सोमवार, 4 जनवरी 2021

# स्त्री तंत्र की व्याख्या नवम अध्याय भाग 2


 स्त्री तंत्र की व्याख्या नवम अध्याय भाग 2 

 ( सातवें वचन की अर्थ सहित व्याख्या) 




#विवाह #का #सातवां #वचन


7. #परस्त्रियं #मातूसमां #समीक्ष्य #स्नेहं #सदा #चेन्मयि #कान्त #कूर्या।

#वामांगमायामि #तदा #त्वदीयं #ब्रूते #वच: #सप्तमंत्र #कन्या!!


(अंतिम वचन के रूप में कन्या यह वर मांगती है कि आप पराई स्त्रियों को माता के समान समझेंगे और पति-पत्नी के आपसी प्रेम के मध्य अन्य किसी को भागीदार न बनाएंगे। यदि आप यह वचन मुझे दें तो ही मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूं।) 

 

इस वचन के माध्यम से कन्या अपने भविष्य को सुरक्षित रखने का प्रयास करती है।


#विवाह #के #सातवें #वचन #की #समीक्षा


विवाह के सातवें वचन में पुरुष स्त्री को वचन देता है कि वह अपनी पत्नी के अलावा सभी स्त्रियों को माता रूप मानेगा और कभी भी पति पत्नी के संबंध में किसी भी अन्य स्त्री को भागीदार नहीं बनाएगा। 


यह वचन अपने आप उन सभी प्रश्नों पर प्रतिबंध लगा देता है, उन सभी प्रश्नों को करने का अधिकार समाप्त कर देता है जो अधिकतर पुरुष किया करते हैं कि स्त्रियां नग्नता की दहलीज पर जा रही हैं स्त्रियां  दुश चरित्रता के दायरे में जा रही हैं, स्त्रियों की कमियों पर भी लगाम लगानी चाहिए। 


जब पत्नी के समक्ष आप सभी स्त्रियों को माता रूप मानने का प्रण ले चुके हैं तब आपके इन प्रश्नों को करने के सारे अधिकार स्वत: ही समाप्त हो जाते हैं। यदि आपको किसी पराई स्त्री में कोई कमी नजर आती है तो उससे पहले आपको इस दायरे को सोच लेना चाहिए कि सामने वाली स्त्री आपके लिए माता रूप है और माता में कमी निकालने का अधिकार ना तो आज से पहले किसी पुरुष को  था ना ही भविष्य में कभी होगा। यदि आपको सामने वाली स्त्री में नग्नता दिखती है तो आप अपनी माता की नग्नता पर प्रश्न उठाते हैं क्योंकि उसके वक्ष स्थल से निकलने वाली अमृतधारा को पीकर ही आप बड़े हुए। यदि आप  किसी स्त्री के चरित्र पर लांछन लगाते हैं तो लांछन आप अपनी माता के चरित्र पर लगा रहे हैं। क्योंकि हर स्त्री आपके लिए माता समान है ऐसी प्रतिज्ञा आप अपनी पत्नी से कर चुके हैं।


कुछ पुरुष ऐसी सोच रखते हैं कि स्त्रियों पर भी प्रतिबंध लगने चाहिए जबकि आज तक के परिवेश में स्त्रियां प्रतिबंधित जीवन जीती हैं फिर भी  उनके मन में यह प्रश्न है कि स्त्रियों पर प्रतिबंध लगने चाहिए तब सामने वाली स्त्री आपके लिए माता रूप होने के कारण आप अपनी माता पर प्रतिबंध लगाने की सोच रखते हैं क्योंकि आप उसे माता रूप देख नहीं पा रहे इसलिए ही ऐसे पुरुष  अन्य नारियों में कमियां निकालते हैं।


क्योंकि विवाह पश्चात सभी नारियां पुरुषों के लिए माता समान है और माता पर कमियां निकालना दुष् चरित्रता के दायरे में आता है, यानी आप खुद दुष्चरित्र होकर स्त्री के दामन पर लांछन लगा रहे हैं, पाप के भागी बन रहे हैं और ऐसा पाप हिंदू धर्म से निष्कासन करवा सकता है आपका, क्योंकि हिंदू धर्म में नारी सम्मान सर्वोपरि है अन्य स्त्रियों को माता मानने की प्रतिज्ञा अपने आप में यह सिद्ध करती हैं। 

#कुछ #महत्वपूर्ण #बातें #जो #विवाह  #पद्धति #के #दौरान #सामने #आती #है


कहा जाता है की इस संसार में सबसे बड़ा दान जिसे महादान भी कहते हैं वह है #कन्या #का #दान है परंतु आज इस दान की आड़ में पुरुष वर्ग ने अपने कुकर्मों को इतना बढ़ा दिया है कि यह दान माता पिता के लिए #पाप बन गया है क्योंकि पत्नी बनाने के पश्चात स्त्री के साथ जानवरों से भी बदतर सलूक किया जाता हैं। अपने अनुसार ही चलाया जाता है उसे एक लफ्ज़ भी  अपनी मर्जी से बोलने की इजाजत नहीं देना चाहता पुरुष वर्ग, अगर वह बोलती है तो उसे चुप कर दिया जाता है  और जो  चुप नहीं होती मारा-पीटा जाता है कड़वी सच्चाई है।

विवाह के सातों वचनों में कहीं भी कोई भी एक वचन पुरुष ने ऐसा नहीं दिया कि मैं तुम पर अधिकार करूंगा। मेरा तुम पर अधिकार है। मैं तुम्हें चाहे जैसे नचा सकता हूं। तुम अपनी मर्जी से कुछ नहीं करोगी।


ऐसा कोई कहीं व्याख्यान नहीं है किसी वचन में फिर किस अधिकार से पुरुष स्त्री से जानवरों की तरह बर्ताव करता है। किसी एक वचन में यह बात नहीं कि स्त्री को अपने पति से पूछ कर जाना है घर से बाहर जाना पड़ेगा फिर  क्यों स्त्रियां शादी के बाद अपने मन से घर से बाहर नहीं जा सकती? क्यों उन्हें   अपने पति की इजाजत लेनी पड़ती है कि हम फलां जगह चले जाएं क्या? अगर उनकी अनुमति मिलेगी तो स्त्री जाएगी अन्यथा स्त्री नहीं जाएगी। ऐसी पाबंदियां क्यों है हमारे समाज में और जो स्त्री अपनी मर्जी से जाती है उसे बदचलन करार कर दिया जाता है। उसे ही  मुंह जोर, कुल्टा, कलंकिनी कहा जाता है क्यों? 

 दूसरा  महत्वपूर्ण तथ्य इन सातों वचनों में कहीं से कहीं तक यह प्रतीत नहीं होता कि स्त्री द्वारा पुरुष को यह वचन दिया गया है कि उसके मां बाप पुरुष की पति के रूप में सेवा करेंगे सम्मान करेंगे लेकिन पुरुष प्रधान समाज की कसौटी पर यही बातें महत्वपूर्ण हो गई हैं यदि किसी स्त्री के माता पिता अपने अनुभवों के ज्ञान पर दूर दृष्टि से दमाद को पुत्र रूप समझ कर उसकी गलतियों का भान करा कर सुधार करने की चेष्टा करते हैं तो उस स्त्री की जिंदगी में कोहराम मच जाता है और दिए गए सारे वचन तोड़कर उसके हाथ में रख दिए जाते हैं, फिर भी उससे यह कहा जाता है की इस विवाहबंधन को तुम्हें निभाना है। अपनी वर्षों से पाली पोसी पुत्री को यूँ किसी अनजान व्यक्ति के हाथों में सौंप कर उसकी गलतियों इस हद तक नजरअंदाज करना कि जिस्म पर पड़े जख्मों की भी अवहेलना की जाए, सिर्फ इसलिए कि उन्होंने अपनी लड़की का दान किया है क्या उचित है? क्या यह कन्यादान की परंपरा स्त्री जाति पर बोझ नहीं? क्या कन्या कोई वस्तु है जिसका दान करने का अधिकार मां-बाप को है? क्या कन्या कोई वस्तु है जिसे दान स्वरूप भिक्षा में लेना किसी पुरुष के अधिकार में आता है? विवाह पद्धति का यह भाग जिसने स्त्री जाति के अस्तित्व को तहस-नहस कर दिया क्या इसमें बदलाव की जरूरत नहीं?


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