~💐~ उलझन ~💐~
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पुरानी कथा है। एक खोजी भक्त ने भगवान विष्णु को खोजते-खोजते एक दिन पा लिया। चरण पकड़ लिए। बड़ा आह्लादित था, आनंदित था। जो चाहिए था, मिल गया था। भगवान विष्णु को खूब-खूब धन्यवाद किया और कहा, "बस एक बात और मुझसे कुछ थोड़ा सा काम करा लें, कुछ सेवा करा लें। आपने इतना दिया, जीवन दिया, जीवन का परम उत्सव दिया और अब यह परम जीवन भी दिया। मुझसे कुछ थोड़ी सेवा करा लें। मुझे ऐसा न लगे कि मैं आपके लिए कुछ भी न कर पाया, आपने इतना किया। मुझे थोड़ा सा सौभाग्य दे दें। जानता हूँ, आपको किसी की जरूरत नहीं, किसी बात की जरूरत नहीं। लेकिन मेरा मन रह जाएगा कि मैं भी प्रभु के लिए कुछ कर सका।"
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भगवान विष्णु ने कहा, "कर सकोगे? करना बहुत कठिन होगा।"
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मगर भक्त जिद्द पर अड़ गया। तो भगवान ने कहा, "ठीक है, मुझे प्यास लगी है। थोड़ा सा पानी पिला दो।"
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क्षीरसागर में तैरते हैं भगवान विष्णु, वहां कैसी प्यास? पर इस भक्त के लिए कहा कि चल ठीक, मुझे प्यास लगी है। तू जाकर एक प्याली भर पानी ले आ।
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उसने कहा, "अभी लाता हूँ।"
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🌷कहने को तो क्षीरसागर था, वहीं से भर लेता। लेकिन जो पास है, वह तो किसी को दिखाई नहीं पड़ता। पास तो दिखाई ही नहीं पड़ता। पास के लिए तो हम बिलकुल अंधे हैं। हमें दूर की चीजें दिखाई पड़ती हैं। जितनी दूर हों, उतनी साफ दिखाई पड़ती हैं। चांद-तारे दिखाई पड़ते हैं। निकट पड़ोस नहीं दिखाई पड़ता। उसे भी नहीं दिखाई पड़ा होगा। हम जैसा ही आदमी रहा होगा।🌷
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भक्त चला, भागा। उतरा संसार में। एक द्वार पर जाकर दस्तक दी। एक सुंदर युवती ने द्वार खोला।
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उस भक्त ने कहा, "देवी, मुझे एक प्याली भर शीतल जल मिल जाए।"
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उस युवती ने कहा, "आप आए हैं, ब्राह्मण देवता !! भीतर विराजें, मेरे घर को धन्य करें। ऐसे बाहर-बाहर से न चले जाएं। फिर मेरे पिता भी बाहर गए हैं। मैं घर में अकेली हूँ। वे आएंगे तो बहुत नाराज होंगे कि ब्राह्मण देवता आए और तूने बाहर से भेज दिया। नहीं-नहीं, पहले आप भीतर आएं।"
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एक क्षण को तो ब्राह्मण देवता डरे। युवती है, सुंदर है, अति सुंदर, ऐसी सुंदर स्त्री नहीं देखी। भगवान विष्णु भी एक क्षण को फीके मालूम पड़ने लगे। भगवान के फीके हो जाने में देर कितनी लगती है। ऐसा दूर का सपना मालूम होने लगे तो भक्त डरा, घबड़ाया। घबड़ाया इसीलिए कि विष्णु एक क्षण को भूलने ही लगे। आवाज दूर से दूर होने लगी।
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उसने कहा, "नहीं-नहीं।"
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माथे पर पसीना आ गया। लेकिन युवती तो मानी नहीं। उसने ब्राह्मण देवता का हाथ ही पकड़ लिया और कहने लगी, "आप भीतर आएं, ऐसे न जाने दूंगी।"
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उसके हाथ का पकड़ना हुआ, और ब्राह्मण देवता के भगवान विष्णु बिलकुल विलीन हो गए। वह भीतर ले गई। उसने कहा, "जल तो आप ले जाएंगे, लेकिन पहले स्वयं तो जलपान कर लें।"
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युवती ने नाश्ता करवाया, पानी पिलाया। एकांत !! उस युवती का सौंदर्य !! उस युवती का भाग-भाग कर ब्राह्मण देवता की सेवा करना। भगवान विष्णु धीरे-धीरे स्मृति से उतर गए। कभी-कभी बीच-बीच में याद आ जाती कि बेचारे प्यासे होंगे, फिर सोचता कि ठीक है, भगवान को क्या प्यास? वह तो मेरे लिए ही उन्होंने कह दिया है, अन्यथा उनको क्या प्यास? वे तो परम तृप्ति में हैं। अतः ऐसी कोई जल्दी तो है नहीं। दो क्षण और रुक लूँ।
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और युवती ने जब निमंत्रण दिया कि जब आप आ ही गए हैं, मेरे पिता भी थोड़ी देर में आते होंगे, उनसे भी मिल कर जाएं। तो वह सहज ही राजी हो गया।
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युवती सेवा करती रही। और युवती का सौंदर्य और रूप मन को मोहता रहा। सांझ हो गई, पिता तो लौटे नहीं। युवती ने कहा, "आप भोजन तो कर ही लें। अब सांझ को कहां भोजन करेंगे?"
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भोजन बना, भोजन किया। रात हो गई। युवती ने कहा, "इस रात में अब कहां जाएंगे? सुबह-सुबह भोर होते, ब्रह्ममुहूर्त में निकल जाना।"
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सोच तो ब्राह्मण देवता भी यही रहे थे कि रात अब कहां जाएंगे? अतः राजी हो गए।
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सुबह युवती कहने लगी, "पिता तो आए नहीं हैं, गाय का दूध लगाना है, मुझसे लगता नहीं, आप लगा दें।"
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तो गाय का दूध लगाया। फिर बैल बीमार था। तो युवती ने कहा, "ब्राह्मण देवता, इसकी भी कुछ सेवा करें, मैं कहां औषधि लेने जाऊँ? और फिर ये सब भी परमात्मा के ही हैं।"
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बात भी जंची। ब्राह्मण देवता रुके सो रुके। फिर तो वर्षों बीत गए। फिर वह वहां से निकले नहीं। फिर एक पर एक काम आते गए। ब्राह्मण देवता करें भी तो क्या करें? फिर उनके बेटे हुए, बेटियां हुईं, बड़ा फैलाव हो गया। कोई पचास-साठ साल बीत गए। बेटों के बेटे हो गए। ब्राह्मण देवता बूढ़े हो गए हैं।
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तब गांव में बाढ़ आई। भयंकर बाढ़ आई। ब्राह्मण देवता अपने बच्चों को, नाती-पोतों को किसी तरह बाढ़ से निकलने की कोशिश कर रहे हैं। सारा गांव डूबा जा रहा है। ऐसी भयंकर बाढ़ है जो कभी न देखी न सुनी। जैसे बाढ़ में से बचा कर जा रहे हैं, अचानक पत्नी बह गई। पत्नी को बचाने दौड़े तो जिस बच्चे का हाथ पकड़ा था, उसका हाथ छूट गया। उस किनारे पहुंचते-पहुंचते बाढ़ में सारा परिवार विलीन हो गया।
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उस किनारे एक पत्थर की चट्टान पर ब्राह्मण देवता खड़े हैं और बाढ़ की एक बड़ी उत्तुंग लहर आती है। उत्तुंग लहर पर बैठे हुए भगवान विष्णु आते हैं और कहते हैं, 🌿"मैं प्यासा ही हूँ, तुम अभी तक पानी नहीं लाए? मैंने तुमसे पहले ही कहा था, तुम न कर सकोगे। क्योंकि तुम संसार छोड़ कर भागे थे। संसार से जाग कर ऊपर नहीं उठे थे। संसार की तरफ आंख बंद करके भागे थे। जो छोड़ कर भागता है, उसका आकर्षण शेष रहता है। छोटे से काम के लिए भी संसार में जाओगे तो उलझ जाओगे। लेने गए थे जल और सारा संसार बस गया।"🌿
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🌸गए थे हरि भजन को, ओटन लगे कपास !! फिर जब कोई कपास ओटता है तो ओटता ही चला जाता है। कपास का ओटना ऐसा है, जो कभी पूरा नहीं होता।🌸
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🙏🙏 ॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🙏🙏
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