'सुमन साहित्यिक परी' समूह (नजीबाबाद) ने आयोजित की ऑनलाइन काव्य-गोष्ठी
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नजीबाबाद/मुरादाबाद, 26 सितम्बर । प्रतिष्ठित साहित्यिक समूह 'सुमन साहित्यिक परी' (नजीबाबाद) की ओर से आज स्ट्रीम यार्ड पर, विभिन्न विधाओं पर आधारित " उन्मुक्त काव्यधारा" नामक कार्यक्रम के अंतर्गत एक ऑनलाइन काव्य-गोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसका प्रसारण समूह के पेज दीपिका महेश्वरी 'सुमन' पर लाइव किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ मुरादाबाद के प्रतिष्ठित साहित्यकार आदरणीय राजीव प्रखर जी द्वारा माँ वीणापाणि की वंदना से किया गया। इस कार्यक्रम में विभिन्न रचनाकारों ने विभिन्न विधाओं के माध्यम से अलबेली छटा बिखेरी।
काव्य-पाठ करते हुए प्रयागराज के वरिष्ठ ग़ज़ल कार आदरणीय अशोक श्रीवास्तव जी ने अपनी सुंदर गजल से मंच को इस प्रकार से शोभित किया-
"किसी के हाथ पीले हो रहे हैं,
किसी के नैन गीले हो रहे हैं |"
लखनऊ से व्यंग्य कवि श्री मनमोहन बाराकोटी 'तमाचा लखनवी' जी ने मुक्तकों से मंच की शोभा बढ़ाई-
"संघर्ष की हर राह, कांटों की सेज होती है।
प्रतिभा विहीनों की चमक निस्तेज होती है।।
बनके यथार्थ चिन्तक, पैनी नजर जरूरी,
कलम की धार, तलवार से भी तेज होती है।।"
नजीबाबाद की कवयित्री दीपिका माहेश्वरी 'सुमन'(अहंकारा) ने ग़ज़ल के माध्यम से विश्वकर्मा जी को नमन वंदन किया-
" विश्वकर्मा जी हो जाए जगह धन्य जहां आकर रुकें।
बन जाए प्यारा आशियाना जहां आकर रुकें ॥"
चंदौसी (संभल) से ही उपस्थित कवयित्री डाॅ. रीता सिंह की अभिव्यक्ति कुछ इस प्रकार थी -
"सूरत प्राची से जब झांके , धरती पर मुस्काता कौन ।
खग समूह में पर फैलाये , कलरव गीत सुनाता कौन ।"
कोलकाता से उपस्थित हुए वरिष्ठ कवि कृष्ण कुमार दुबे ने मनमोहक ग़ज़ल से मंच को सुशोभित किया-
"ले गया मंज़िल तलक जो रहगुज़र अच्छा लगा।
साथ जिसने है निभाया राहबर अच्छा लगा।"
मुरादाबाद से आदरणीय राजीव प्रखर जी ने अपने रसभरे मुक्तकों की प्रस्तुति से मंच को इस प्रकार सुशोभित किया-
"दूरियों का इक बवंडर, जब कहानी गढ़ गया ।
मैं अकेला मुश्किलों पर, तान सीना चढ़ गया ।
हाल मेरा जानने को, फ़ोन जब तुमने किया,
सच कहूँ तो ख़ून मेरा, और ज़्यादा बढ़ गया ।"
कानपुर से साहित्यकार विद्याशंकर अवस्थी पथिक जी ने कविता में चक्रव्यूह युद्ध नीति का वर्णन किया-
"चक्रव्यूह का नाम सुना तो धर्माचार्य भी घबड़ाये।
रणभूमि में कल क्या होगा सोंच सोच कर चकराये। "
मुरादाबाद से वरिष्ठ साहित्यकार एवं पत्रकार आदरणीय डॉ मनोज रस्तोगी जी ने मुक्तकों से इस प्रकार रंग भरा-
"सुन रहे यह साल आदमखोर है।
हर तरफ चीख, दहशत, शोर है ॥
मत कहो वायरस जहरीला बहुत।
इंसान ही आजकल कमजोर है॥"
जबलपुर से सुप्रसिद्ध साहित्यकार बसंत कुमार शर्मा जी ने मंच को ग़ज़ल से सुशोभित किया-
" कुछ और नहीं यूँ ही सताने के लिए आ
हक़ है मेरे दिल पर ये जताने के लिए आ
लखनऊ से ही प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ कुलदीप नारायण सक्सेना जी ने मंच को इस अंदाज़ में सुशोभित किया -
" स्वप्न संजोना व्यर्थ नहीं है
बाधाओं का तर्क यही है
गिरना फिर साहस कर उठना
जीवन का बस अर्थ यही है
मेरठ से वयोवृद्ध साहित्यकार आदरणीय गोविंद रस्तोगी जी ने गीत विधा में मंच को इस प्रकाश शोभित किया-
" धरती के कण कण में राधे
मन में मन दर्पण में राधे।"
मुरादाबाद से अरविंद कुमार शर्मा 'आनंद' जीने अपनी सुंदर ग़ज़ल से दर्शकों को भावविभोर किया-
"वही मंज़िलें हैं, वही रास्ते हैं।
वही हौसले हैं, वही हादसे हैं॥"
लखनऊ से वरिष्ठ कवि आदरणीय मनोज कुमार श्रीवास्तव जी ने अपनी कविताओं से मंच को सुशोभित किया-
" मैं राष्ट्र धर्म मैं पुण्यकर्म
जो बलिदानों के गीत लिखे"
लखनऊ से सुप्रसिद्ध गीतकार आदरणीय राममूर्ति सिंह अधीर जी ने सुमधुर गीत से मंच को सुशोभित किया-
"ये बादल क्यों आ जाते हैं,
क्यों मनमीत नहीं आते हैं?"
खंडवा मध्य प्रदेश से प्रसिद्ध नाटककार सुधीर देशपांडे जी अपनी कविता से मंच को इस प्रकाश सुशोभित किया-
"बच्चों की चाहत
होती है
कंधों पर चढकर
आसमान को छूने की"
आदरणीय अशोक चौधरी जी लखनऊ, आदरणीय आलोक रावत जी लखनऊ, आदरणीया मिथिलेश बडगैया जी जबलपुर, आदरणीय अनिल शर्मा अनिल जी धामपुर, आदरणीय डॉक्टर संगम लाल त्रिपाठी भंवर जी प्रतापगढ़, आदरणीय अशोक गिरि जी कोटद्वार, आदरणीय अमर चंद जैन जी फरीदाबाद आदि साहित्यकारों ने समीक्षा चरण में भाग लिया
समूह-संस्थापिका तथा कार्यक्रम-संचालिका दीपिका माहेश्वरी 'सुमन'द्वारा आभार-अभिव्यक्ति के साथ कार्यक्रम विश्राम पर पहुँचा।
श्रीमती दीपिका महेश्वरी सुमन(अहंकारा) संस्थापिका सुमन साहित्यिक परी नजीबाबाद बिजनौर ।7060714750
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