#स्त्री_तंत्र_की_व्याख्या
11 वां अध्याय_( विवाह पद्धति के लाभ
#विवाह_पद्धति_के_लाभ
आज आपके सामने विवाह पद्धति के लाभ बताने से पहले मैं एक ऐसे विषय पर ध्यान केंद्रित करना चाहती हूं, जो सबसे अहम होते हुए भी हीन दृष्टि में केंद्रित हो गया है सिर्फ और सिर्फ विवाह पद्धति के कमजोर पहलू की वजह से। यह विषय कल चलती हुई चर्चा के दौरान मेरे दिमाग में केंद्रित हुआ। यह विषय है वन नाइट स्टैंड इस विषय को सुनते ही सब लोगों की आंखें चौड़ी हो गई होगी कि दीपिका महेश्वरी ने आज यह क्या लिख दिया? कुछ लोग बेहद मुस्कुराए होंगे! कुछ लोग ने नाक सिकोड़ लिया होगा! परंतु उनमें से किसी को भी यह पता नहीं है कि आखिर वन नाइट स्टैंड प्रक्रिया क्या है? इसलिए सभी से गुजारिश है कि लेख को पूरा पढ़ने के बाद अपनी प्रतिक्रिया दें।
वन नाइट स्टैंड प्रक्रिया मानव विस्तार की कड़ी में अहम प्रक्रिया है जिसके बिना मानव विस्तार संभव नहीं सामान्य तौर पर हालांकि आर्टिफिशियल इनसेमिनेशन और स्पर्म बैंक इसके ऑप्शनल जरिए हैं परंतु इसके महत्व और जरूरत को दरकिनार नहीं किया जा सकता हालांकि विवाह पद्धति के कमजोर पहलुओं ने इसे हीन दृष्टि में खड़ा कर दिया है परंतु फिर भी इसका महत्व कम नहीं हुआ आज हमारी विवाह पद्धति के अनुसार हिंदुओं में हुए सभी विवाह खंडित हैं जिस कारण इस प्रक्रिया से गुजरने वाले सभी शादीशुदा जोड़े अनैतिक संबंधों के द्वार पर खड़े हो गए हैं।
इस भयानक सत्य को जानने के बाद हम ज्यादा अच्छी तरह विवाह पद्धति के लाभ को जान सकेंगे हमारी विवाह पद्धति में मंत्रों द्वारा शुद्धीकरण कर हिंदू धर्म में समाहित सभी देवी देवताओं का आशीर्वाद दिलाने के पश्चात जोड़े को इस प्रक्रिया में जाने की इजाजत दी जाती है ताकि वह इस प्रक्रिया में आजीवन संगलन रहने के बाद भी हर प्रकार के संक्रमण से दूर रहें इस प्रक्रिया में जो वायरस उत्पन्न होते हैं उन्होंने इस प्रक्रिया को दो वर्गों में बांट दिया है जंक फूड और घरेलू खाना भूख किस प्रकार की भी हो भारतीय सभ्यता में घर का खाना प्रमुख पायदान पर आता है हमारी विवाह पद्धति में शारीरिक आवश्यकताओं की पूर्ति करने की शुरूवात भी वेद मंत्रों के उच्चारण से होती है ताकि आजीवन होने वाले संक्रमण से सुरक्षित रहें यह विवाह पद्धति का सबसे महत्वपूर्ण लाभ है इसलिए भी विवाह पद्धति की अहमियत उसकी वचनों की अहमियत कई गुना ज्यादा बढ़ जाती है आप सभी के जीवन की सुरक्षा के लिए इसलिए सभी संक्रमण से सुरक्षित अपनी पत्नी जो आपको काम सुख प्रदान करती है उसकी तपस्या कीजिए साधना कीजिए उसके सम्मान को सर्वोपरि मानिए ताकि आप सुरक्षित और लंबा जीवन बिना किसी दिक्कत के जी सकें।
स्त्री मनोविज्ञान का सबसे अहम पहलू स्त्री कभी भी किसी से शारीरिक प्रेम नहीं करती इसलिए वह शारीरिक प्रेम के लिए पहल भी नहीं करती। ऐसा इसलिए है क्योंकि स्त्री को पता है कि स्त्री का जन्म मानव विस्तार के लिए हुआ है और मानव विस्तार की श्रंखला में सबसे पहली कड़ी शारीरिक मिलन है, इसलिए शारीरिक मिलन उसके लिए प्रेम नहीं है उस के जन्म के उद्देश्यों की पूर्ति हेतु उसकी प्रमुख जरूरत है। इसलिए वह स्त्री तंत्र के हिसाब से अपनी सोच को विस्तृत कर अपना जीवन यापन करती है।
बालिका से संपूर्ण नारी बने तक उसे इस बात का भान हो जाता है कि उसका जन्म किस उद्देश्य की पूर्ति के लिए हुआ है और मानवता के विकास और विस्तार के लिए वह जिस किसी पुरुष को अपने लिए उपर्युक्त समझती है उसका समर्पण स्वीकार करती है यह स्त्री तंत्र की व्याख्या है जिस पुरुष प्रधान समाज अपने वर्चस्व के लिए तहस-नहस कर दिया और उस पर अपने अनुसार कानून बना पर अपने ही अनुसार चलने के लिए मजबूर कर दिया इसीलिए ही स्त्रियों की आज यह हालत है अगर हमने इस पर ध्यान नहीं दिया तब विनाश मुँहबाय आपकी आंखों के सामने खड़ा है आप खुद सोच हैं कि इसका परिणाम कितना भयानक होगा?
प्रकृति स्त्री रूप है, जिसमें गर्भ समाहित होता है इसलिए स्त्री में भी गर्भ समाहित है फिर भी विद्वान हिरण्यगर्भ करके पुरुष तत्व मानते हैं और पुरुष का वर्चस्व दिखाते हैं जबकि प्रकृति साफ-साफ संदेश देती है कि स्त्री रूप को मानव विस्तार का कार्यभार सौंपा है इसके लिए वह जिस पुरुष को चुनती है उसे अपना संरक्षक नियुक्त करती है और संरक्षक का कर्तव्य है बिना स्त्री के जीवन में उथल-पुथल मचाए उसकी रक्षा करना लेकिन पुरुष प्रधान समाज में सब कुछ उल्टा हो रहा है सब कुछ जो विनाश की तरफ ले जा रहा है प्रकृति में पिता तत्व नहीं फिर भी मानव योनि में पिता तत्व का इतना बड़ा महत्व जिसके नीचे स्त्री तत्व को इतना हीन कर दिया की माता तत्व का भी महत्व खत्म हो गया इसे ठीक करने के लिए स्त्री तंत्र की व्याख्या पढ़ना बेहद जरूरी है यदि विनाश को रोकना चाहते हैं तब।
हमारे वास्तविक हिंदू धर्म में नारी सर्वोपरि है परंतु आज के हिंदू धर्म में इसे किताब ज्ञान की तरह फॉरवर्ड किया जाता है। आज हकीकत यह है कि पुरुष वर्ग अपनी मां और बहन की इज्जत तभी तक करता है जब तक वे पुरुष प्रधान समाज की परिपाटी के दायरे में रहकर जीवन यापन करती हैं। यदि अपनी मर्जी से जीने लगे तो उन्हें भी गालियों के दायरे में खड़ा कर देते हैं, इसलिए मां बहन की गालियां प्रचुर मात्रा में अपनी भाषा के प्रयोग में दोहराई जाती हैं, क्योंकि उनकी इज्जत एक सीमा तक निर्धारित है जो लोग अपनी मां बहन को गाली देते हैं उनकी इज्जत एक सीमा तक करते हैं। वह अपनी पत्नी की इज्जत क्या करेंगे? यह सोचने के लिए गंभीर मुद्दा है और जिस में बदलाव बहुत जरूरी है।
अगर इस मुद्दे गंभीर रूप से चिंतन कर हमने इसमें परिवर्तन करने की कोशिश नहीं की तो स्थिति और भयानक हो जाएगी। जो लोग इस गलतफहमी में है कि नवयुवक युवतियां लिव इन रिलेशनशिप की तरफ बढ़ रहे हैं। उनके लिए बताना चाहूंगी कि स्त्रियों का अमर्यादित अपमान देखकर आने वाली पीढ़ी की नव युवतियां लिव इन रिलेशनशिप के बजाय एकाकी जीवन की तरफ बढ़ रही है, क्योंकि वे दिन-रात अपनी मां को देखती हैं घर की जिम्मेदारी निभाते हुए फिर भी समय असमय उन्हें गालियों का शिकार होना पड़ता है, पुरुष प्रधान परिपाटी की नींव पर जिसके चलते उनमें विवाह परंपरा के लिए डर और विरोध पैदा हो गया है जिस कारण भी एकाकी जीवन की ओर पदार्पण कर रही हैं जो एक भयावह परिस्थिति को जन्म देगा, पुरुष वर्ग के लिए। जिससे उनका अस्तित्व मिट जाएगा। यदि वे अपना अस्तित्व बचाए रखना चाहते हैं तो उन्हें इस अवस्था पर ध्यान देने की जरूरत है और अपने अंदर सुधार करने की जरूरत है जो सुधार नहीं करेंगे व विनाश की ओर जाएंगे
आज आप लोगों के लिए सम्मान का मापदंड
आजकल यह बात जोरो शोरो से समाज में घूम रही है कि नव युवक युवतियां सम्मान में कमी करते हैं इसलिए आज सम्मान का मापदंड बता रही हूं
जिन लोगों ने परमपिता परमेश्वर के रूप में आदिशक्ति की अवहेलना की है उनके अपने जीवन काल में अपमान का मापदंड लिखा जा चुका है
जिन लोगों ने अपने मां-बाप की सेवा की है आराधना की है उन्हें भविष्य में ऐसी किसी भी परिस्थिति का सामना नहीं करना पड़ेगा लेकिन जिसने भी अपने जीवन काल में स्त्री जाति का अपमान किया है उसने अपने जीवन काल में अपमान का मापदंड लिखवा लिया है
और तीसरे वो लोग जो अपमान का मापदंड झेल रहे लोगों को देखकर दुखी होते हैं अपने जीवन काल में अपमान का मापदंड लिखवा रहे हैं इसलिए सम्मान के लेवल पर किसी के दुख में दुखी होने वाले अपमान के भागीदार होते हैं।
आज मेरे पास पुरुष वर्ग एक सवाल आया कि मंत्रणा के विषय में यदि स्त्री खर्च करने से पहले पूर्व पुरुष से मंत्रणा कर ले और फालतू खर्चा ना करें, यह वचन विवाह में होना चाहिए।
सबसे पहली बात तो सारे वचन पुरुष द्वारा ही दिए गए हैं, हमारे विवाह प्रथा में। ऐसा इसलिए है की विवाह पद्धति बनाने वाले व्यक्तित्व यह जानते थे कि स्त्री प्रकृति है स्त्री नियम है नियम से कोई वचन भरवाए नहीं जाते इसलिए ही विवाह के सारे वचन पुरुष द्वारा भरे गए हैं।
दूसरा स्त्री लक्ष्मी होती है और लक्ष्मी का नियम होता है कि वह जहां रहना चाहती है अपनी मर्जी से इसलिए कहा भी जाता है लक्ष्मी के पैर होते हैं लक्ष्मी को बंधन में रहना पसंद नहीं। जब भी घर की स्त्री के खर्च पर पाबंदी लगाई जाती है तो वह नुकसान के तौर पर प्रत्यक्ष रूप में सामने आते हैं या तो व्यापार में नुकसान या पत्नी द्वारा नुकसान या फिर पत्नी की बीमारी में पैसा बेतहाशा खर्च होता है। इसके उलट जब पत्नी मनमर्जी माफिक धन खर्च करती है तो उसका दिल बहुत खुश होता है और धन उत्पत्ति के नए संयोग घर में प्रवेश होते हैं। इसलिए ही स्त्री को गृह लक्ष्मी कहा जाता है। अब ऐसा प्रश्न रखने वाले पुरुष वर्ग खुद ही सोच ले कि वे स्त्री के खर्चों पर मंत्रणा कर नुकसान भरना चाहेंगे या उसे मनमाफिक खर्चा देकर घर में धन के उत्पत्ति के नए स्रोत चाहेंगे। एक पैरामीटर भी है कि जिसकी पत्नी जितनी ज्यादा बीमार होती है उतना ही उसे खरचने के लिए धन कम दिया गया है।
आज पति ने हाथ उठा दिया तो क्या हुआ ऐसा वीडियो अगर किसी नवयुवती की टाइमलाइन पर आया हो तो वह सतर्क हो जाए उस फैमिली से जिसने इसे शेयर किया है क्योंकि उसने यह प्रूफ किया है कि उसके घर में अगर बहुएं अपने हक के लिए आवाज उठाएंगी तो उन्हें मार कर चुप कर दिया जाएगा। मैं सिर्फ इतना बताना चाहती हूं कि उस भयानक दर्द को शादी होने से पहले कोई महसूस नहीं कर सकता इसलिए उसके बर्दाश्त करने की थाह तक भी नहीं पहुंच सकता, लेकिन यदि शादी के बाद ऐसा कोई हाथ उन पर उठेगा तब वे उस दर्द को सहेगी भी और किसी से कह भी नहीं पाएंगी। यह हमारी समाज की कड़वी सच्चाई है कि सबको अपने जीवनसाथी के रूप में एक पढ़ी लिखी इंटेलिजेंट बीवी चाहिए , जिसका स्टेटस हाई हो, जिसे वह अपने दोस्तों से मिलवा सके। लेकिन घर में रहने के लिए उसे नौकरानी के पायदान पर ही रहना पड़ेगा अगर वह यह काम नहीं करेगी तो उसे हाथ उठाकर बताया जाएगा कि तेरी औकात यही है कि तू घर के काम करें। आजकल लड़कियां हॉस्टल में रहती हैं वहां जाकर पढ़ती हैं पढ़ाई के साथ-साथ अपने रोजमर्रा के काम भी हॉस्टल में वह स्वयं ही करती हैं । इसका मतलब यह है कि लड़कियों को अपने सारे काम करने बखूबी आते हैं, लेकिन घर के काम सिर्फ बहू होने की हैसियत से ही घर की बहु रानी के ऊपर डाल दिए जाएं यह कहीं का कोई कायदा नहीं है अगर ऑफिस टाइम से जाना चाहते हैं तो जल्दी उठकर अपनी पत्नी के रोजमर्रा के कामों में हाथ बटा सकते हैं इतना टाइम होता है सुबह 5:00 बजे से 9:00 बजे तक के रूटीन में। यदि यह टाइम कम पड़ता है तो 4:00 बजे उठे, अपनी पत्नी का सहारा बने और शारीरिक कसरत से आपकी सेहत भी परफेक्ट रहेगी। वीडियो में दिखाए गए वार्तालाप से बहस बहस में घर के कामों को लेकर बात हाथ उठाने पर पहुंच गई । जब इतनी सी छोटी बात पर हाथ उठाने की नौबत आ सकती है या यूं कहूं हाथ उठाने का हक जताया जा सकता है तो यदि पत्नी बिना कहे कहीं किसी सहेली से मिलने जाए तो उसका तो कचूमर ही निकाल देगा पति। यह स्थिति वही है जो मैंने अपने लेख में लिखी है कि आपको अपनी स्थिति सुधारने के लिए अपने कीमें से अपने अस्तित्व को लिखना होगा। आपको आपके मां बाप इसलिए नहीं पढ़ाया लिखाया कि आप घर में नौकरानियों की तरह काम करती रहें और वह काम जिसकी कोई वैल्यू नहीं होती। यदि कोई स्त्री अपने घर के जी जान से सजा सवार कर रखती है तब उसे बदले में यही कहा जाता है कि तुम संभाल कर रख रही हो तो क्या! यह काम तो सभी औरतें करती हैं। जब पढ़ लिखकर इस काबिल हुई है कि अपने हुनर को तवज्जो देकर अपने लिए आर्थिक संसाधन पैदा कर सकें तो इस ओर विशेष ध्यान दें क्योंकि यह सारे काम नौकरानियां अरेंज करके कराया जा सकता है और जो वर्किंग वूमेन है वह अपने घर में मेड सर्वेंट रखती हैं।
कुछ अनपढ़ जाहिल लोग यह तंज कसते हैं कि बच्चा पैदा करने के लिए क्या नौकरानी रखें तो उनके लिए मेरी यही दुआ है कि उन्हें नौकरानियों से ही बच्चे पैदा कराने का सौभाग्य प्राप्त हो क्योंकि महारानियों से बच्चे पैदा कराने की औकात हर किसी की नहीं होती।
लोगों की राय यह है कि पुराणों में लिखा है पति स्त्री का गुरु होता है परमेश्वर होता है परंतु मैंने अपने व्याख्यान में इस बात की पुष्टि की है कि स्त्री पुरुष का अर्धनारीश्वर रूप परम पिता परमेश्वर है यदि हम उसमें से स्त्री तत्व निकाल देंगे तो वह परमपिता परमेश्वर कभी नहीं बन सकता और विवाह पद्धति में दिए गए वचनों के अनुसार जीवन यापन करने के बाद ही स्त्री पुरुष के अर्धनारीश्वर रूप के लिए युग्म बनाने की कार्य विधि प्रारंभ होती है और दिए गए वचनों को तोड़ देने के पश्चात विवाह खंडित हो जाता है जबकि विवाह के वचन पुरुषों द्वारा ही स्त्री को दिए जाते हैं और वही उसका खंडन कर विवाह खंडित भी करते हैं फिर किस आधार पर पति परमेश्वर हुआ इस पर अभी तक प्रश्नचिन्ह है?
मजे की बात यह है कि सवाल करने पर इस प्रकरण को मनु और शतरूपा से जोड़ दिया जाता है मनुस्मृति की दुहाई देकर। मनु और शतरूपा पृथ्वी पर पहले अर्धनारीश्वर रूप है जिनको पृथ्वी पर मानव विस्तार का कार्यभार सौंपा गया तब न ही परिवार प्रथा थी नाही विवाह प्रथा तब यह बात कि पति स्त्री का गुरु और परमेश्वर है किस प्रकार मनु और शतरूपा से जोड़ दिया गया? और मनु की स्मृति किताब अपने आप में यह प्रमाणित करती है कि वह मनु के जीवन के उपरांत लिखी गई है तो जिसने यह किताब लिखी है उसने अपनी विचारधारा के अनुरूप वर्णन किया है लेकिन मनु और शतरूपा दोनों को ही संसार मैं मानवता का विस्तार करने की जिम्मेदारी दी गई थी तो फिर केवल मनुस्मृति से कैसे हम पृथ्वी के कानून और नियमों का निर्धारण कर सकते हैं यह भी सोचने वाला तथ्य है साथ ही साथ यह भी निष्कर्ष निकलता है कि जितने भी नियम निर्धारण इस पृथ्वी पर विद्यमान है वह सब मनुष्यों ने ही बनाए हैं ईश्वर ने नहीं इसलिए अब इनका परिवर्तन आवश्यक है क्योंकि इन नियमों के चलते हुए हम विनाश के कगार पर जा रहे।
समाप्त
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