशनशिप के रूप में भारत में दस्तक दे रहा है अपने रूप और नियम के साथ जिसे हम रोक नहीं पा रहे हैं और हमारे समाज की पारिवारिक संस्था खत्म होने के कगार पर आ रही है इसलिए बेहतर यही है कि परिवार निधि को खत्म होने से हम बचाएं और परिवार के नियमों का नव निर्धारण करें प्राकृतिक नियमों के अनुसार।

बच्चों को जैसे समझाओ भी वैसे ही समझते चले जाते हैं और उसकी अनुसार अपनी कार्यप्रणाली का निर्धारण करते जाते हैं। परंतु वयस्क बुद्धियाँ जिन्होंने अपना सारा जीवन पुरुष प्रधान प्रणाली पर व्यतीत किया है वे नर को सहचरी मान लेने के लिए तैयार नहीं है। नए-नए समागम की बात में उलझ कर रह गए हैं।  जिस कारण उनके मन में यह विचार आ रहे हैं कि परिवार से बेहतर लिव इन रिलेशनशिप है जहां पर उन्हें हर रोज नया समागम मिल सकता था परंतु उन्होंने इस बारे में कभी सोचा नहीं तो उनकी आंखें खोलने के लिए एक और उदाहरण दे रही हूं। यह उदाहरण यूरोपीय देशों के परिवारों की जीवन प्रणाली पर प्रकाश डालने के लिए है।

यूरोपीय देश जहां स्त्रियों अपने लिए स्वतंत्र हैं वहां पर भी परिवार होते हैं और ऐसे परिवारों में जब जीवनसंगिनी नहीं रहती या उसको कोई शारीरिक परेशानी होती है तब परिवार में उपस्थित अन्य स्त्रियां अपने परिवार के उन वयस्क पुरुषों को भी संतुष्टि प्रदान करते हैं जिनकी पत्नियां इस काबिल नहीं होती कि वे अपने साथी के जरूरतों को पूरा कर सकें। इस पॉइंट को रखने का महत्वपूर्ण कारण यही है कि भारतीय पुरुष समागम की तरफ ज्यादा आकर्षित होते हैं यदि वे अपनी पत्नी से अपने पिता की संतुष्टि का दायरा बर्दाश्त कर सके तो बेझिझक यूरोपीय सभ्यता की तरफ पदार्पण कर सकते हैं। परंतु यदि वे ऐसा नहीं कर सकते तो उन्हें निम्न बातों का ध्यान कर हिंदुस्तानी परिवार के नियमों का नव निर्धारण कर लेना चाहिए।

1) भारतीय सभ्यता की एकमात्र विशेषता नारी सम्मान है जो नारी सम्मान से हटकर जीवन शैली को अपनाने की कोशिश करेगा उसका विनाश निश्चित है।
2) नारी के स्वाभाविक गुणों में यह गुण यह भी है कि वह अनकहा अनदेखा समझ जाती है इसलिए यदि आप उसके सम्मान का नाटक कर उससे समागम की इच्छा रखेंगे तब कोई भी स्त्री आपकी ओर आकर्षित नहीं होगी जो आप को विनाश की ओर ले जाएगी।
3) नारी सम्मान पर समर्पण करती है इसलिए उसे यह विशेषता दी गई है कि वह अनकहा अनदेखा समझ जाती है।
4) भारतीय परिवारों के नियमों का नव निर्धारण करने के लिए प्राकृतिक नियमों के साथ नारी सम्मान को ध्यान में रखकर नियमों का निर्धारण करना आवश्यक है नहीं तो पुरुषों का अस्तित्व विनाश की ओर जाने से कोई नहीं रोक सकता यदि पुरुष वर्ग अपना विनाश नहीं चाहते तो उन्हें शीघ्र अतिशीघ्र यह कदम उठाना चाहिए।

अगली पोस्ट में परिवार के नियमों पर चर्चा प्रारंभ हो जाएगी। सादर!

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