शनिवार, 4 दिसंबर 2021

झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई की जीवन गाथा


       झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई का जन्म 1828 में अस्सी घाट वाराणसी में जन्म हुआ जो कि ब्रहामण परिवार में जन्मी पिता का नाम मोरो पंत और माता का नाम भागीरथी बाई था , मा 4 वर्ष की उम्र में छोड़कर चली गईं लक्ष्मीबाई का बचपन का नाम मणिकर्णिका था प्यार से मनु बुलाते थे , 

      ढाल, कृपाण ,तलवार ,पिस्टल इनके प्रिय खिलोनर थे घुड़सवारी , तीरंदाजी, तलवार बाजी, व्यूह रचना में पारंगत थी रानी लक्ष्मीबाई । 

अंग्रेज देश के राजाओं में फूट डालकर और उनकिंकमजोरी का फायदा उठाकर धीरे धीरे उनके राज्यो को हडपने का षडयंत्र रच रहे थे । 

उनकी इस नीति को बचपन से ही मणिकर्णिका समझने लगी थी। अंग्रेजो को देश से भगाने की योजना बनाती थी।

 सन 1842 में झाँसी के महाराज गंगाधर राव नेवालकर से रानी लक्ष्मीबाई का विवाह हुआ, 1851 में एक पुत्र को जन्म दिया , पुत्र ज्यादा ना जी सका और महाराज ने आनंद राव को 1853 में गोद लिया जिसके बाद महाराज का भी निधन हो गया । 

अंग्रेजो ने एक संधि पर महाराज गंगाधर राव से हस्ताक्षर करा लिए थे जिसमें राजा का स्वयम का बेटा ही उत्तराधिकारी होगा 

यदि स्वयम का पुत्र ना हुआ ऐसी स्थिति में अंग्रेज उस राज्य को आने अधीन कर लेंगे।

चूंकि आनंदराव जिनका नाम दामोदर राव रखा गया उनके पुत्र नहीं थे वो गॉड लिए हुए थे इसलिए अंग्रेजो ने रानी लक्ष्मीबाई को झाँसी का किला छोड़ने का हुक्म दिया और प्रताव रखा 60000 रुपये वार्षिक पेंशन अंग्रेजी हुकूमत द्वारा दी जाएगी । रानी ने 1857 में अंग्रेजो को साफ कह दिया मैं अपनी झाँसी नहीं दूंगी ।

रानी लक्ष्मीबाई ने महिलाओं को भी युद्ध के लिए प्रशिक्षित किया था,  मंगल पांडे  के बाद 1857 में रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजो का विरोध किया था। इस पर अंग्रेजो ने बड़ी सेना के साथ झाँसी पर हमला कर दिया। लक्ष्मी बाई का साथ झाँसी की जनता ने भी दिया । झलकारी बाई रानी लक्ष्मीबाई की हमशक्ल थी जिसे सेना में अहम जिम्मेदारी दी गयी थी।

रानी लक्ष्मीबाई का साथ कालपी के पेशवा ने दिया और रानी ने युद्ध लड़ा यह युद्ध 2 माह से ज्यादा चला अंत में लड़ते लड़ते रानी शाहिद हो गईं । युद्ध मे रानी अपने गोद लिए बालक को अपनी पीठ से बांध कर लड़ती रहीं ।

यह कहानी दिल को झकझोर देने वाली कहानी है । 

 ग्वालियर के राजा ने रानी लक्ष्मीबाई का साथ नहीं दिया वे अंग्रेजो के साथ थे । तांत्याटोपे कालपी के पेशवा रानिबके साथ थे।

पहले मुगलों ने फिर अंग्रेजों ने हमारे देश पर राज किया हम भारतीयों को गुलाम बना कर रखा। देश की स्वतंत्रता के लिए लाखों वीर शाहिद हो गए । 

जिसका प्रमुख कारण आपसी फूट और स्वार्थ रहा।

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