रविवार, 26 अप्रैल 2020

स्त्री तंत्र की व्याख्या- दीपिका माहेश्वरी बिजनोर

#स्त्री तंत्र की व्याख्या
तृतीय अध्याय:_( मानव के स्वभाविक गुण और स्त्री तंत्र के तालमेल पर विचार)

 आज की चर्चा मानव के स्वाभाविक गुणों पर, जो स्त्री पुरुष में अलग-अलग होते हैं और इसी से उनकी पहचान की जाती है।

सांसारिक चीजों को पढ़कर, समझ कर, देखकर, सुनकर ज्ञान प्राप्त करना पुरुष की प्रकृति है वह सिर्फ उन चीजों को समझ सकता है जिनको  वह देखें, सुने, पढ़ें इसलिए हर ज्ञान वह पढ़कर अर्जित करता है। देखकर अर्जित करता है और उसी को विश्लेषण भी करता है। उस की व्याख्या पढ़ने और समझने के बाद ही करता है। यह उसकी प्रकृति है और इस प्रकृति में एक बात विशेष है कि वह अनकहा अनदेखा या गहरा कुछ समझ नहीं पाता यह पुरुष के स्वभाविक गुण की विशेषता है। और उसकी है विशेषता उसके हर व्यवहार में झलकती है मसलन उसे यदि कोई सामान चाहिए तो उसे वह अपने हाथ में चाहिए वह ढूंढ कर नहीं ले सकता क्योंकि वह गहरा और छिपावा समझ नहीं पाता। आप यह भी कह सकते हैं कि उसे हर चीज  संगवाई भी तो पसंद है  परंतु उसे  यह नहीं पता कि चीजें संगवाई कैसे जाती हैं। क्योंकि वह गहराई नहीं समझता। इसलिए यदि वह  स्त्री को  समझना चाहता है तो उसे गहराई को समझने के लिए ध्यान केंद्रित करना होगा। उसे भी चीजें संगवाने की आदत डालनी होगी।

दूसरी तरफ स्त्री जिसे कुछ समझने के लिए कुछ पढ़ने की जरूरत नहीं सारा ज्ञान उसके अंदर समाया हुआ है। वह बहुत गहरी है और उसकी गहराई उसकी विशेषता है वह अनकहा अनदेखा समझ जाती है इसलिए उसका व्यवहार भी ऐसा ही है। वह बातें कहती नहीं सिर्फ करती है इसलिए ही उसकी गहराई को ना तो कभी पुरुष समझ सका है नहीं समझ पाएगा यदि उसने अपने व्यवहार को चेंज नहीं किया। स्त्री का यह व्यवहार उसके हर छोटे-बड़े काम में दिखाई देता है जैसे कि वह मानव बीज से मानव बना कर देती है। कच्चे अन्न से खाना बना कर देती है। घर को सजा सँवार कर रख सकती है। उसे ढूंढना आता है। उसे गहराई को परखना आता है। यही पुरुष और स्त्री की प्रकृति में अंतर है और यहां एक बात और कहना चाहती हूं की नारी प्रकृति है नारी को बदला नहीं जा सकता क्योंकि नारी एक नियम है पुरुष को उस नियम के अनुसार अपने आप को ढालना होगा क्योंकि पुरुष की प्रकृति है देखकर, समझ कर ज्ञान अर्जित करना यदि वह नारी की गहराई को देखने, समझने लगेगा तब उसे और कहीं कोई ज्ञान अर्जित करने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। नारी नियम इसलिए ही है क्योंकि वह हर प्रकार की ज्ञान का भंडार है यदि पुरुष नारी को बदलने की जगह समझने लगे तो ही हम संसार में चल रहे सामाजिक नियम को बिना बदले सुचारू रूप से चला सकते हैं। इस तथ्य को एक उदाहरण के रूप में प्रस्तुत कर रही हूं

मेरे कल के व्याख्यान पर पुरुषों की तरफ से क्वेश्चन आया की आपने स्त्रियों के सम्मान की बात कही लेकिन पति-पत्नी में पुरुष को भी यानी पति को भी सम्मान मिलना चाहिए इस पर आपने कोई बात नहीं कही.. आज इसी बात पर व्याख्या कर रही हूं

जैसा कि मैंने कहा कि स्त्री गहरी होती है वह कुछ कहती नहीं। अनकही रहती है यही इसलिए उसकी प्रकृति है कि उसे जो कुछ मिलता है वह उसे हजार गुना बढ़ाकर वापस करती है परंतु बिना कहे। उसकी यह प्रकृति उसे धरती से मिली है जिस प्रकार धरती में बीज बोने पर यदि हम धरती को अकाल भरी धूप में छोड़ देंगे तो उसमें से कुछ भी नहीं उपज सकता। वह बंजर हो जाएगी। बिल्कुल सूख जाएगी। यदि उसे रोशनी भरा प्रकाश और प्रेम भरी बरसात मिलती है तो वह फसल के रूप में अपने हुनर को निखार कर उस बीज को हजार गुना बढ़ा कर देती है। यह धरती की प्रकृति है और यही स्त्री की प्रकृति है यदि आप उसे रोशनी भरा प्रकाश दे जिस पर वह अपने हुनर को निखार सके और उस पर प्रेम की बरसात करें तो वह  आपके द्वारा दिया गया सब कुछ हजार गुना आपको वापस करेगी। इसलिए इस बात की चिंता किसी पुरुष को करनी नहीं चाहिए कि यदि स्त्री का सम्मान है तो पुरुष का भी सम्मान होना चाहिए क्योंकि स्त्री वही वापस देती है जो उसे मिलता है आप स्त्री का सम्मान करेंगे तो स्त्री हजार गुना आपका सम्मान करके आपको वापस करेगी।  दूसरी सबसे अहम बात यह की यदि सम्मान पाने की इच्छा रखते हैं तो पहले सम्मान करना सीखिए और भारतीय संस्कृति में शुरू से ही स्त्री पुरुषों का सम्मान करती आ रही है परंतु आज के परिवेश में यदि आप सम्मान पाने की इच्छा रखते हैं तो आपको स्त्री का सम्मान करना ही पड़ेगा यही आपके सम्मान की रक्षा की अवधारणा है।

मेरे सभी व्याख्यानों में स्त्री तंत्र का सार छिपा है। मैं स्त्री तंत्र की ही व्याख्या कर रही थी।

विश्व के जिन देशों ने प्राकृतिक नियम स्त्री तंत्र को नहीं त्यागा और वे उसी पर चलते रहे वे सभी विकास की ओर अग्रसर है। वे सभी विकसित देशों में गिने जाते हैं और जिन देशों ने स्त्री तंत्र को पलट कर अपने नियम निर्धारण कर नव निर्धारित नियमों से पुरुष प्रधान समाज की संरचना की वे सभी विकासशील दायरे में है और विनाश की ओर जा रहे हैं।
इसमें से एक हमारा भारत है जिसे यह बात समझ नहीं आ रही की जिन पारिवारिक नियमों का निर्धारण कर उसने पुरुष प्रधान समाज की नींव रखी थी वह विनाश की ओर जा रहा है। यदि हमने इसका पुनः निर्धारण नहीं किया तो परिवार संस्था खत्म हो जाएगी और धीरे-धीरे जो प्रकृति नियम और रूप में अपना अस्तित्व ले रही है लिव इन रिलेशनशिप के रूप में वह सर्वव्यापी हो जाएगी।

मैं जो व्याख्या कर रही हूं वह सिर्फ और सिर्फ इसी चिंतन के साथ कि भारत से परिवार निधि समाप्त ना हो और इसी कारण ने मुझे इस मार्ग पर अग्रसर किया है कि मैं विलुप्त होती परिवार संस्था को बचा सकूं। इसके लिए बहुत जरूरी कदम है कि हम परिवार के नियम दोबारा निर्धारित करें और प्राकृतिक नियमों का अनुसरण करते हुए पारिवारिक नियमों को बनाए सिर्फ और सिर्फ यही तरीका है जिससे हम स्त्री और पुरुष के पारस्परिक समान तत्व को निर्धारित कर सकते हैं नहीं तो स्त्री जाति अपने आप में इतनी परिपूर्ण है कि उसे हकीकत में पुरुष तत्व की जरूरत नहीं क्योंकि वह उसे स्वयं पैदा करती है। यह बात हमें समझनी होगी पुरुष तत्वों के अस्तित्व के लिए जितना पुरुष तत्व अपना अस्तित्व बचाने की कोशिश कर रहा है स्त्री पर दोषारोपण कर। उतना ही वे विनाश की ओर जा रहा है। इसे रोकने के लिए बहुत जरूरी है स्त्री में पुरुष का विलीनीकरण यानी पुरुष जितना अपने आप को स्त्री पर समर्पित करेगा न्योछावर करेगा तभी मैं अपना अस्तित्व स्त्री से ऊंचा रख पाएगा। इसका सीधा सा उदाहरण है भगवान शिव शंकर द्वारा गौरा मैया के चरणों में अर्पण होना। इस बात को जो नहीं समझते वह अवश्य ही विनाश की ओर जाएंगे उनका विनाश कोई रोक नहीं सकता।

वैज्ञानिक तरीके से कहूं तो आर्टिफिशियल इनसेमिनेशन और स्पर्म बैंक जैसी प्रणालियों के विकास ने यह साबित कर दिया है कि स्त्री को पुरुष की जरूरत नहीं सिर्फ और सिर्फ बीज की जरूरत है मनुष्य का नव निर्माण करने के लिए। यह एक कटु सत्य है जिसे समझ कर ही हम परिवार संस्था  को बचा सकते हैं।
मेरे व्याख्यानों से बहुत सारे लोगों को लगता है कि मैं स्त्री पक्ष को रख रही हूं और स्त्री पक्ष की कट्टर पक्षधर हूं। नहीं ऐसा नहीं है मैं विनाश की ओर जाती पुरुष के अस्तित्व को बचाने की कोशिश कर रही हूं। वह तभी बचेगा जब स्त्री में विलीन होगा। स्त्री को पृथक करके वह निश्चित ही समाप्त हो जाएगा। इसलिए मेरे व्याख्यानओं को हर बुद्धिजीवी बहुत गौर से पढ़ें और अपना वक्तव्य उस पर दे क्योंकि परिवार के नियमों के निर्धारण के लिए यह बहुत जरूरी है।

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