मंगलवार, 31 अगस्त 2021

सुमन साहित्यिक परी' समूह ने आयोजित की ऑनलाइन काव्य-गोष्ठी*

 प्रेस विज्ञप्ति 

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*'सुमन साहित्यिक परी' समूह ने आयोजित की ऑनलाइन काव्य-गोष्ठी*


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नजीबाबाद/मुरादाबाद, 30 अगस्त ।  प्रतिष्ठित साहित्यिक समूह 'सुमन साहित्यिक परी' (नजीबाबाद) की ओर से आज स्ट्रीम यार्ड पर, गीत और नवगीत विधाओं पर आधारित "रसभरे  व अलबेले गीत-नवगीत" शीर्षक से ऑनलाइन काव्य-गोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसका प्रसारण समूह के पेज दीपिका महेश्वरी 'सुमन'  पर लाइव किया गया। मुरादाबाद के प्रतिष्ठित रचनाकार  *राजीव प्रखर* द्वारा प्रस्तुत माँ वीणापाणि की वंदना से आरंभ हुए  कार्यक्रम में विभिन्न रचनाकारों ने अपने गीतों/ नवगीतों के माध्यम से अलबेली छटा बिखेरी। 

काव्य-पाठ करते हुए लखनऊ के *उदय भान पाण्डेय 'भान'* की प्रस्तुति इस प्रकार रही -  "मीत, तुझे  कैसे  समझाऊँ... मैं हूँ इक आवारा बादल, तेरे ढिग  कैसे  मैं  आऊँ।। मीत, तुझे कैसे समझाऊँ... । नजीबाबाद की कवयित्री *दीपिका माहेश्वरी 'सुमन' (अहंकारा)* ने अपने गीत को विरह का रंग दिया - "अश्रुधारा क्यों है भरी, इन आंखों में बोलो प्यारी। पीड़ा कहो कुछ हम से अब पद्मन के खोलो प्यारी ॥" खण्डवा (म. प्र.) के सुप्रसिद्ध नवगीतकार *श्याम सुंदर तिवारी* ने आयोजन की रंगत बढ़ाते हुए कहा  - "आँच है अब भी अलावों में। रहेंगे कब तक अभावों में।। पूस के घर रात ठहरी है। रोशनी अंधी है बहरी है। बन्द हैं सपने तनावों में।।" कोलकाता से उपस्थित हुए वरिष्ठ कवि *कृष्ण कुमार दुबे* ने गीत को शृंगारिक जादू से सजाया- "प्यार जब से मिला है तुम्हारा प्रिये, सूने मन को हमारे सदाएँ मिलीं। दो दिलों का परस्पर मिलन हो गया, बंध अनुबंधी नूतन कथाएँ मिलीं।" जबलपुर से उपस्थित हुए वरिष्ठ साहित्यकार *आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'* ने कार्यक्रम को और भी ऊँचाई पर ले जाते हुए नवगीत से कुछ इस प्रकार मंच को सुशोभित किया- "मानव !क्यों हो जाते, जीवन संध्या में एकाकी?" मुरादाबाद के  प्रतिष्ठित रचनाकार *राजीव प्रखर* ने पारिवारिक मूल्यों का स्मरण करते हुए कहा - "वही पुरानापन आपस का, वापस लायें। चौके में पहले सी पाटी, चलो बिछायें।" कानपुर के रचनाकार *विद्याशंकर अवस्थी पथिक* ने गीत में देशभक्ति का रंग उड़ेला-"आज मैं प्यारे भारत की एक गौरव गाथा गाता हूं। अमर शहीद उन वीरों की तुमको कथा सुनाता हूं॥" मुरादाबाद से वरिष्ठ साहित्यकार *डॉ. मनोज रस्तोगी* ने व्यंग्य के पैने तीर छोड़ते हुए कहा "स्वाभिमान भी गिरवीं रख नागों के हाथ। भेड़ियों के सम्मुख टिका दिया माथ। इस तरह होता रहा अपना चीरहरण।" जयपुर  से सुप्रसिद्ध साहित्यकार *गोप कुमार मिश्र दद्दू* ने अपने गीत का रंग कुछ इस प्रकार घोला- "अश्रुधार की मुस्कानों में, बचपन लिखता गजब कहानी। जज्ब हुए जज्बात बन गये, ढुलक गया वो बहता पानी।।" जबलपुर से सुप्रसिद्ध रचनाकार *बसंत कुमार शर्मा* की सुंदर अभिव्यक्ति इस प्रकार रही -"सूरज से की जल की चाहत, कैसी हमसे भूल हो गई। आशाओं की दूब झुलसकर, धरती की पग धूल हो गई." जबलपुर से ही उपस्थित साहित्यकार *श्रीमती मिथिलेश बडगैया* ने सुंदर गीत से समा बांधा -"मैं संध्या का वंदन हूंँ , मैं प्रत्यूषा का स्वागत हूंँ। नदियों के कल-कल निनाद से,  झंकृत हूंँ, मैं भारत हूंँ।" लखनऊ से सुप्रसिद्ध साहित्यकार *नरेन्द्र भूषण* ने कहा - "सुनते नहीं और की बस अपनी ही बात सुनाते लोग।। अर्थों के भी अर्थ पुनः उसके भी अर्थ लगाते लोग।।" लखनऊ से ही प्रसिद्ध साहित्यकार *डॉ. कुलदीप नारायण सक्सेना*  ने गांव की याद दिलाते हुए गीत मैं गांव की मिट्टी का रंग उड़ेला- "खेल रहा था यहीं कहीं पर खोजो, मेरा गांव खो गया। " लखनऊ से वयोवृद्ध साहित्यकार *देवकीनंदन शांत* ने सुरमय गीत की छटा कुछ इस प्रकार बिखेरी - "फूल अपना जवाब माँगे है! अपनी खुशबू गुलाब माँगे है !!" समूह-संस्थापिका तथा कार्यक्रम-संचालिका दीपिका माहेश्वरी 'सुमन' द्वारा आभार-अभिव्यक्ति के साथ कार्यक्रम विश्राम पर पहुँचा।


श्रीमती दीपिका महेश्वरी सुमन (अहंकारा) संस्थापिका सुमन साहित्यिक परी नजीबाबाद बिजनौर ।7060714750

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