शनिवार, 25 अप्रैल 2020

जय भगवान परशुराम

*जय भगवान परशुराम*
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 जय परशुराम श्री विष्णु अंश, जय जय आवेशित अवतारी।
 जय दुष्ट दलों के विध्वंसक, जय जय कठोर फरसा धारी।

त्रेता से लेकर द्वापर तक, हर युग में वर्णन मिलता है।
श्री परशुराम का शौर्य सूर्य, कब साथ समय के ढलता है।

कल्याण धरा का करने को, हाथों में शस्त्र उठाया था।
जो दुष्ट गर्व से फूले थे, उन सबको पाठ पढ़ाया था।

हैं परशुराम तो जन जन के, क्यों उन्हें जाति से जोड़ रहे।
हम जाति बता भगवानों की, हिन्दू समाज को तोड़ रहे।

जब अनाचार था धरती पर, दुष्टों से भिड़े परसु जी थे।
दलितों दमितों विप्रों क्षत्रिय, सबके हित लड़े परसु जी थे।

सौंपा निज धनुष राम को तो, निज चक्र कृष्ण को दे डाला।
दी विद्या भीष्म कर्ण को थी, तन पर बस ओढ़ी मृगछाला।

सतयुग में प्रभु गणेश ने जब, शिव दर्शन में बाधा डाली।
तब परशुराम का परसु वार, था गया नहीं बिल्कुल खाली।

इसके ही कारण श्री गणेश, का एकदन्त था नाम पड़ा।
युग युग में परसुरामजी ने, कर के दिखलाया काम बड़ा।

जमदग्नि पिता के योग्य पुत्र, रेणुका मात के औतारी।
है पितृभक्ति उनकी प्रसिद्ध, जिसको जाने दुनिया सारी।

हैहयवंशी वह अर्जुन था, जो सहस्रबाहु कहलाता था।
उस के अत्याचारों से तो, यह भूमण्डल दहलाता था।

उस ने मद में अंधे होकर, जमदग्नि ऋषी को कष्ट दिया।
छीनी उनकी गौ कामधेनु, फिर आश्रम को भी नष्ट किया।

तप में तल्लीन परसु जी ने, क्रोधित हो शस्त्र लिया कर में।
तब अग्नि क्रोध की धधक उठी, तपधारी विप्र परसुधर में।

उस की हजार भुज काट काट, उसको अशक्त औ' दीन किया।
इक्कीस बार उन दुष्टों से, प्रभु ने धरती को हीन किया।

सबको जो अभयदान देते, अत्याचारों को दमन करें।
प्रभु परशुराम के चरणों, आओ हम वंदन नमन करें।
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*अजय जादौन अर्पण*

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