शुक्रवार, 17 नवंबर 2023

व्यक्ति के लिए धन का महत्व

 वर्तमान में व्यक्ति के लिए धन का महत्व सबसे अधिक है शायद लोग इसलिए कहते हैं कलयुग है ।



धन का महत्व हो भी क्यों ना धन के आधार पर ही रिश्तों का महत्व है रिश्ते धन हो तो हैं धन नहीं है तो खून भी खून को नहीं पहचानता । यह आज का सत्य है इसे झुटलाया नहीं जा सकता।

सब भौतिकतावादी हो गए हैं। इंसानियत तो मानो मर गई है जिनमे बची है वो भी सबको देख कर एक ना एक दिन बदल ही जाएंगे। बचपन में सोचा करते थे कि आखिर सक्षम व्यक्ति क्यों नहीं किसी की हेल्प करता क्यों नहीं सहयोग करता अपना कारोबार बढ़ाता है अपने नौकरों को नौकर ही रखता है धन अधिक होते हुए भी क्यों नहीं अपने नौकर का जीवन सरल बनाता आज 42 की उम्र में सब समझ आ गया है। लोगों का जीवन स्वयं को मजबूत करने में ही निकल जाता है। स्वयं को स्थापित करने में स्वयं को धनवान बनाए रखने में दिखावा करने में ही निकल जाता है।

सत्संग में जाकर प्रवचन सुनने वाले लोग सत्संग की बातों को सत्संग में ही छोड़ आते हैं। घर आकर दुनिया के तौर तरीकों से चलना होता है।

यहां लोग सिर्फ अपने लिए सोचते हैं अपने लिए करते हैं दूसरों के लिए सोचने वाले लोगों को भी दूसरे नजरिए से देखा जाता है 

हालात यह है कि निस्वार्थभाव से सेवा करने वालों को भी लोग थी सोचते हैं इनको कोई लाभ होगा इसलिए यह सेवा कार्य कर रहे हैं। लोगों की मानसिकता ही सिर्फ धन पर और धनवान बनने तक ही सिमट गई है । उनकी सोच पैसे से शुरू और पैसे पर खत्म है। 

हो भी क्यों न पैसा है तो सब पूछते हैं नहीं है तो कोई पहचानता भी नहीं। 

परंतु एक बात है यह ब्रह्माण्ड आपके कर्मों को जरूर देखते है यह अदृश्य शक्ति आपके कर्मों को देख रही है जो बिलकुल नहीं चूकती । इसका गणित एकदम सटीक है । 

धन के लिए अपनों से धोखा देने वालों , धन के लिए षड्यंत्र रचने वालों वो अदृश्य शक्ति सबका हिसाब रखती है । इंसानियत जिंदा रखो। धर्म के साथ चलो अधर्म का तो नाश निश्चित है। 

भौतिकता की दौड़ में मत उलझो मानव जीवन का मूल्य समझ सादा जीवन उच्च विचार की विचार धारा पर चलना ही सरल है।

सांसारिक जीवन में दौड़ कभी खत्म नहीं होनी है और जीवन का पता नहीं कब खत्म होना है । जिसने संसार में जन्म लिया है वह इस इस मकड़जाल में फंस ही गया है जीने के लिए धन दौलत जरूरी है। मनुष्य इसी मकड़जाल में अपना जीवन पूर्ण कर लेता है और चला जाता है।

संतोषी सदा सुखी।

पहले बुजुर्ग लोग कहा करते थे  और यही सत्य है। 

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