: सुमन साहित्यिक परी द्वारा किए गए ऑनलाइन आयोजन पर विभिन्न विद्वानों से प्राप्त समीक्षक टिप्पणियां
दिनांक 26.09.2021, दिन रविवार | फेसबुक पेज दीपिका माहेश्वरी ‘सुमन’ द्वारा एक अखिल भारतीय काव्य गोष्ठी का सरस आयोजन किया गया | इस आयोजन में पूरे भारतवर्ष से अनेक नामी गिरामी साहित्यकारों ने भाग लिया और अपनी प्रस्तुति दी | इस काव्य गोष्ठी का आयोजन श्रीमती दीपिका माहेश्वरी ‘सुमन’ जी के द्वारा किया गया था | दीपिका जी जब भी कोई आयोजन करती हैं तो उसकी रूपरेखा तकरीबन एक माह पूर्व ही बना लेती हैं | कवियों को आमंत्रित करने से लेकर, पूर्वाभ्यास और अंतिम प्रस्तुति तक वे लगातार सबसे संपर्क में बनी रहती हैं | वे स्वयं भी एक अच्छी कवयित्री हैं |
इस सरस काव्य गोष्ठी का सञ्चालन स्वयं दीपिका माहेश्वरी जी के द्वारा किया गया | सर्वप्रथम दीपिका जी ने सभी आमंत्रित कवियों का स्वागत और अभिनन्दन किया | तदुपरांत कविकुल परंपरा के अनुसार माँ सरस्वती की चरण-वंदना हेतु मुरादाबाद के सुप्रसिद्ध कवि श्री राजीव ‘प्रखर’ जी का आह्वान किया गया | माँ शारदे का आह्वान करते हुए उन्होंने अपने शब्द-सुमन निम्नानुसार प्रस्तुत किये –
“तुमसे ही माँ शारदे संचालित संसार
श्रद्धारूपी कुछ सुमन करो पुनः स्वीकार”
इसके पश्चात ही उन्होंने अपना काव्य पाठ भी प्रस्तुत किया | कोरोना काल से सम्बंधित इस मुक्तक की सराहना सभी ने की –
“दूरियों का इक बवंडर जब कहानी गढ़ गया
मैं अकेला मुश्किलों पर तान सीना चढ़ गया
हाल मेरा जानने को फ़ोन जब तुमने किया
सच कहूं तो खून मेरा और ज़्यादा बढ़ गया |”
इसके अपरांत “मैं नदिया” शीर्षक से माँ गंगा की व्यथा को व्यक्त करता हुआ एक गीत पढ़कर उन्होंने अपना काव्यपाठ समाप्त किया |
उनके पश्चात कलकत्ता से जुड़े हुए श्री के० के० दुबे जी ने ग़ज़ल पढ़कर माहौल को वैविध्य प्रदान किया | मतला और एक शे’र देखें –
“ले गया मंज़िल तलक जो रहगुज़र अच्छा लगा
साथ जिसने है निभाया राहबर अच्छा लगा
मुद्दतों के बाद मिलना और चर्चा आपसी
कुछ इधर की कुछ उधर की बात पर अच्छा लगा “
अभी लोग श्री के०के० दुबे जी की ग़ज़ल का लुत्फ़ ले ही रहे थे कि मुरादाबाद से जुड़े श्री अरविन्द शर्मा ‘आनंद’ जी भी अपनी ग़ज़ल लेकर नुमायाँ हो गए | उनकी ग़ज़ल का मतला और शे’र कुछ यूँ रहे –
“वही मंज़िलें हैं वही रास्ते हैं
वही हौसले हैं वही हादसे हैं
चुराई जिन्होंने नज़र मुझसे अक्सर
दरीचों से अपने वही झांकते हैं “
ज़िन्दगी और मुहब्बत को देखने का उनका नज़रिया सबको बहुत पसंद आया | महफ़िल ग़ज़लों से पुरनूर हो रही थी तभी मेरठ से श्री गोविन्द रस्तोगी जी ने भगवान् कृष्ण और राधा जी की बात करके वातावरण भक्तिमय कर दिया | पूरा माहौल ही उनके इस गीत से झंकृत हो उठा –
“मन राधा-राधा दोहराए
मोहन की वंशी बजते ही राधा की धड़कन बढ़ जाए
स्वरधारा बहती भक्ति की पायल अपनी धुन में गाये
मन राधा-राधा दोहराए “
निश्चित ही वातावरण बहुत ही रससिक्त हो उठा, जब लखनऊ से जुड़े हुए श्री राममूर्ति सिद्ध ‘अधीर’ जी ने मन को विह्वल कर देने वाला ये गीत पढ़ा –
“ये बादल क्यूँ आ जाते हैं
क्यूँ मनमीत नहीं आते हैं
घर-घर में ये बरस रहे हैं
अंतर्मन को तरस रहे हैं
त्रस्त हुआ जनजीवन सारा
कर किलोल पक्षी गाते हैं
क्यूँ मनमीत नहीं आते हैं”
मधुर गीतों की रसवर्षा से सबके मन आह्लादित हो उठे थे और सभी मन ही मन ये पंक्तियाँ गुनगुना रहे थे “क्यूँ मनमीत नहीं आते हैं” | अचानक ही, लखनऊ के प्रसिध्द सुकवि डॉ० इंजीनियर श्री मनोज श्रीवास्तव जी ने अपनी ओजभरी रचनाओं से वातावरण को गुंजायमान कर दिया | पृथ्वीराज चौहान का उद्धरण देते हुए, अपना कवि परिचय देते हुए उन्होंने अपने मुक्तकों से सभी को ऊर्जस्वित कर दिया –
“अस्तित्व न होता मानव का यदि होता ये दिनमान नहीं” या फिर “जो विपदाओं को सहला दे हम उसको कविता कहते हैं” और “मैं दीपक बनकर जलता हूँ तुम सूरज बनकर छा जाओ” के साथ-साथ,
“मैं सच हूँ तूफ़ान साथ में लाकर चलता हूँ,
सारा हिन्दुस्तान साथ में लेकर चलता हूँ “
जैसी रचना का पाठ कर उन्होंने गोष्ठी को नई ऊंचाई प्रदान की |
ये दीपिका माहेश्वरी जी के कुशल सञ्चालन का ही परिणाम था कि गोष्ठी में एक से बढ़कर एक और विविधतापूर्ण रचनाएं प्रस्तुत हो रही थीं | अगले कवि के रूप में लखनऊ के सुप्रसिद्ध कवि श्री मनमोहन बाराकोटी ‘तमाचा लखनवी’ जी का आह्वान किया गया उन्होंने समय की कमी को ध्यान में रखते हुए अपना प्रतिनिधि मुक्तक पढ़ा –
“संघर्ष की राह काँटों की सेज होती है
प्रतिभाविहीनों की चमक निस्तेज होती है
बनकर यथार्थ चिंतक पैनी नज़र ज़रूरी
कलम की धार तलवार से भी तेज़ होती है”
जबलपुर से जुड़े हुए सुकवि श्री बसंत कुमार शर्मा जी ने दोहों से अपना काव्यपाठ शुरू किया
– “जब यादों की बदलियाँ, करतीं हैं बरसात
हो जाते गीले नयन, मगर सुलगता गात”
“कहाँ गए वे प्रेम के, खट्टे मीठे पत्र
चलते थे जिनके कभी, लम्बे लम्बे सत्र “
वास्तव में उनके द्वारा पढ़े गए दोहे लीक से हटकर और मन को छूने वाले थे | अहमद फ़राज़ की ज़मीं में उन्होंने अपने ग़ज़ल पढ़ी, जिसका मतला कुछ यूँ था –
“कुछ और नहीं यूँ ही सताने के लिए आ
हक़ है मेरे दिल पे ये जताने के लिए आ“
अभी तक गोष्ठी में गीत, ग़ज़ल, दोहे और मुक्तकों का दौर चल रहा था मगर जैसे ही खंडवा, मध्य प्रदेश के प्रसिद्ध कवि श्री सुधीर देशपांडे जी प्रकट हुए उन्होंने नवगीत पढ़कर गोष्ठी की दिशा बदल दी | पिता के ऊपर पढ़ी गयी उनकी कविता के कुछ अंश यूँ रहे –
“अपने पिता को देखकर
जागी थी ख्वाहिश
पिता बनने की
पिता बनना चाहता था
अपने पिता को
ये बताने के लिए
कि कैसा होना चाहिए
एक पिता को”
इसके पश्चात अपने शहर के पेट्रोल पंप पर लिखी कविता पढ़कर उन्होंने गोष्ठी को नया आयाम दिया |
प्रयागराज के वरिष्ठ कवि श्री अशोक श्रीवास्तव ने अपनी बेहतरीन ग़ज़ल से सबका मन मोह लिया । उनकी ग़ज़ल का मतला बहुत ही शानदार था-
" किसी के हाथ पीले हो रहे हैं किसी के नैन गीले हो रहे हैं"
लखनऊ के श्रेष्ठ कवि श्री कुलदीप नारायण सक्सेना जी साहित्य की दुनिया में एक जाना-माना नाम हैं | उन्होंने एक अलग ही अंदाज़ में अपनी कविता पढ़कर सबको चौंका दिया –
“करता प्रस्तुत अपनी प्रस्तुति
कठिन बहुत अपनों से पाए, घावों की गणना कर पाऊं
सबकी आँखों से छिप-छिप कर, शीतलता और ताप मिलाऊं
भूखे सुत को दुलराती उस, माता की लोरी बन जाऊं
रोटी जैसी जग की आकृति, करता प्रस्तुत अपनी प्रस्तुति”
इतनी सुंदर प्रस्तुति के बाद डॉ० मनोज रस्तोगी ने कोरोना से सम्बंधित मुक्तक सुनाकर सबको एकबारगी सोचने को मजबूर कर दिया –
“सुन रहे यह साल आदमखोर है
हर तरफ़ चीख़ दहशत शोर है
मत कहो ये वायरस ज़हरीला बहुत
आजकल इंसान ही कमज़ोर है“
इसके बाद ‘जन्मदिन’ शीर्षक से पढ़ी गयी उनकी कविता को भी बहुत सराहना मिली |
गोष्ठी शनैः-शनैः अपने गंतव्य की ओर बढ़ती जा रही थी | तभी कानपुर के वरिष्ठ कवि श्री विद्याशंकर अवस्थी ‘पथिक’ जी को काव्यपाठ के लिए आमंत्रित किया गया | उन्होंने ‘चक्रव्यूह’ नामक रचना का पाठ करने से पूर्व अपना परिचय देते हुए कहा –
“मैं रवि नहीं, मैं कवि नहीं मैं किसी कवि की छवि नहीं”
‘चक्रव्यूह’ कविता के सन्दर्भ में काव्यपाठ करते हुए उनकी अभिव्यक्ति इस प्रकार रही –
“चक्रव्यूह का नाम सुना तो द्रोणाचार्य भी घबराए
रणभूमि में अब कल क्या होगा सोच-समझकर पछताए”
गोष्ठी अपने चरम पर पहुँच चुकी थी और अभी तक सभी को अपने कुशल सञ्चालन में काव्यपाठ कराने वाली दीपिका माहेश्वरी जी को स्वयं काव्यपाठ करना ही शेष था | अपनी द्विपदी में भगवान् विश्वकर्मा को स्मरण करते हुए उन्होंने अपनी रचना पढ़ी –
“विश्वकर्मा जी वो जगह धन्य जहाँ आप आकर रुके
बन जाए प्यारा आशियाना जहाँ आप आकर रुके
वरदानों से ही चमकता है नसीबा हम सबका
आशीष मिलता है आपका ही जहाँ आप आकर रुके”
इसी के साथ सभी आमंत्रित कवियों और दर्शक दीर्घ से कवियों की हौसलाअफ़ज़ाई कर रहे दर्शकों का आभार और अभिनन्दन करते हुए दीपिका माहेश्वरी जी ने गोष्ठी के समापन की घोषणा की | तभी अचानक चंदौसी से डॉ रीता सिंह जी का आगमन हुआ। उन्होंने शीघ्रता से अपनी रचना का काव्य पाठ किया।
"सूरज प्राची से जब झांके , धरती पर मुस्काता कौन ।
खग समूह में पर फैलाये , कलरव गीत सुनाता कौन ।"
अंत में दीपिका जी ने सभी का आभार व्यक्त करते हुए, गोष्ठी का समापन किया।
इस तरह 26 सितम्बर 2021 की ये शाम सभी के दिलों में एक यादगार दिन के रूप में दर्ज़ हो गयी |
प्रस्तुति : आलोक रावत ‘आहत लखनवी’
529/335, रहीम नगर, महानगर
लखनऊ – 226006
मोबाइल न० – 8576093333
: देश की प्रतिष्ठित समूह सुमन साहित्यिक परी के फेसबुक पेज पर लाइव काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसका संचालन एकमेव संचालिका, संयोजिका, आयोजक दीपिका माहेश्वरी के द्वारा किया गया।
देशभर के विभिन्न हिस्सों से आए कवियों ने इस गोष्ठी में भाग लिया और अपनी प्रतिनिधि रचनाओं का वाचन किया। सरस्वती वंदना का गायन आदरणीय राजीव प्रखर जी, जो कि मुरादाबाद से आते हैं, उन्होंने प्रस्तुत की। बहुत ही सुंदर वाणी वंदना तत्पश्चात एक-एक करके लगभग डेढ़ दर्जन कवि और कवयित्रियों ने अपनी रचनाओं का पाठ किया। समस्त सुनने वालों को नव रसों की अनुभूति कराने वाली काव्य वर्षा से सब सराबोर होते रहे। सुमन साहित्यिक परी की आयोजिका, संचालिका श्रीमती दीपिका माहेश्वरी लगातार इस काव्य गोष्ठी के प्रसारण और तकनीकी सहयोग के लिए सर्वविदित हैं। उनकी संयोजन क्षमता, संगठन क्षमता मैं हृदय से नमन और वंदन करती हूं धन्यवाद आभार्
🙏🏻🙏🏻
मिथिलेश बड़गैंयाँ
शिक्षक
मिडिल स्कूल बिलहरी जबलपुर
आनंद की अनुभूति करा गयी, उन्मुक्त काव्यधारा ]
'उन्मुक्त काव्यधारा' कवियों की लाइव प्रस्तुति का ऐसा शानदार, यादगार आनलाइन आयोजन रहा, जिसमें विभिन्न रसों और छंदों की रचनाएं सुनने को मिली।
सुमन साहित्यिक परी फेसबुक पेज पर नजीबाबाद की रचनाकार आ.दीपिका माहेश्वरी सुमन 'अहंकारा' के संचालन में सम्पन्न काव्य गोष्ठी में भक्ति रस, वीर रस और श्रृंगार रस की त्रिवेणी के संगम में भाव स्नान का सुखद अनुभव हुआ।
मां सरस्वती की वंदना मुरादाबाद के युवा कवि
श्री राजीव प्रखर ने की और फिर एक गीत "मैं नदियां यह दंश घिनौना सहती रहती हूं" को गुनगुनाते हुए नदी की व्यथा को स्वर दिया। आपने महाभारत से पौराणिक प्रतीक लेकर गीत को गरिमा प्रदान की है।
कोलकाता के कवि श्री कृष्ण कुमार दुबे ने ग़ज़ल गुनगुनाई, 'मुद्दतों के बाद मिलना और चर्चा आपकी,कुछ इधर की कुछ उधर की बात कर अच्छा लगा'।इस बेहतरीन प्रस्तुति ने कार्यक्रम को गति प्रदान की।
लखनऊ से श्री अरविंद शर्मा आनंद ने समसामयिक ग़ज़ल प्रस्तुत की, वहीं मंजिलें हैं,वहीं रास्ते हैं,वहीं हौंसलें है, वही हादसे हैं। आपकी प्रभावशाली प्रस्तुति के बाद मेरठ से जुड़े श्री गोविन्द रस्तौगी ने राधा कृष्ण भक्ति भाव से भरा गीत, ' मन राधा राधा दोहराए,मोहन की बंसी बजते ही,राधा की धड़कन बढ़ जाए,स्वर धारा बहती भक्ति की,पायल आज मधुर धुन गाए' सुनाकर वातावरण भक्तिमय बना।इसी क्रम में लखनऊ के श्री राममूर्ति सिंह अधीर का गीत,ये बादल क्यों आ जाते हैं,क्यों मनमीत नहीं आते हैं की स्वरलहरी ने आनंद की अनुभूति कराई। लखनऊ के ही डॉ.इंजी.मनोज
श्रीवास्तव अपने अंदाज में वीर रस से भरे मुक्तक प्रस्तुत करते हुए समय सीमा से बाहर निकल गये। इस समय की भरपाई की लखनऊ से ही शामिल श्री मनमोहन बाराकोटी तमाचा लखनवी ने जिन्होंने सूक्ष्म काव्यपाठ करते हुए,कलम की धार तलवार से भी तेज होती है का संदेश देते हुए समय पालन का भी संकेत दे दिया। प्रयागराज से श्री अशोक श्रीवास्तव की गजल,किसी के हाथ पीले हो रहे हैं,किसी के नयन गीले हो रहे हैं,ने अपना प्रभाव मन पर छोड़ा। जबलपुर से श्री बसंत कुमार शर्मा के दोहे और ग़ज़ल कार्यक्रम को ऊंचाई पर ले जाने में सफल रहे,उनका दोहा,जब यादों की बदलियां करती हैं बरसात,हो जाते गीले नमन मगर सुलगते गात,ने विशेष प्रभावित किया। खंडवा से श्री सुधीर देशपांडे ने नई कविता शैली में मेरे पिता,और पेट्रोल पंप शीर्षक से बेहतरीन प्रस्तुति दी। श्री कुलदीप नारायण सक्सेना की रचना में किताब में चिपकी तितली,जुगनुओं की सहमति जैसे प्रतीक मन को लुभा गये। श्री वी. एस. अवस्थी कानपुर की रचना चक्रव्यूह बेहतरीन प्रस्तुति रही।
डॉ.मनोज रस्तोगी जी मुरादाबाद की बर्थ डे
रचना मन को छू गयी,लगा कविता के रुप में एक कहानी हम सुन रहे हैं। आयोजक संचालक। दीपिका माहेश्वरी सुमन 'अहंकारा' ने भगवान विश्वकर्मा पर आधारित रचना,विश्वकर्मा जी वो जगह धन्य है, जहां आकर रुके,का सस्वर गायन किया।
लगभग एक घंटा पच्चीस मिनट की इस काव्यधारा के प्रवाह में नेटवर्क प्राब्लम की
चट्टान बीच बीच में आती रही, जिससे टकराते हुए आगे बढ़ती यह काव्य धारा सबको आनंद की अनुभूति कराती रही।
इतने वरिष्ठ और सशक्त हस्ताक्षर एक साथ जोड़ने के लिए दीपिका माहेश्वरी सुमन'अहंकारा' जी को अशेष शुभकामनाएं।
कुल मिलाकर यह एक सफल आयोजन रहा। आयोजक,संयोजक,संचालक,प्रतिभागी रचनाकारों के साथ साथ हम जैसे श्रोताओं को भी हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई।
डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर उत्तर प्रदेश
प्रतिष्ठित साहित्यिक समूह सुमन साहित्यिक परी की ओर से दिनांक 26 सितंबर 2021 को ऑनलाइन काव्य गोष्ठी का आयोजन दीपिका माहेश्वरी सुमन पेज पर लाइव किया गया, जिस का संचालन दीपिका माहेश्वरी सुमन जी ने किया, जो साहित्य सेवा में अनवरत संलग्न है, एवं स्वयं एक अभूतपूर्व विलक्षण एवं प्रतिष्ठित लेखिका व कवियत्री है। उन्होंने काव्य गोष्ठी में प्रस्तुत कवियों को अपने मंत्रमुग्ध अंदाज में काव्य पंक्तियों के साथ आमंत्रित किया। इस काव्य गोष्ठी में ग़ज़लकार अशोक श्रीवास्तव प्रयागराज, मनमोहन बाराकोटी जी एवं साहित्यकार राजीव प्रखर जी तथा अन्य कवियत्री डॉ रीता सिंह तथा विभिन्न जनपदों से आए कवियों ने अपनी कविताओं से विभिन्न विधाओं में विभिन्न रसों की वर्षा की, जिससे श्रोतागण आनंद विभोर हो गए। दीपिका महेश्वरी जी से यही आग्रह है कि वह इस प्रकार की उच्च कोटि की काव्य गोष्ठी का आयोजन भविष्य में निरंतर करती रही, जिससे श्रोतागणों को उत्कृष्ट काव्य सृजन को सुनने का शुभ अवसर प्राप्त हो सके।
अशोक चौधरी
जे०एन०पी०डी० न्यायधीश
लखनऊ
गोष्ठी की संयोजिका श्रीमती दीपिका महेश्वरी जी हिन्दी साहित्य की काव्यधारा को, जो गति प्रदान कर रही हैं ।वह प्रसंशनीय एवं अनुकरणीय है ।मैं,डॉ•अशोक गिरि दीपिका जी के आत्मविश्वास को प्रणाम करता हूँ ।गोष्ठी का प्रारम्भ मुरादाबाद के सुप्रसिद्ध कवि श्री राजीव 'प्रखर' जी ने स्वरचित
वन्दना-पाठ से किया ।इसी क्रम में श्री अरविन्द जी ने हृदयस्पर्शी गज़ल प्रस्तुत की ।गोष्ठी में वरिष्ठ कवि अवस्थी जी,श्रीवास्तव जी तथा कौशिक जी आदि ने सारगर्भित रचनाएँ प्रस्तुत कीं ।सभी कवियों की रचनाएँ प्रेरणाप्रद एवं
संदेशपरक थीं ।अन्त में ,मैं इस गोष्ठी के सफल आयोजन के लिए - सभी कवियों तथा संयोजिका एवं संचालिका को हार्दिक बधाई देता हूँ । - डॉ•अशोक गिरि
कोटद्वार
साहित्यिक समूह सुमन साहित्यिक परी संस्था का आनलाइन काव्य पाठ में भाग लेने वाले सभी सुखनवर जैसे दीपिका माहेश्वरी सुमन जी, राजीव प्रखर जी, अशोक कुमार श्रीवास्तव जी,मनमोहन बाराकोटी जी,तमाचा लखनवीं जी,डॉ रीता सिंह जी,कृष्ण कुमार दुबे जी, डा. कुलदीप नारायण सक्सेना जी,डॉ गोविन्द रस्तोगी जी,डॉ अरविन्द कुमार शर्मा आनन्द जी, विद्या शंकर अवस्थी जी, मनोज कुमार श्रीवास्तव जी आदि ने बहुत उम्दा और खूबसूरत कविता पाठ किया । धारा प्रवाह हर विधा की रचनायें सुनने को मिली । मैं सभी कवि मित्रों एवं कवयित्रियों की भूरि भूरि प्रसंशा करता हूँ और दिल से सभी को हार्दिक बधाई देता हूँ और दीपिका माहेश्वरी सुमन जी से चाहता हूँ कि इसप्रकार की कवि गोष्ठी वो हर माह आहूत करती रहें जिससे हिन्दी के विकास में सभी सुखनवर अपना योगदान देते रहें ।
डॉ.संगमलाल त्रिपाठी "भँवर"
प्रतापगढ़ उ.प्र.
*समीक्षा : प्रथमांश*
प्रखरता के साथ उदीयमान साहित्यिक समूह ' सुमन साहित्यिक परी ( नजीबाबाद) ' के मंच से स्टीमयार्ड प्रदर्शन तकनीक की सहायता से प्रसारित " उन्मुक्त काव्यधारा " कार्यक्रम के अन्तर्गत रविवार २६ सितम्बर २०२१ को सायं एक आॅन- लाइन काव्यगोष्ठी का आयोजन किया गया ,जिसमें मुख्यत: उत्तरी भारत के और कुछ सुदूर प्रान्तों के लब्धप्रतिष्ठ कवियों ने भाग लिया । कार्यक्रम का लाइव प्रसारण समूह के पेज ' दीपिका माहेश्वरी सुमन ,से लाइव किया गया । मेरा सौभाग्य था कि मैंने इसे कुछ लाइव और शेष ( समयाभाव के कारण ) रिकाॅर्डेड देखा । अत्यन्त उत्कृष्ट कोटि की रचनाओं और सीमित समय में अधिकाधिक कवियों की प्रस्तुतियों को सुन पाने के कारण कार्यक्रम बहुत ही सजीव और बाँध कर रखने वाला रहा । लम्बे कवि सम्मलनों के समक्ष इन आॅन लाइन गोष्ठियों को क्रिकेट के टेस्ट- मैच की तुलना में एक- दिवसीय झटपट क्रिकेट के रूप में देखा जा सकता है , जिसका रोमांच अपना अलग ही होता है ।
उत्साह-उमंग से लबालब ,छलकती हुई संचालिका दीपिकाजी ( जिसे स्नेह से मैं 'बेटी' कहता हूँ ) की जीवन्तता पूरे कार्यक्रम पर छाई रहती है । उनके अत्यन्त गरिमामय ,आह्लादित संचालन से प्रतिभागी कवि, समीक्षक और श्रोता- दर्शक पूरे समय अपनी उम्र भूलकर एक अनिर्वचनीय तरुणाई जीते हैं । मैं इस कार्यक्रम की आने वाले समय में आसमानी लोकप्रियता की कामना करता हूँ ।
प्रस्तुतियाँ इतनी सुन्दर रहीं कि उनकी समीक्षा में संक्षेप में भी लिखें तो भी अन्तत: विस्तार हो ही जाता है । इसलिए इसे मैं अलग से लिखना चाहूँगा। ।
*सम्प्रतीत्यलम्* । नमस्कार ।🙏🙏🙏