रविवार, 6 दिसंबर 2020

बेरोजगार भारत

 बेरोजगार भारत

बेरोजगारी के 'भयावह दौर' की तरफ बढ़ता भारत


दुनिया भर के शासक एवं सत्ताएं अपनी उपलब्धियों का चाहे जितना बखान करें, सच यह है कि आम आदमी की मुसीबतें एवं तकलीफें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। इसके बजाय रोज नई-नई समस्याएं उसके सामने खड़ी होती जा रही हैं, जीवन एक जटिल पहेली बनता जा रहा है।अर्थव्यवस्था की सेहत पर जारी होने वाले आंकड़ों को लेकर सरकारे कितनी तत्पर, जागरूक, जवाबदेह और पारदर्शी रही है, देश ने देखा है। पर वे ज़िंदगियां असली हैं जो इस विभीषिका से गुजर रहीं हैं। कोरोना कुछ करे न करे किन्तु अब चुनावों में शायद उन सारे झूठों को तो उघाड़ ही देगा, जिन्हें झुनझुनों की तरह बजाकर वोट बटोरे गये थे।


 विकसित एवं विकासशील देशों में महंगाई बढ़ती है, मुद्रास्फीति बढ़ती है, यह अर्थशास्त्रियों की मान्यता है। पर बेरोजगारी क्यों बढ़ती है? एक और प्रश्न आम आदमी के दिमाग को झकझोरता है कि तब फिर विकास से कौन-सी समस्या घटती है?सारी समस्याएं ज्यों की त्यों काल बनी खड़ी रहती है।जब भी किसी वाजिब मुद्दे ,बेरोजगारी की बात होती है सरकारें आतंकवाद जैसे मुद्दों का प्रचार प्रसार इतनी तेजी से करती है कि देश का युवा लिबरल होने लगता है।भावुक हो जाता है।आतंकवाद की समस्या की आड़ में  ,राष्ट्रवाद की भावना जगाने के नाम पर युवाओं को ठगा जाता है।बलि का बकरा बनाया जाता है।अंततः बेरोजगारी पर कोई चर्चा नही होती मुद्दा बनकर रह जाता है।आश्चर्य की बात है कि भारत जैसे युवा देश मे कभी युवाओं के मुद्दे पर प्रमुखता से चर्चा ही नही होती है।

देश में वोट की राजनीति में केवल तीन अहम पैमाने नजर आते हैैं। पहला जाति, दूसरा मजहब, तीसरा सरकार से मोह भंग यानी एंटी इनकंबैंसी। हिंदुस्तान की सियासत इन तीन मुद्दों पर टिकी है। जाति जन्म से है जिसे बदला नहीं जा सकता। प्रजातंत्र संख्या का खेल है। जिसकी जितनी संख्या भारी उतनी उसकी भागीदारी।


आज बेरोजगारी बड़ा मुद्दा है।

कोरोनावायरस संकट के दौरान आर्थिक अनिश्चितता के माहौल में लाखों मज़दूरों का पलायन इस संकट का पहचान सी बन गयी हैं. लॉकडाऊन के दौर में ठप्प पड़ी अर्थव्यवस्था की वजह से करोड़ों मज़दूरों और कर्मचारियों का रोज़गार छिन गया है. भारतीय अर्थव्यवस्था पर नज़र रखने वाली संस्था सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी ने अपने ताज़ा आंकलन में दावा किया है कि

भारत की बेरोजगारी दर अक्तूबर माह में तीन साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है। जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक पिछले महीने बेरोजगारी दर 8.5 फीसदी रही, जो कि अगस्त 2016 के बाद का सबसे उच्चतम स्तर है। यह इस साल सितंबर में जारी किए गए आंकड़ों से भी काफी ज्यादा है। 


 नए रोजगार के अवसर नही रिक्त पदों पर  भर्ती नही।ऐसे में फ्री वैक्सीन का एलान कितना सही और सार्थक है।आप फ्री फ्री का लालच देकर देश की युवाओं को निठल्ला न बनाइये।रोजगार दीजिये।इतना काम दीजिये की उनकी हैसियत खुद कमा कर वैक्सीन खरीदने की हो।जनता के टैक्स का पैसा सरकारें चुनावी वक्त पर फ्री -फ्री का स्कीम निकाल कर लुटाती रही हैं।आखिर क्यों चर्चा नही होती इन मुद्दों पर ?क्यों भटकाया जाता हमेशा युवाओं को?रोजगार हींन युवाओं की जिस देश मे अधिकता होगी वहां अपराध और भ्रष्टाचार बढ़ेगा।

बिहार में प्रचार रैली में दस लाख नौकरी की बात कही गई है।अब यह कितना सच साबित होता यह सरकार बनने के बाद पता चलेगा,किन्तु बदहाली इतनी चरम पर है कि जनता ने सिर्फ इसी मुद्दे पर भरोसा कर महागठबंधन को वोट दिया।एग्जिट पोल्स के अनुसार महागठबंधन को युवा वोट ने बढ़त दी है।देखना यह है कि क्या एकबार फिर युवा ठगे जाएंगे।पिछले आम चुनाव में भी प्रतिवर्ष दो करोड़ नौकरी देने के वादे कर वोट हासिल किया गया ।क्या मिली नौकरी?मुद्रा लोन देकर उसे नौकरी देने का हवाला दे दिया।


हम बंगले टूटने पर चिंता जाहिर करते, बदले की राजनीति में एड़ी चोटी एक कर देते,ग्लोबल मुद्दों पर चर्चा करते,सुपर पावर की बात करते हैं,किन्तु देश के युवा भूखे मर रहे इनकी चिंता कब करेंगे?


सीमा घोष

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